बोफोर्स मामले की सुनवाई से जस्टिस खानविलकर ने खुद को अलग किया
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एएम खानविलकर ने राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील 64 करोड़ रुपए के बोफोर्स तोप सौदा दलाली मामले से संबंधित अपील पर सुनवाई से आज खुद को अलग कर लिया.
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) |
न्यायमूर्ति खानविलकर इस मामले की सुनवाई करने वाली प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के सदस्य थे. न्यायमूर्ति खानविलकर ने सुनवाई से खुद को अलग करने के अपने निर्णय की कोई वजह नहीं बताई. पीठ के तीसरे सदस्य न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड थे.
इस पीठ ने कहा कि अब इस मामले की 28 मार्च को एक नई पीठ सुनवाई करेगी.
सुप्रीम कोर्ट बोफोर्स तोप सौदा दलाली काण्ड में सभी आरोप निरस्त करने और सारे आरोपियों को आरोप मुक्त करने के दिल्ली हाई कोर्ट के 31 मई 2005 के फैसले के खिलाफ भाजपा नेता अजय अग्रवाल की अपील पर सुनवाई कर रही है.
इस बीच, केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने कोर्ट को सूचित किया कि हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ उसने भी दो फरवरी को अपील दायर की है.
सुप्रीम कोर्ट को आज अजय अग्रवाल की दलीलों को इस बिन्दु पर सुनना था कि इस मामले में तीसरे पक्ष के रूप में वह किस हैसियत से अपील दायर कर सकते हैं. अजय अग्रवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था.
अग्रवाल ने यह अपील उस वक्त दायर की थी जब सीबीआई 90 दिन की अनिवार्य अवधि के भीतर ऐसा करने में विफल रही थी.
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति आर एस सोढी (अब सेवानिवृत्त) ने इस मामले में फैसला सुनाया था और यूरोप में रहने वाले उद्योगपति हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ सारे आरोप निरस्त कर दिये थे.
इस फैसले से पहले हाई कोर्ट के ही एक अन्य न्यायाधीश जे डी कपूर ने इस मामले में चार फरवरी, 2004 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम को भी किसी भी प्रकार के आरोप से मुक्त करते हुए बोफोर्स और हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ आरोप तय करने का निर्देश दिया था.
भारतीय सेना के लिये 155एमएम की 400 हावित्जर तोपों की आपूर्ति करने के बारे में 24 मार्च, 1986 को भारत सरकार ने स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी ए बी बोफोर्स के साथ 1437 करोड़ रुपए का करार किया था. लेकिन, 16 अप्रैल 1987 को स्वीडिश रेडियो ने इस सौदे में भारत के शीर्ष राजनीतिकों और सैन्य अधिकारियों को रित दिये जाने का दावा किया था.
इसके बाद से ही मामले ने तूल पकडा और अंतत: सीबीआई ने 22 जनवरी, 1990 को भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश, धोखाधडी, जालसाजी और भ्रष्टाचार निवारण कानून के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी.
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