कुंठित भावनाएं
मन का भाव दब कर मन की एक ग्रंथि बन जाता है। जो व्यक्ति अनेक मानसिक व्याधियों से ग्रस्त हैं उसका कारण यह दबे हुए नाना प्रकार के कुंठित भाव ही हैं।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
बचपन की किस कटु अनुभूति के कारण ये दलित भाव दुख और व्याधि के कारण बनते हैं और मनुष्य को परेशान किए रहते हैं। क्रोधी, चिड़चिड़ी, बात बात में झगड़ने वाली कर्कशा नारी के बिगड़े हुए स्वभाव का कारण बचपन में उस पर नाना प्रकार के दमन हैं। कठोर व्यवहार भी विकसित होकर गुप्त भावना ग्रंथि का रूप धारण कर लेता है। जो नारी या पुरु ष बच्चों को घृणा करता है, उसका कारण यह है कि उसमें मातृत्व या पितृत्व के सहज स्वाभाविक भाव पनपने नहीं पाए हैं।
अनेक पाश्चात्य अविवाहित नारियां पालतू कुत्तों तथा बिल्लियों को अपने पास रखती हैं, उनका प्रेम से चुम्बन करती हैं और अपने मातृत्व के सहज वात्सल्य का माधुर्य लूटती हैं। जो कोमल स्नेह नारी की प्राकृतिक सम्पदा है, जिससे मानव शिशु पलता -पनपता है, वह कुत्ते-बिल्लियों पर न्योछावर कर के तृप्त किया जाता है। वात्सल्य और प्रेम की इन भावनाओं को निकालने से पाश्चात्य नारियां कृत्रिम मातृत्व के सुख का अनुभव करती हैं। जिन पुरु षों तथा नारियों में इस प्रकार की अन्य अनेक इच्छाएं कुंठित पड़ी हैं, वे समाज के भय से दलित होकर मन में कुंठा उत्पन्न कर सकती हैं। महत्त्वाकांक्षा, प्रसिद्धि, महत्ता आदि न मिलने से मनुष्य चोर, डाकू या शैतान बन सकता है।
नारियों की सेक्स भावना अतृप्त रहने से उनमें हिस्टीरिया, प्रमाद, चिड़िचड़ापन उत्पन्न हो सकते हैं। अत: मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक स्वस्थ स्त्री पुरु ष का अवरु द्ध भावनाओं को निकालने के मार्ग ढूंढ़िये। ऐसी नारियां समाज सेवा में तन मन लगा कर अपने हृदय का भार हलका कर सकती हैं अथवा यतीम खाने के अनाथ बच्चों की देख-रेख, सेवा, सुश्रूषा कर मातृत्व की सहज वृत्ति की तृप्ति कर सकती हैं।
उन्हें चाहिए कि वे गरीबों की बस्तियों में जाया करें। वहां के अर्धनग्न और भूखे बच्चों की देख-रेख करें। उन्हें स्नान करायें और स्वच्छ वस्त्र धारण करायें, उनके साथ खेलें, गायें, बातचीत करें। इस प्रेम से गुप्त भावनाओं को निकालने का स्वस्थ मार्ग मिलता है, जो मानसिक स्वास्थ्य और सुख के लिए अमृत तुल्य है। आपके मन की कोई भी भावना, यदि अतृप्त है तो मानसिक संस्थान में भावना ग्रंथि उत्पन्न करेंगी और नाना मनोविकारों में प्रस्फुटित होंगी।
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