मेट्रो परियोजनाओं के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी जरूरी
सरकार ने देश में मेट्रो के दिनों-दिन बढते जाल और बड़े शहरों की मेट्रो नेटवर्क शुरू किये जाने की मांग को देखते हुए नयी मेट्रो रेल नीति बनायी है जिसमें केन्द्रीय सहायता हासिल करने के लिए परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी को अनिवार्य बनाया गया.
वित्त मंत्री अरूण जेटली (फाइल फोटो) |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आज दिल्ली में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस नीति को मंजूरी दी गयी.
बैठक के बाद वित्त मंत्री अरूण जेटली तथा शहरी विकास मंत्री नरेन्द्र तोमर ने संवाददाताओं को बताया कि नयी मेट्रो रेल नीति राज्य सरकारों के साथ परामर्श के बाद बनायी गयी है और इसमें मेट्रो परियोजनाओं के लिए निजी-सार्वजनिक भागीदारी के पीपीपी मॉडल को अनिवार्य बनाया गया है.
नीति में प्रावधान किया गया है कि केवल उन्हीं मेट्रो परियोजनाओं के लिए केन्द्रीय सहायता मंजूर की जायेगी जो पीपीपी मॉडल पर आधारित होगी. निजी क्षेत्र की भागीदारी बढाने का कदम मेट्रो परियोजनाओं की भारी भरकम लागत को देखते हुए उठाया गया है जिससे कि पूंजी जुटाई जा सके. निजी क्षेत्र की भागीदारी स्चालित किराया प्रणाली, संचालन और सेवाओं के रख रखाव जैसे किसी भी क्षेत्र में की जा सकती है.
उन्होंने कहा कि देश में मेट्रो का जाल तेजी से फैल रहा है और कई बड़े शहर मेट्रो नेटवर्क शुरू करने की मांग कर रहे हैं जिसे देखते हुए मेट्रो रेल के लिए एक सुव्यवस्थित नीति बनाना जरूरी हो गया था.
नयी मेट्रो रेल नीति में यात्रियों को स्टेशनों से घर और घर से स्टेशन तक आवागमन का साधन उपलब्ध कराने पर भी जोर दिया गया है. विशेष रूप से पांच किलोमीटर के क्षेत्र में इस तरह की सुविधा पर अधिक जोर दिया गया है. मेट्रो परियोजना के प्रस्ताव में यह बताना होगा कि यात्रियों के स्टेशनों से घरों तक और वहां से स्टेशनों तक आवागमन के लिए किस तरह का साधन उपलब्ध कराया जायेगा.
सरकार चाहती है कि बड़े शहर परियोजना शुरू करने से पहले मांग, क्षमता, लागत और क्रियान्वयन में आसानी जैसे कारकों का व्यापक आकलन तथा विश्लेषण करें और इसके बाद मेट्रो, बीआरटी, लाइट रेल ट्रांजिट, ट्रामवे या क्षेत्रीय रेल में से किसी एक का चयन करें. इसके पीछे उद्देश्य यह है कि शहरी परिवहन परियोजना इस तरह की होनी चाहिए जिनसे शहरों की कायापलट करने में मदद मिल सके.
नयी नीति में राज्यों को किराया निर्धारण प्राधिकरण के गठन और अन्य नियम तय करने के भी अधिकार दिये गये हैं. इन परियोजनाओं के लिए केन्द्रीय सहायता लेने के तीन विकल्प होंगे.
अभी देश के 8 शहरों में मेट्रो नेटवर्क की लंबाई 370 किलोमीटर है जबकि 13 शहरों में 537 किलोमीटर की परियाजनाओं पर काम जारी है.
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