"Madam Commissioner"पुस्तक में अजीत पवार पर पुलिस विभाग की जमीन बेचने का आरोप

Last Updated 16 Oct 2023 07:26:26 AM IST

"मैड़म कमिश्नर" पुस्तक की वजह से महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया है। पूर्व आईपीएस अधिकारी मीरा चड्ढा बोरवंकर की पुस्तक"मैडम कमिश्नर" में लिखीं बातें अगर सही साबित हुईं तो दादा के नाम से मशहूर राजनेता और वर्तमान में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की मुशिबतें बढ़ सकती हैं!


Madam Commissioner Book By Purv IPS Borvankar

महाराष्ट्र पुलिस में रहते हुए मीरा ने जो काम किया था, उसका जिक्र आज भी वहां होता है। उनकी पुस्तक में पुलिस विभाग की तीन एकड़ जमीन को नीलाम करने का जिक्र है। पुस्तक में लिखा गया है कि महाराष्ट्र के पुणे जिले के यरवदा में पुलिस की तीन एकड़ प्रमुख भूमि को तत्कालीन मंत्री के आदेश पर नीलाम कर दी गई थी। मंत्री ने जब पुलिस कमिश्नर को भूमि छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि भूमि निलाम नहीं की जानी चाहिए थी। क्योंकि उनके पास सरकारी कार्यालय और पुलिस कर्मियों के लिए आवास बनाने के लिए ज्यादा जगह की आवश्यकता थी।

ये मंत्री अजीत पवार थे, जो अब महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री हैं, और पुलिस कमिश्नर पुणे मीरान चड्ढा बोरवंकर थीं, जिन्होंने कुछ ही दिन पहले कार्यभार संभाला था। भूमि की नीलामी का फैसला जिला संरक्षक मंत्री द्वारा लिया गया था। अजीत पवार उस समय जिला संरक्षक मंत्री हुआ करते थे। हालांकि, डिप्टी सीएम अजीत पवार ने खुद के इसमें लिप्त होने से इनकार किया है, और कहा है कि जिला संरक्षक मंत्री के पास भूमि की नीलामी करने का अधिकार नहीं होता है। पुस्तक में बोरवंकर ने "जिला मंत्री" के नाम का उल्लेख नहीं किया है, लेकिन उन्हें "दादा" के रूप में बताया गया है। महाराष्ट्र में सिर्फ अजीत पवार को ही लोग“दादा" के उपनाम से जानते हैं। जो उस समय जिला संरक्षक मंत्री भी थे।”

उधर अजीत पवार का भी बयान आ गया है। उन्होंने कहा है कि वह कभी भी जमीन की किसी नीलामी में शामिल नहीं हुए थे। उनका कहना है कि वह ऐसी नीलामियों का विरोध करते हैं। उनका कहना है कि जिला संरक्षक मंत्री के पास जमीन की नीलामी करने का अधिकार नहीं होता है। उन्होंने अपने आपको इस मामले से किनारे करते हुए अधिकारियों से जांच कराने की भी बात कह दी है। उधर
तत्कालीन सीएम रहे पृथ्वीराज चव्हाण का भी बयान आ गया है। उन्होंने कहा है कि बात बहुत पुरानी है, उन्हें कुछ याद नहीं है,रिकॉर्ड देखना पड़ेगा।

"मंत्री" शीर्षक अध्याय में, बोरवंकर ने कुछ इस तरह से लिखा है। हाल ही में पुणे में पुलिस आयुक्त के रूप में पदभार संभालने के बाद, मैं विभिन्न पुलिस स्टेशनों में अपराध के हालातों से परिचित हो रही थी और अधिकारियों से मिल रही थी। उन दिनों एक दिन मुझे संभागीय आयुक्त का फोन आया कि जिला मंत्री ने मेरे लिए कहा है और मुझे अगले दिन सुबह उनसे मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि यरवदा पुलिस स्टेशन की भूमि के मुद्दे पर चर्चा की आवश्यकता है।उन्होंने लिखा,मैं संभागीय आयुक्त कार्यालय में जिला मंत्री से मिला।

उसके पास इलाके का एक बड़ा कागज़ का नक्शा था। उन्होंने बताया कि नीलामी सफलतापूर्वक हो गई है और मुझे शीर्ष बोली लगाने वाले को जमीन सौंपने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। मैंने उत्तर दिया कि चूंकि यरवदा वस्तुतः पुणे का केंद्र बन गया है, इसलिए पुलिस को भविष्य में ऐसी प्रमुख भूमि कभी नहीं मिलेगी। और हमें पुलिस के लिए अधिक कार्यालयों के साथ-साथ आवासीय क्वार्टरों के निर्माण के लिए इसकी आवश्यकता थी। मैंने जोड़ा कि हाल ही में कार्यभार संभालने के बाद, एक निजी पार्टी को पुलिस की जमीन देना यह माना जाएगा कि नए पुलिस आयुक्त ने खुद को बेच दिया है। लेकिन मंत्री ने मेरी बात को खारिज कर दिया और जोर देकर कहा कि मैं प्रक्रिया पूरी करूं, जिसे उन्होंने समाप्त घोषित कर दिया।''

इसके अलावा, बोरवंकर ने किताब में लिखा, “उनके निर्देशों से नाखुश होकर, मैंने उनसे विनम्रता से पूछा कि मेरे पूर्ववर्ती – पिछले पुलिस आयुक्त ने जमीन क्यों नहीं सौंपी, अगर नीलामी पहले ही समाप्त हो चुकी थी। मैंने यहां तक कहा कि मेरी राय में यह प्रक्रिया ही गलत थी और पुलिस विभाग के हित के विरुद्ध थी। मेरे लिए पुलिस भूमि के इतने महत्वपूर्ण टुकड़े को एक निजी पार्टी के लिए छोड़ना संभव नहीं होगा, जबकि हमें स्वयं इसकी आवश्यकता थी, मैंने उससे धीरे से लेकिन अंतिम रूप से कहा। मंत्री ने अपना आपा खो दिया और नक्शा कांच की मेज पर फेंक दिया। अजीत पवार पर पहले से ही हजारों करोड़ों के घोटाले के आरोप लग चुके हैं।

हालांकि अब वह सत्ता के साथ हैं। खुद भी उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन पूर्व आईपीएस अधिकारी की पुस्तक में लिखीं बातों का जिक्र महाराष्ट्र की राजनीति में जरूर होगा। एक ऐसी महिला आईपीएस जिसके ऊपर"मर्दानी" नाम की फ़िल्म बन चुकी है। जिन्हें राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित किया गया था, उन्होंने इस पुस्तक को बहुत सोच समझ कर ही लिखा होगा। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में विरोधी पार्टियां इस पुस्तक के जरिए लगाए गए आरोपों को लेकर अजीत पवार को जरूर घेरने की कोशिश करेंगीं।

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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