बिहार में NDA पर भारी पड़ेगा I.N.D.I.A, ! नीतीश और तेजस्वी ऐसे रहेंगे आगे !

Last Updated 06 Aug 2023 05:49:43 PM IST

बीजेपी ने बिहार की 40 सीटों को जीतने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन का दावा है कि 2024 लोकसभा चुनाव में इस बार बिहार की सभी सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों की जीत होगी।


Nitish Kumar,Narendra Modi

 हालांकि उनके दावे में कितनी सचाई है,इसका अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता है। उसकी सबसे ख़ास वजह है,उनके साथ इस बार नीतीश कुमार का ना होना। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार की 40 सीटों में से 39 सीटें मिलीं थीं। जिसमें बीजेपी को 17जबकि जदयू को 16सीटें मिलीं थीं। 6 सीटें लोजपा के खाते में गईं थीं। ऐसे आंकड़े तबके हैं जब नीतीश कुमार एनडीए के हिस्सा हुआ करते थे। उधर महागठबंधन भी ताल थोक कर कह रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में उनके प्रत्याशियों की सभी सीटों पर जीत होगी। दोनों गठबंधनों के दावों में कितनी सच्चाई है हम विस्तार से अपनी रिपोर्ट के जरिए बताने की कोशिश करेंगे। यहाँ बता दें कि इस बार का लोकसभा चुनाव अन्य सभी चुनावों से अलग होने जा रहा है। दूसरी बात यह है कि इस बार स्थानीय पार्टियों के हिस्से में कुछ भी नहीं आने वाला है।

पूरे देश को पता है कि इस समय देश के दो मजबूत गठबंधन "इण्डिया" और "एनडीए" आमने सामने हैं ! एक का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं जबकि इण्डिया का नेतृत्व अभी तक किसी के हाथ में नहीं है। ऐसे में बहुत हद तक पलड़ा एनडीए का भारी है। हालांकि इण्डिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियां जिस गंभीरता से लगी हुई हैं, उसे देखकर यह अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि वो कुछ नहीं कर सकती। भले ही कुछ लोग कह रहे हों कि विपक्ष मोदी के सामने कहीं टिक नहीं सकता, लेकिन साथ ही साथ राजनैतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा या एनडीए की वैसी स्थिति नहीं रहने वाली है जैसी कि 2014 या फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में थी।

अब बात करते हैं बिहार की। देश कितना भी आगे बढ़ जाए। लाख दावे किए जाएं कि अब वोटिंग विकास के नाम पर या अन्य किसी मुद्दे पर होते हैं, लेकिन आज भी देश के कुछ ऐसे राज्य हैं, जहाँ जाति के नाम पर वोटिंग होती है। बिहार उन्ही जैसे राज्यों में से एक है। सबको पता है कि  बिहार में यादव और मुसलमानों का अधिकांश वोट महागठबंधन को ही मिलेगा। महागठबंधन में जनता दल यूनाइटेड ,राष्ट्रीय जनता दल, भाकपा ,माकपा  कांग्रेस और अन्य वाम दल शामिल हैं। यानी एक बड़ा वोट बैंक आज महागठबंधन के साथ है। जबकि भाकपा माले एक ऐसा दल है जिसमे गरीब तबके के लोग जुड़े हुए हैं। यानि उसमे दलित और अन्य पिछड़े वर्ग की तमाम वो जातियां शामिल हैं, जो बेहद गरीब और पिछड़ी हुई हैं। भाकपा माले भी महागठबंधन के ही साथ है।

रही बात बिहार की  उच्च जातियों की, तो राजपूत ,भूमिहार और ब्राह्मण भी ऐसा नहीं है कि सभी एनडीए के प्रत्यासी को ही वोट दे देंगे। उनकी भी वोटें महागठबंधन को अवश्य मिलेंगीं। क्योंकि उन्ही जातियों के कई कद्दावर नेता महागठबंधन के साथ खड़े हैं। ओबीसी की दो बड़े वोट वाली जातियां कुर्मी और कुशवाहा के वोटों में विखराव हो सकता है। लेकिन नीतीश कुमार कुर्मी बिरादरी से ही आते हैं। ऐसे में वह बिरादरी नीतिश कुमार को कैसे भुला देगी। नीतिश कुमार मुख्यमंत्री भी हैं, लिहाजा इनकी बिरादरी की वोटें इन्हें जरूर मिलेगी। अब इन आकड़ों को देखकर कोई भी समझदार व्यक्ति आसानी से अंदाजा लगा सकता है कि  इस बार बिहार में क्या होने वाला है।

 ऐसे में अगर एनडीए बिहार की सभी सीटों को जीतने का दावा कर रहा है तो, फिलहाल उसके दावे में उतनी सच्चाई तो नहीं लगती है। महागठबंधन के दावों में सच्चाई इसलिए हो सकती है कि  वहां के आकंड़े उसके पक्ष में दिखाई दे रहे हैं। बिहार का जो वोटिंग पैटर्न है, उसे देखते हुए फिलहाल महागठबंधन का पलड़ा ज्यादा भारी हो सकता है। चुनाव में अभी काफी वक्त बाकी है। आगे और भी समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे। आगे कुछ भी हो सकता है। दोनों गठबंधनों से कुछ पार्टियां अलग भी हो सकती हैं। कुछ इधर-उधर भी जा सकती हैं, लेकिन अभी जैसा है, अगर वैसा ही रहता है तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि महागठबंधन को सीटें एनडीए से कहीं बहुत जयादा मिलने वाली हैं।

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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