शिक्षक

Last Updated 21 Jan 2020 12:38:06 AM IST

मेरी दृष्टि में कोई भी व्यक्ति ठीक अर्थों में शिक्षक तभी हो सकता है, जब उसमें विद्रोह की ज्वलंत अग्नि हो।


आचार्य रजनीश ओशो

जिस शिक्षक के भीतर विद्रोह की अग्नि नहीं है, वह केवल किसी न किसी निहित, स्वार्थ का, चाहे समाज, चाहे धर्म, चाहे राजनीति, उसका एजेंट होगा। शिक्षक होने का मतलब क्या है?

क्या हम सोचते हैं-आप बच्चों को सिखाते होंगे, सारी दुनिया में सिखाया जाता है बच्चों को, बच्चों को सिखाया जाता है, प्रेम करो! लेकिन कभी आपने विचार किया है कि आपकी पूरी शिक्षा की व्यवस्था प्रेम पर नहीं, प्रतियोगिता पर आधारित है। एक बच्चा प्रथम आ जाता है तो दूसरे बच्चों से कहते हैं कि देखो, तुम पीछे रह गए। आप क्या सिखा रहे हैं?

आप अहंकार सिखा रहे हैं कि जो आगे है वह बड़ा है जो पीछे है वह छोटा है। लेकिन किताबों में आप कह रहे हैं कि विनीत बनो। आपकी पूरी व्यवस्था सिखा रही है कि घृणा करो, ईर्ष्या करो, आगे निकलो, दूसरे को पीछे हटाओ और आपकी पूरी व्यवस्था उनको पुरस्कृत कर रही है। जो आगे आ रहे हैं, उनको गोल्ड मेडल दे रही है,  र्सटििफकेट दे रही है, मालाएं पहना रही है, फोटो छाप रही है; और जो पीछे खड़े हैं उनको अपमानित कर रही है। एक छोटी सी कहानी कहूं, उससे खयाल में आए। तीन सूफी फकीरों को फांसी दी जा रही थी और दुनिया में हमेशा धार्मिंक आदमी संतों के खिलाफ रहे हैं।

तो धार्मिंक लोग उन फकीरों को फांसी दे रहे थे। तीनों बैठे हुए थे कतार में। जल्लाद एक-एक का नाम बुलाएगा और उनको काट देगा। उसने चिल्लाया कि नूरी कौन है, उठ कर आ जाए। लेकिन नूरी नाम का आदमी तो नहीं उठा, एक दूसरा युवक उठा और वह बोला कि मैं तैयार हूं, मुझे काट देंगे। उसने कहा: लेकिन तेरा तो नाम यह नहीं है। इतनी मरने की क्या जल्दी है? उसने कहा: मैंने  प्रेम किया और जाना कि जब मरना हो तो आगे हो जाओ और जब जीना हो तो पीछे हो जाओ। मेरा मित्र मरे, उसके पहले मुझे मर जाना चाहिए।

और अगर जीने का सवाल हो तो मेरा मित्र जीए, उसके पीछे मुझे जीना चाहिए। प्रेम तो यही कहता है, लेकिन प्रतियोगिता क्या कहती है? प्रतियोगिता कहती है, मरने वाले के पीछे हो जाना और जीने वाले के आगे हो जाना। और हमारी शिक्षा क्या सिखाती है? प्रेम सिखाती है, या प्रतियोगिता? और जब सारी दुनिया में प्रतियोगिता सिखाई जाती हो और बच्चों के दिमाग में काम्पिटीशन और एंबीशन का जहर भरा जाता हो तो क्या दुनिया अच्छी हो सकती है?



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