मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, सामान्य श्रेणी को आर्थिक आधार पर आरक्षण 10%

Last Updated 08 Jan 2019 02:39:21 AM IST

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक दृष्टि से पिछड़ों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में बहुप्रतीक्षित 10 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दे दी है।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (फाइल फोटो)

मोदी सरकार ने लोक सभा चुनाव से पहले एक बड़ा दांव चल दिया है, जिसके तहत जाति-धर्म से परे जाकर आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला किया गया है। सोमवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक दृष्टि से पिछड़ों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में बहुप्रतीक्षित 10 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दे दी है। सरकार द्वारा निर्धारित कुछ शर्तों को पूरा करने वालों को इसका लाभ मिलेगा।

यानी कुल आरक्षण की सीमा 49.5 से बढ़कर 59.5 तक हो जाएगी। ऐसे में सरकार को इसे अमलीजामा पहनाने के लिए संविधान संशोधन विधेयक लाना होगा। यह विधेयक इसलिए भी लाना होगा, क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं है। सरकार इस संबंध में संविधान संशोधन विधेयक लाने की तैयारी में है। सरकार मंगलवार को लोकसभा में विधेयक पेश करेगी।

उधर, इसी घटना क्रम के मद्देनजर राज्य सभा का सत्र एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया है। सरकार के लिए राहत की बात यह है कि आम आदमी पार्टी, एनसीपी जैसे कुछ दलों की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।

गोपनीयता बरती गई : सामान्य तौर पर कैबिनेट की बैठक बुधवार को होती है, लेकिन प्रधानमंत्री ने सोमवार को ही कैबिनेट की बैठक बुलाकर जिन दो विधेयकों के प्रारूप को मंजूरी दी, उनमें से एक यह भी है। सूत्रों के मुताबिक बैठक के एजेंडे को अत्यंत गोपनीय रखा गया था। कैबिनेट के सदस्यों को भी पहले से इसकी जानकारी नहीं दी गई थी। बैठक के दौरान ही उन्हें इसके बारे में पता चला। संविधान संशोधन विधेयक होने के नाते इसके लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी।

आधार क्या होगा
1931 की जनगणना आरक्षण का आधार होगा। अभी भी एसटी/ एसटी/ ओबीसी को 1931 के आंकड़ों के आधार पर आरक्षण मिलता है। 2011 में जाति आधारित जनगणना हुई थी, लेकिन सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं किया।

ये होंगे पात्र
-    8 लाख से कम हो वाषिर्क आय
-    5 एकड़ से कम हो खेती की जमीन
-    1000 वर्ग फुट से कम का हो घर
-    100 गज से कम निगम की अधिसूचित जमीन हो
-    200 गज से कम निगम की गैर-अधिसूचित जमीन हो

अभी किस वर्ग को कितना आरक्षण
-    अनुसूचित जाति: 15 प्रतिशत
-    अनुसूचित जनजाति: 7.5 प्रतिशत
-    पिछड़ा वर्ग: 27 प्रतिशत
-    कुल आरक्षण: 49.5 प्रतिशत

फैसले के पीछे कारण
-    भाजपा समेत कई दल पहले से ही सामान्य श्रेणी के आर्थिक दृष्टि से पिछड़ों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के पक्ष में थे
-    एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मोदी सरकार द्वारा पलटने से अगड़ी जातियों में व्याप्त नाराजगी
-    मोदी सरकार द्वारा प्रमोशन में भी आरक्षण देने की वकालत से अगड़ी जातियों में नाराजगी थी
-    हाल ही में संपन्न तीन राज्य -राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़- विधान सभा चुनावों में भाजपा की पराजय

क्या है संवैधानिक स्थिति

-    सुप्रीम कोर्ट एमआर बालाजी मामले, 1962 में पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
-    शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण अनुच्छेद 15 के तहत मिलेगा। यह अनुच्छेद समानता का अधिकार देता है और धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है। इसके लिए संविधान में नया अनुच्छेद 15(ग) शामिल किया जाएगा।
-    सरकारी नौकरियों में आरक्षण अनुच्छेद 16 के तहत मिलेगा। यह अनुच्छेद सरकारी नौकरियों में रोजगार के लिए समान अवसर का अधिकार देता है। इसके लिए संविधान में नया अनुच्छेद 16(ग) शामिल किया जाएगा।

पहले भी हुए हैं प्रयास
आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णो को आरक्षण दिए जाने की मांग बहुत दिनों से की जा रही थी। लगभग सभी राजनीतिक दल इस बात को लेकर एकमत रहे हैं कि गरीब सवर्णो को आरक्षण मिलना चाहिए। आइए एक नजर डालते हैं-कब-कब और किसने सवर्णो को आरक्षण दिलाने की पहल की-
1.    सबसे पहले 1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था। 
2.    हालांकि,वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया।
3.    प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2003 में एक मंत्री समूह का गठन किया। हालांकि इसका फायदा नहीं हुआ और वाजपेयी सरकार 2004 का चुनाव हार गई।
4.    साल 2006 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने भी एक कमेटी बनाई, जिसको आर्थिक रूप से पिछड़े उन वगरे का अध्ययन करना था जो मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के दायरे में नहीं आते हैं,लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
5.     2007 में सवर्णो का मत पाने को लेकर मायावती ने गरीब सवर्णो के लिए आरक्षण की मांग की थी
6.    सितम्बर 2015 में राजस्थान सरकार ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक पिछड़ों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 14 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था।
7.    दिसम्बर 2016 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस बिल को रद कर दिया।
8.    हरियाणा में भी इसी तरह सवर्ण आरक्षण खत्म कर दिया गया था।
9.    गुजरात सरकार ने अप्रैल 2016 में सामान्य वर्ग के आर्थिक पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया था।
10.    उस वक्त फैसले में कहा गया था कि छह लाख रु पये सालाना आय से कम वाले परिवारों को इस आरक्षण के अधीन लाया जा सकता है।
11.     अगस्त 2016 में गुजरात हाईकोर्ट ने इस फैसले को गैरकानूनी और असंवैधानिक बता रद कर दिया था।

रोशन/सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment