इंडिया गठबंधन में ‘आम’ से निपटने में कांग्रेस को छूट रहा पसीना
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) द्वारा अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा से फौरी तौर पर यह संदेश जरूर जा रहा है कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है लेकिन कांग्रेस के अंदर इसे प्रेशर ट्ऱैक्टिस के रूप में देखा जा रहा है।
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कांग्रेस ही नहीं गठबंधन के अन्य सहयोगियों को उम्मीद है कि ममता को मना लिया जाएगा। पहले ममता और बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री और आप नेता भगवंत मान (Bhagwant Mann) के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा से एक बात तो तय है कि गठबंधन के अंदर ‘आम’ से निपटना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
आम मतलब अखिलेश, अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और ममता के साथ सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस के पसीने छूट रहे हैं। गठबंधन के अंदर यह तीनों नेता ही सबसे ज्यादा हार्ड वारगेनिंग कर रहे हैं। तीनों ही नेता अपने अपने राज्यों में कांग्रेस को ज्यादा भाव नहीं दे रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में जहां तृणमूल कांग्रेस कांग्रेस को दो से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है तो वहीं उत्तर प्रदेश में सपा मुखिया अखिलेश यादव भी कांग्रेस को ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं हैं। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी पंजाब में कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं।
कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार सीट शेयरिंग जैसे मुद्दे पर हर राजनीति दल अपने लिए ज्यादा हिस्सेदारी चाहता है लेकिन एक बड़े लक्ष्य के लिए सभी को एक कदम पीछे हटना पड़ता है। कांग्रेस इसी सोच के साथ अपने सहयोगियों के साथ बात कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सब दवाब की रणनीति का हिस्सा है।
इंडिया गठबंधन में बने रहना सभी दलों की राजनीतिक मजबूरी है। यह अकेले कांग्रेस पर ही लागू नहीं होता है इसलिए अभी से यह मान लेना कि गठबंधन दरक गया है जल्दबाजी होगी। देर सबेर यह सभी गठबंधन के झंडे के नीचे ही नजर आएगें।
सूत्रों के अनुसार ममता की नारजगी की बड़ी वजह भारत न्याया यात्रा के लिए अभी तक कांग्रेस द्वारा उनसे संपर्क नहीं साधना भी है।
वहीं राज्य कांग्रेसी नेताओं द्वारा की जा रही वयानबाजी से भी ममता नाराज हैं। एक बात तो साफ है कि गठबंधन के भीतर सीटों का बंटबारा आसान नहीं है और यही कारण है कि अभी किसी राज्य में सीट बंटबारे पर अंतिम मुहर नहीं लग पायी है।
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