Chirag paswan का नया पैंतरा, अपने चाचा पशुपति की राजनीति खत्म करने की यह है योजना !
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर देश में दो गठबंधन ने मूर्त रूप ले लिया है। सत्ताधारी एनडीए गठबंधन तो पहले से ही मौजूद था। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में इस बार कुछ और दल जुड़ गए हैं।
![]() Chirag Paswan, Pashupati Paras |
2019 के मुकाबले इस बार एनडीए का कुनबा कुछ ज्यादा बड़ा हो गया है, जबकि विपक्ष का इण्डिया के नाम से बना गठबंधन अभी शैशव काल से गुजर रहा है। दोनों ही गठबंधन अपने-अपने जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन यह तय है कि सीटों के बंटवारे के समय दोनों ही गठबंधन को व्यावहारिक दिक्क्तों का सामना करना पडेगा। फिलहाल आज बात सिर्फ एनडीए और उसमे शामिल लोजपा के दोनों घटकों की हो रही है। यह सबको पता है कि बिहार की हाजीपुर सीट से लोजपा (रामविलास ) के नेता चिराग पासवान चुनाव लड़ने का मन बना चुके थे। जबकि उन्हें अच्छी तरह पता है कि उनके चाचा और राष्ट्रीय लोकजन शक्ति पार्टी के मुखिया पशुपति पारस वहां से वर्तमान सांसद हैं। हाजीपुर सीट को लेकर पिछले दिनों चाचा और भतीजे के बीच खूब जुबानी जंग देखने को मिली थी। दोनों ने ही हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने दावा ठोक दिया था, लेकिन अब कहानी में ट्विस्ट आ गया है। हाजीपुर सीट से चुनाव की रट लगाने वाले चिराग पासवान ने एक नया पासा फेंक दिया है। अब उन्होंने कह दिया है कि उनकी माता रीना देवी हाजीपुर से चुनाव लड़ेंगीं।
ऐसे में अब पूरे बिहार में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर चिराग ने अचनाक अपनी माता के चुनाव लड़ने की बात क्यों कर दी है। दबी जुबान से लोग यह भी कहने लगे हैं कि चिराग अपने चाचा पशुपति पारस की राजनीति ख़तम करने का मन बना चुके हैं। रामिवलास पासवान के जिन्दा रहते हुए उनके छोटे भाई पशुपति पारस हाजीपुर से चुनाव लड़े थे। पशुपति बार-बार कहते रहे है कि उनके बड़े भाई ने ही उन्हें हाजीपुर से चुनाव लड़वाया था। वो चुनाव जीत भी गए थे । वर्तमान में पशुपति पारस ही हाजीपुर से सांसद हैं।
रामविलास पासवान के बेटे चिराग जमुई लोकसभा सीट से सांसद हैं। रामविलास पासवान की जब मृत्यु हुई थी तब उनकी पार्टी टूट गई थी। लोक जनशक्ति पार्टी पर अधिकार को लेकर चाचा और भतीजे के बीच कुछ विवाद भी हुआ था, लेकिन पशुपति पारस अपने साथ चार सांसदों को लेकर एनडीए में शामिल हो गए थे। उन्होंने राष्ट्रीय लोकजन शक्ति के नाम से अपनी नई पार्टी भी बना ली थी। तब चिराग पासवान अकेले पड़ गए थे। बहुत दिनों तक चाचा और भतीजे के बीच विवाद जारी रहा।
चिराग पासवान भी चुपचाप बैठकर अच्छे समय का इन्तजार करते रहे, जबकि पशुपति केंद्र में मंत्री बनकर अपने आपको लोजपा का सबसे नेता मानते रहे। उधर चिराग पासवान अपनी आस्था और अपनी श्रद्धा भाजपा के प्रति जताते रहे। वो लगातार अपने आपको नरेंद्र मोदी का हनुमान कहते रहे। चिराग का भाजपा और मोदी के प्रति प्रेम बेकार नहीं गया। उन्हें इसका इनाम तब मिला, जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उन्हें एनडीए की बैठक में शामिल होने के लिए न्योता भेजा दिया। उस बैठक में मोदी ने भी चिराग को एनडीए में शामिल किसी भी नेता से कहीं जयादा भाव दिया।
जो चाचा-भतीजा एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करते थे, अब राजनैतिक स्वार्थ ने उन दोनों को एक छतरी के नीचे लाकर खड़ा कर दिया है। यह तय है कि अब दोनों की पार्टियों को बिहार में कितनी सीटें मिलेंगी, इसका फैसला बहुत हद तक भाजपा ही करेगी। कुछ माह पहले तक चिराग हाजीपुर सीट से ही चुनाव लड़ने की बात कह रहे थे, यह जानते हुए भी कि उनके चाचा हाजीपुर सीट नहीं छोड़ने वाले हैं। हाजीपुर सीट को लेकर इन दोनों के बीच तल्खी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। लेकिन अब अचनाक चिराग ने नया पैतरा आजमा लिया है।
अब वो हाजीपुर सीट से अपनी माता रीना देवी को चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। वो अपनी माता को लेकर दलील भी दे रहे हैं। वो बिहार के लोगों से कह रहे हैं कि हाजीपुर सीट, उनके पिता रामविलास पासवान की विरासत है। लिहाजा उस सीट पर सबसे पहली दावेदारी उनकी माता का ही बनता है। आज से कुछ दिन पहले तक चिराग की माता का चुनाव लड़ने को लेकर दूर-दूर तक कोई चर्चा नहीं थी। लेकिन चिराग ने अपनी माता का नाम लेकर यह जरूर बता दिया कि उनकी माता 2024 में लोकसभा चुनाव जरूर लड़ेंगीं।
अब सवाल यह पैदा होता है कि अगर चिराग की माता चुनाव लड़ती हैं तो उन्हें कहां से लड़ाया जायेगा। चिराग की माता के लिए वैसे हाजीपुर सीट सबसे ज्यादा मुफीद है, लेकिन सवाल यह भी पैदा होता है कि अगर चिराग की माता हाजीपुर से चुनाव लड़ती हैं तो फिर पशुपति पारस कहां जाएंगे। पशुपति हाजीपुर के अलावा अगर कहीं और से चुनाव लड़ते हैं तो वो जीत जाएंगे ? सबको पता है कि पशुपति पारस की अपनी कोई ख़ास पहचान नहीं है। ऐसे में उनका हाजीपुर के अलावा कहीं और से चुनाव लड़ना उनके राजनैतिक सेहत के हिसाब से ठीक नहीं होगा।
चर्चा इस बात की भी हो रही है कि क्या चिराग अपने चाचा पशुपति पारस की राजनीति ख़तम करने का मन बना चुके हैं। हालांकि दोनों नेताओं को पता है कि भाजपा ही तय करेगी कि दोनों की लोकसभा सीट कौन सी होगी। ऐसे में अगर भाजपा ने चिराग की माता को हाजीपुर से टिकट दे दिया तो पारस का क्या होगा ? वैसे भी भाजपा को पशुपति पारस से ज्यादा संभावनाएं चिराग में दिखाई दे रही हैं। हालांकि आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार के जो भी दल भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं, उनमें से कमोबेश सबकी ही स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहने वाली है, लेकिन पशुपति अगर हाजीपुर से चुनाव लड़ने से वंचित रह जाते हैं तो यह मान लेना चाहिए कि उनकी राजनीति का अंत हो गया।
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