जबरन धर्मातरण से देश को खतरा : सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर मुद्दा बताया, केंद्र से 22 तक जवाब मांगा

Last Updated 15 Nov 2022 09:07:18 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने जबरन धर्मांतरण को ‘बहुत गंभीर’ मुद्दा करार देते हुए सोमवार को केंद्र से कहा कि वह इसे रोकने के लिए कदम उठाए और इस दिशा में गंभीर प्रयास करे।


उच्चतम न्यायालय

अदालत ने चेताया कि यदि जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो ‘बहुत मुश्किल स्थिति’ पैदा होगी, क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों के धर्म और अंत:करण की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार पल्रोभन के जरिए धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिये उठाए गए कदमों के बारे में बताए। पीठ ने कहा, यह एक बहुत ही गंभीर मामला है। केंद्र द्वारा जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए। अन्यथा बहुत मुश्किल स्थिति सामने आएगी। हमें बताएं कि आप क्या कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखते हैं.. आपको हस्तक्षेप करना होगा। मेहता ने अदालत से कहा कि इस मुद्दे पर संविधान पीठ के समक्ष भी सुनवाई हो चुकी है।
उन्होंने कहा, इससे संबंधित दो अधिनियम हैं। एक ओडिशा सरकार का और एक मध्य प्रदेश सरकार का, जो छल, झूठ या धोखाधड़ी, धन द्वारा किसी भी जबरन धर्मांतरण के नियमन से संबंधित हैं। ये मुद्दे इस अदालत के समक्ष विचार के लिए आए और उच्चतम न्यायालय ने कानून की वैधता को बरकरार रखा। मेहता ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में जबरन धर्मांतरण बड़े पैमाने पर हो रहा है। उन्होंने कहा कि कई बार पीड़ितों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि वे आपराधिक कार्रवाई के दायरे में हैं और वे (पीड़ित) कहते हैं कि उनकी मदद की जा रही है। पीठ ने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता हो सकती है, लेकिन जबरन धर्मांतरण द्वारा धर्म की स्वतंत्रता नहीं हो सकती।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, कथित धर्मांतरण से संबंधित मुद्दा अगर सही पाया जाता है, तो यह बेहद गंभीर मुद्दा है, जो अंतत: राष्ट्र की सुरक्षा के साथ-साथ नागरिकों की धर्म और अंत:करण की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। अदालत ने कहा,  इसलिए, बेहतर होगा कि केंद्र सरकार अपना रुख स्पष्ट करे और इस तरह के जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए आगे क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर जवाबी हलफनामा दाखिल करे।

पीठ ने केंद्र को इस मुद्दे पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए 22 नवम्बर, 2022 तक का समय दिया और मामले की अगली सुनवाई 28 नवम्बर को तय की। उच्चतम न्यायालय अधिवक्ता अिनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्र और राज्यों को ‘डरा-धमकाकर, पल्रोभन देकर और पैसे का लालच देकर’ धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। शीर्ष अदालत ने 23 सितम्बर को इस याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था। उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि जबरन धर्मांतरण एक राष्ट्रव्यापी समस्या है, जिससे तत्काल निपटने की जरूरत है।

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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