विश्व में भारत की प्रतिष्ठा पहले से अधिक बढ़ी: मोहन भागवत

Last Updated 05 Sep 2017 07:26:57 PM IST

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने आज कहा कि विश्व में भारत की प्रतिष्ठा पहले से अधिक बढ़ी है.


मोहन भागवत ने लालबहादुर शास्त्री और उनकी पत्नी ललिता शास्त्री की मूर्ति का अनावरण किया.

संघ प्रमुख ने कहा कि भारत विश्व स्तर पर प्रगति कर रहा है. उसकी प्रतिष्ठा पहले से कहीं अधिक बढ़ी है. विश्व के सभी राष्ट्रों का भारत के प्रति विश्वास बढ़ा है. भारत की प्रमाणिकता यही है कि वह जो बोलता है उस पर कायम रहता है. यही कारण है कि विश्व में इसकी ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ रही है.

भागवत ने किसी भी देश का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा चीन और पाकिस्तान की तरफ जरूर था. उन्होंने कहा कि प्रमाणिकता भारत का सम्बल है. भारत ने विस्तर पर जो भी बातें कही उसका प्रमाण दिया है जिसके कारण भारत का सम्मान विस्तर पर नजर आ रहा है. भारत की सामरिक नीति अब दबने वाली नहीं है. परस्पर विरोधी मतों के बावजूद प्रमाणिकता के आधार पर भारत अपनी कही बातों पर तटस्थ रहा जिसे विस्तर पर सराहा गया.

उन्होंने मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर मांडा में देश के द्वितीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और उनकी पत्नी ललिता शास्त्री की मूर्ति का अनावरण किया. इस अवसर पर उन्होंने शास्त्री जी के बारे में कहा कि तत्व गणमान्य है और शास्त्री जी गणनायक थे. शास्त्री जी ने देशवासियों से आह्वान किया था कि एक दिन भोजन न करें. लोगों ने इसका पालन किया. वह चीजें अब और मुखर होकर सामने आ रही है और लोग इसका पालन कर रहे हैं. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देश में स्वच्छता अभियान है जिससे लोग तेजी से अपने को जोड़ रहे हैं.

इस अवसर पर भागवत ने शास्त्री जी के कुछ क्षणों को स्मरण कर बताया कि शास्त्री जी और ललिता जी धार्मिक प्रवृत्ति के थे. हवाई जहाज में जब शास्त्री जी देश की राजनीति की फाइलें पलटते थे तब ललिता जी उनके बगल में बैठकर रामायण पढ़ती थीं. ताशकन्द जाने से पहले शास्त्री जी ने ललिता जी से कहा था कि वहां से लौटकर आने के बाद राजनीति से निवृत्त होकर यहीं गांव में ही रहेंगे. यह उनकी सादगी का परिचायक है. उनके विचार बहुत ऊंचे थे.

उन्होंने कहा कि गंगा गंगोत्री से चलकर सागर के खारे पानी में मिलती है. गंगा के जल का ऐसा गुण है कि वह सागर के पानी को दो किलोमीटर अन्दर तक मीठा कर देती है. देश की अनेक नदियां अपनी-अपनी पवित्रता लेकर आती हैं और गंगा में विलय करती हैं. विलय के बाद उनका अपना कोई नाम नहीं होता सिवाय 'गंगा'. शास्त्री जी भी ऐसे ही थे.

श्री भागवत ने कहा कि गंगा, गंगा की तरह रहे. उसकी शक्ति को बरकरार रखने के लिए अगर हम पूरक नहीं बने तो रोधी भी नहीं बनना चाहिए. उन्होंने कहा कि गंगा प्रदूषित हो रही है. इसे प्रदूषण से बचाने की बारी हमारी है.



उन्होंने कहा कि विज्ञान कहता है जैसे सोचोगे वैसा ही आचरण बनेगा. किसी भी महापुरुष के कृति का स्मरण करने से हम भी उसी प्रकार बनने का प्रयास कर सकते हैं. उसके लिए सतत प्रयास जरूरी है. यह जरूरी नहीं कि हम पूर्णत: उसकी तरह बन जायेंगे लेकिन उसकी दो बातें भी यदि आत्मसात करते हैं तो अंश मात्र हमारे अन्दर उनके जैसा चरित्र अवश्य आता है. जीवन में हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए. प्रयास से ही किसी भी चीज की प्राप्ति होती है.

भागवत ने नेता की पहचान बताते हुए कहा कि नेता को शिक्षक होना चाहिए. उसे किसी भी चीज को आचरण में उतराना चाहिए जिससे उसका सकारात्मक प्रभाव लोगों पर पड़े. लोकल नेता को नेतृत्व करना होता है. अत: उसे किसी भी चीज को पहले अपने आचरण में शामिल करना चाहिए तब उसकी सकारात्मक सीख जनता पर असर करती है.

उन्होंने कहा कि शास्त्री जी एक तपस्वी थे. जिनके तपस्या से तारण मिलता है वह स्थल तीर्थ है. यह मेरा सौभाग्य है कि आज मैं यहां पहुंच कर उनकी मूर्ति का अनावरण किया. भागवत ने लालबहादुर शास्त्री और उनकी पत्नी ललिता शास्त्री की मूर्ति पर लाल तिलक लगाया और उन्हें माल्यार्पण किया. इस अवसर पर अनिल शास्त्री, सुनील शास्त्री और उनके परिवार के अन्य सदस्यों समेत स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह तथा अन्य गणमान्य उपस्थित रहे.

वार्ता


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment