माटी-चक्र

Last Updated 16 Feb 2022 01:12:25 AM IST

अगर यह शरीर उसी मिटटी का बना है, जिस पर हम चलते हैं, तो फिर हमें ऐसा अनुभव क्यों नहीं होता?


सद्गुरु

हम पूरी धरती को अपने हिस्से के रूप में कैसे अनुभव कर सकते हैं? जब आपका जन्म हुआ था, आपका कद कितना था? अब कितना है? इस बीच उसके बढ़कर विकसित होने के लिए आपने क्या किया? आप कहेंगे, ‘उसे खाना दिया’। लेकिन आपको भोजन कहां से मिला? इसी माटी से।

आपकी खाई हरेक चीज-साग-सब्जी और अनाज इसी माटी से ही तो तैयार हुए। आप सामिष खाने वाले हैं, तो आपकी खाई बकरी और मुर्गी भी तो इसी माटी से उपजी वस्तुओं को खाकर बड़ी हुई थीं, और फिर आपकी भूख बुझाई थी। जैसे भी हो, कुल मिलाकर मूल रूप से इसी माटी से आपका शरीर बना है। ज्यों-ज्यों आपके शरीर में माटी जुड़ती गई आपने उसे ‘मैं’ कहकर अपना लिया। एक लोटे में जल रखा है। क्या वह जल और आप एक हैं? आप कहेंगे ‘नहीं’। उस जल को लेकर पी लीजिए। जब वह आपके शरीर में मिल गया उसे क्या कहेंगे?

अब वह ‘आप’ बन गया न? मतलब यह है कि आपके अनुभव की सीमा में जो आ जाता है, उसी को आप ‘मैं’ के रूप में महसूस करेंगे। जब तक वह बाहर है, आप समझते हैं, वह अलग है और आप अलग। क्या आप महसूस करते हैं कि बाहर वाले पानी, माटी, हवा और ताप से ही आपका निर्माण हुआ है? जब वे आपका हिस्सा बन गए, उन्हें अलग-अलग करके देखना संभव नहीं रहा। कुल मिलाकर उसे ‘मैं’ की पहचान दे दी आपने। आपके पुरखे कहां गए? चाहे उन्हें दफनाया गया हो या जलाया गया हो, वे इसी माटी में समा गए। न भूलें कि उन्हीं के ऊपर आप रोज कदम रखते हुए चलते हैं। आप भी आखिर में कहां जाने वाले हैं? आपके मूल तत्वरूपी इसी माटी के ही अंदर।

थोड़ी-सी माटी आपका स्वरूप बनकर सांस ले रही है। और कुछ माटी आपके बाग में ऊंचे पेड़ के रूप में बढ़कर खड़ी है, और थोड़ी माटी कुर्सी बन गई है, जिस पर आप बैठे हैं। इसी माटी-चक्र की प्रक्रिया में आम, नीम, इमली, फूल, केंचुआ, मनुष्य अनेक और भिन्न-भिन्न अवतार ले रहे हैं, लेने वाले हैं। घड़े में रखें या छोटे कलश में, उसे आप पानी ही तो कहेंगे? यही दलील आप पर भी लागू होती है न?



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment