छुट्टी का मामला : अनुशासन सेना की पहचान, नहीं कर सकते समझौता

Last Updated 31 Jul 2023 11:22:16 AM IST

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने छुट्टियां पूरी होने के बाद ड्यूटी पर नहीं लौटने के मामले में बर्खास्त किए जाने के खिलाफ दायर एक सैन्यकर्मी की याचिका खारिज कर दी और कहा कि अनुशासन सशस्त्र बलों की अंतर्निहित पहचान तथा सेवा की एक ऐसी शर्त है, जिसमें मोल-भाव नहीं किया जा सकता।


सुप्रीम कोर्ट

याचिकाकर्ता ने 4 जनवरी 1983 को सैन्य सेवा कोर में मैकेनिकल वाहन चालक के तौर पर नौकरी शुरू की थी। साल 1998 में उसे आठ नवम्बर से 16 दिसम्बर के बीच 39 दिन का अवकाश प्रदान किया गया था।

इसके बाद उसने अनुकंपा के आधार पर अवकाश बढ़ाने का अनुरोध किया, जिसके बाद प्रतिवादियों ने उसे साल 1999 की 30 दिन की छुट्टी अग्रिम रूप से दे दी। उसे 17 दिसम्बर 1998 से 15 जनवरी 1999 के बीच ये छुट्टियां दी गईं। इसके बाद भी वह ड्यूटी कर नहीं लौटा।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसकी पत्नी बीमार हो गई थी और वह उसके इलाज की व्यवस्था एवं देखभाल कर रहा था, जिसकी वजह से वह छुट्टियां खत्म होने के बाद ड्यूटी पर नहीं लौट पाया।

इसके बाद 15 फरवरी 1999 को सैन्य अधिनियम की धारा 106 के तहत यह पता लगाने के लिए ‘कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी’ हुई कि किन परिस्थितियों में व्यक्ति छुट्टियां पूरी होने के बाद भी काम पर नहीं लौटा। अदालत ने मत दिया था कि उसे 16 जनवरी 1999 से भगोड़ा घोषित किया जाना चाहिए।

‘समरी कोर्ट मार्शल’ में वह दोषी पाया गया और उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति राजेश ¨बदल की पीठ ने कहा, सैन्यकर्मी अपनी पत्नी के उपचार के बारे में ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं कर पाया, जिससे यह पता चलता हो कि वह गंभीर रूप से बीमार थी और निरंतर उपचार के लिए सैन्यकर्मी को उसके पास रहना जरूरी था।

भाषा
नई दिल्ली


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