भ्रष्टाचार मामलों में फिसड्डी साबित हो रहीं जांच एजेंसियां
देश के लिए गंभीर चुनौती बनी भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए भले ही हर साल सतर्कता पखवाड़ा आयोजित किया जाता हो, मगर हकीकत यह है कि एजेंसियां इस दिशा में खुद गंभीर नहीं हैं।
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शायद यही कारण है कि देश के छह राज्यों में पूरे साल भ्रष्टाचार का एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया। हालांकि देशभर में दर्ज भ्रष्टाचार के कुल मामलों में आधे से ज्यादा केवल चार राज्यों में दर्ज किए गए हैं। अगर इन मामलों की जांच की बात करें तो जांच एजेंसियां फिसड्डी साबित हो रही हैं। यही वजह है कि लंबित मामलों का ग्राफ हर साल ऊपर जा रहा है।
गौरतलब है कि भ्रष्टाचार हर क्षेत्र में बड़ी चुनौती बना हुआ है। हर साल सतर्कता पखवाड़े का आयोजन करने वाली सरकारी एजेंसियां ऐसे मामलों का खुलासा करने में गंभीर नहीं हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों की माने तो देश के छह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, दमन-द्वीप, लद्दाख और लक्षद्वीप में बीते साल भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नहीं आया। न तो इन राज्यों में नागरिकों ने किसी ऐसे मामले की शिकायत की और न ही जांच एजेंसियां किसी मामले को उजागर करने में सफल रही।
बीते साल देशभर में कुल 31 सौ मामले दर्ज किए गए। इनमें करीब 65 फीसद मामलों में आरोपी रंगे हाथ रिश्वत लेते धरे गए। बात यदि सबसे अधिक मामले दर्ज करने की करें तो पचास फीसद से ज्यादा मुकदमे केवल चार राज्यों महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और कर्नाटक में दर्ज किए गए। इनमें महाराष्ट्र में दर्ज हुए कुल 664 मामलों में से 631 मामलों में आरोपी रंगे हाथ दबोचे गए।
इसी तरह राजस्थान में दर्ज हुए 363 मामलों में से 313 में आरोपियों को मौके पर ही रिश्वत लेते हुए दबोच लिया गया। जबकि 304 मामले दर्ज करने वाले तमिलनाडु में एक तिहाई मुलजिम ही रंगे हाथ पकड़े गए। हालांकि कर्नाटक में दर्ज हुए 296 मामलों में से लगभग तीन चौथाई यानी 185 आरोपी रिश्वत लेते मौके पर ही पकड़े गए। बात यदि इन मामलों की जांच की करें तो जांच एजेंसियां कछुए की रफ्तार से चल रही है।
2019 के अंत तक देशभर में जांच एजेंसियों के पास भ्रष्टाचार के कुल 11 हजार मामले लंबित थे। साल के अंत तक इनमें 555 मामले और जुड़ गए। एजेंसियां केवल 2043 मामलों में ही आरोपपत्र दाखिल कर सकी। सबसे ज्यादा 389 मामलों में महाराष्ट्र में आरोपपत्र दाखिल किए गए। 197 आरोप पत्र दाखिल करने के साथ राजस्थान इस दौड़ में दूसरे नंबर पर रहा, जबकि कर्नाटक में 158 और तमिलनाडु में 113 मामलों में ही आरोप पत्र दाखिल किए जा सके।
भ्रष्टाचार के मामलों में दर्ज मुकदमे वापस करें तो देशभर में सरकार ने केवल तीन मामले वापस लिए। हैरानी की बात है कि तीनों मामलों में मुकदमे वापस लेने का काम केंद्रशासित जम्मू-कश्मीर सरकार ने किया। बात अगर आरोपियों को सजा दिलाने की करें तो असम और चंडीगढ़ इस दिशा में सौ फीसद लक्ष्य हासिल करने में सफल रहे।
पुडुचेरी जहां 80 फीसद आरोपियों को सजा दिलाने में सफल रहा, वही झारखंड 78.9 फीसद और तेलंगाना में 77.8 फीसद मामलों में आरोपियों को सजा दिलाने में सफल रहे। आरोपियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में फिसड्डी राज्यों की बात करें महाराष्ट्र में महज 7.8 फीसद, जम्मू-कश्मीर में 9.1 फीसद तो उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में महज दस फीसद आरोपियों को ही सजा दिलाने में सफलता मिल सकी।
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