अंधविश्वास

Last Updated 11 Feb 2022 01:33:12 AM IST

ईश्वर को मानने वाला भी अंधविश्वासी हो सकता है, ईश्वर को न मानने वाला भी उतना ही अंधविश्वासी, उतना ही सुपरस्टीशस हो सकता है।


आचार्य रजनीश ओशो

अंधविश्वास की परिभाषा समझ लेनी चाहिए। अंधविश्वास का मतलब है, बिना जाने अंधे की तरह जिसने मान लिया हो। रूस के लोग अंधविश्वासी नास्तिक हैं, हिंदुस्तान के लोग अंधविश्वासी आस्तिक हैं। दोनों अंधविश्वासी हैं। न तो रूस के लोगों ने पता लगा लिया है कि ईश्वर नहीं है और तब माना हो, और न हमने पता लगा लिया है कि ईश्वर है और तब माना हो। तो अंधविश्वास सिर्फ  आस्तिक का होता है, इस भूल में मत पड़ना। नास्तिक के भी अंधविश्वास होते हैं।

बड़ा मजा तो यह है कि साइंटिफिक सुपरस्टीशन जैसी चीज भी होती है, वैज्ञानिक अंधविश्वास जैसी चीज भी होती है। जो कि बड़ा उलटा मालूम पड़ता है कि वैज्ञानिक अंधविश्वास कैसे होगा! वैज्ञानिक अंधविश्वास भी होता है। अगर आपने युक्लिड की ज्यामेट्री के बाबत कुछ पढ़ा है, तो आप पढ़ेंगे, बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं ज्यामेट्री तो युक्लिड कहता है रेखा उस चीज का नाम है जिसमें लंबाई हो, चौड़ाई नहीं। इससे ज्यादा अंधविश्वास की क्या बात हो सकती है? ऐसी कोई रेखा ही नहीं होती, जिसमें चौड़ाई न हो। बच्चे पढ़ते हैं कि बिंदु उसको कहते हैं, जिसमें लंबाई चौड़ाई दोनों न हों। और बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी इसको मानकर चलता है कि बिंदु उसे कहते हैं, जिसमें लंबाई चौड़ाई न हो। जिसमें लंबाई चौड़ाई न हो, वह बिंदु हो सकता है?

हम सब जानते हैं कि एक से नौ तक की गिनती होती है, नौ डिजिट होते हैं, नौ अंक होते हैं गणित के। कोई पूछे कि यह अंधविश्वास से ज्यादा है? नौ ही क्यों? कोई वैज्ञानिक दुनिया में नहीं बता सकता कि नौ ही क्यों? सात क्यों नहीं? ऐसे गणितज्ञ हुए हैं। लिबनीत्स एक गणितज्ञ हुआ है, जिसने तीन से ही काम चला लिया। उसका ऐसा है कि एक, दो, तीन, फिर आता है दस, ग्यारह, बारह, तेरह, फिर आता है बीस, इक्कीस, बाईस, तेईस। बस, ऐसी उसकी संख्या चलती है। काम चल जाता है, कौन सी अड़चन होती है! वह भी गिनती कर लेगा यहां बैठे लोगों की। और वह कहता है कि मेरी गिनती गलत, तुम्हारी सही, कैसे तुम कहते हो हम तीन से ही काम चला लेते हैं। वह कहता है, नौ की जरूरत क्या है?



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