कांग्रेस के संकटमोचक को पीएम न बन पाने की टीस हमेशा सालती रही

Last Updated 01 Sep 2020 01:39:16 AM IST

देश की राजनीति के पुरोधा प्रणब मुखर्जी भले ही आज चिरनिद्रा में लीन हो गए हैं लेकिन इस देश की राजनीति उन्हें ऐसे शिखर पुरुष के रूप में वर्षों तक याद रखेगी, जिसकी भारतीय राजनीति की नब्ज पर गहरी पकड़ थी।


कांग्रेस के संकटमोचक को पीएम न बन पाने की टीस हमेशा सालती रही

प्रणब दा का राजनीतिक सफर भले ही देश के प्रथम नागरिक तक पहुंचकर संपन्न हुआ हो लेकिन उनके मन में देश का प्रधानमंत्री न बन पाने की टीस आखिर तक सालती रही।

यूं तो प्रणब मुखर्जी सभी राजनीतिक दलों में सम्मान के पात्र थे लेकिन अपनी पार्टी कांग्रेस के वह वर्षो तक संकटमोचक रहे। जब जब पार्टी संकट में आई वह संकटमोचक बनकर आगे खड़े नजर आए। नरसिंह राव की सरकार से लेकर मनमोहन सिंह के दो कार्यकाल में जब गठबंधन सरकार का नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी, रूठे सहयोगियों को मनाने के लिए प्रणव दा सबसे आगे रहते थे। कांग्रेस के अंदर उनका कद कितना बड़ा था, इसी से समझा जा सकता है कि बिना प्रधानमंत्री रहते हुए वह 8 वर्ष तक लोकसभा में कांग्रेस के नेता रहे। इंदिरा गांधी के खासमखास रहे प्रणब मुखर्जी उनके निधन के बाद उस समय पार्टी के नेताओं की नजर में चढ़ गए जब उन्होंने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के पद पर अपना दावा ठोक दिया और उनकी यह गलती उनके पूरे राजनीतिक जीवन पर भारी पड़ी जिसके चलते पार्टी के अंदर इस पद का सबसे सशक्त दावेदार होते हुए भी उन्हें यह पद नसीब न हो सका। वह राजनीति के ऐसे कौटिल्य थे जो किस्मत से प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।

राजनीतिक रिश्ते बनाने के उनके हुनर के सभी दलों में लोग कायल थे। कांग्रेस में वह नरसिंहराव के समय से ही संकटमोचक की भूमिका में आ गए थे, जब अर्जुन सिंह और शरद पवार जैसे लोगों ने राव की चुनौती पेश की थी। उन्होंने बड़े ही संयम के साथ इस संकट का समाधान निकाला। 2004 में जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने उस समय प्रणब मुखर्जी को एक बार फिर किस्मत ने झटका दिया। उस समय उन्हें उम्मीद थी कि सोनिया गांधी के न करने के बाद वही इस पद के सबसे प्रमुख दावेदार होंगे लेकिन उनकी जगह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया।

इसके बाद सरकार में रहते हुए उन्होंने फिर से संकटमोचक की भूमिका निभाना शुरू कर दिया, चाहे अमेरिका के साथ परमाणु समझौता हो या फिर देश की अर्थव्यवस्था में लिए जाने वाले फैसले। हमेशा उन्होंने सरकार को समर्थन कर रहे है सहयोगियों को साधने का काम किया। इतना ही नहीं, खुद सोनिया गांधी भी राजनीतिक संकट के समय सबसे पहले यदि किसी से सलाह-मशविरा करती थीं तो वह प्रणब मुखर्जी हुआ करते थे। आखिरकार कांग्रेस ने उनके योगदान को सम्मान दिया। उन्हें भारत का राष्ट्रपति बनाया। उनका राजनीतिक कद कितना ऊंचा था, यह इसी से समझा जा सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनके बारे में कहा था कि वह उनसे ज्यादा पीएम पद के योग्य व्यक्ति थे।

प्रतीक मिश्र/सहारा न्यूज ब्यूरो
नयी दिल्ली


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