मानसिक बीमारी
मानसिक रूप से बीमार होना कोई मजाक की बात नहीं है। ये बहुत दर्दनाक चीज है।
![]() जग्गी वासुदेव |
आप को अगर कोई शारीरिक रोग है तो सभी आप के लिए करुणावान होंगे, पर जब आप को कोई मानसिक रोग है तो, दुर्भाग्यवश, आप हंसी के पात्र बन जाएंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये मालूम करना बहुत कठिन है कि कोई कब बीमार है और कब बेवकूफी कर रहा है? यदि किसी के परिवार में कोई मानसिक रूप से परेशान है, तो ये उनके लिए सबसे बड़ी समस्या है।
आप को पता ही नहीं चलता कि वे कब वास्तव में पीड़ा भोग रहे हैं और कब ऐसे ही बनावट कर रहे हैं? आप समझ नहीं पाते कि कब आप उनके साथ करुणावान हों और कब कठोर? मनुष्य का मानिसक स्वास्थ्य एक नाजुक चीज है। स्वस्थचित्तता और पागलपन के बीच एक बहुत छोटा अंतर होता है। यदि आप अंतर की इस सीमा रेखा को रोज धक्का मारते हैं, तो आप उसे कभी पार भी कर लेंगे। आप जब क्रोध में होते हैं, तो हम कहते हैं,‘वो गुस्से से पागल हो रहा है या,‘वो अभी पागल हो गया है।’ आप उस थोड़े से पागलपन का मजा भी ले सकते हैं।
थोड़ी देर के लिए सीमा पार करते हैं और एक तरह की स्वतंत्रता और शक्ति का अनुभव करते हैं। पर किसी दिन, अगर आप इसे पार कर के वापस लौट न पाएं, तो पीड़ा शुरू हो जाती है। ये शारीरिक दर्द की तरह नहीं है, ये बहुत ज्यादा गहरी पीड़ा है। मैं ऐसे बहुत से लोगों के साथ रहा हूं, जो मानसिक रूप से बीमार हैं और उनकी सहायता करता रहा हूं। ऐसा किसी को नहीं होना चाहिए, पर दुर्भाग्यवश अब दुनिया में ये छूत की बीमारी की तरह फैल रहा है। पश्चिमी समाजों में ये बहुत बड़े स्तर पर हो रहा है, और भारत भी बहुत पीछे नहीं है।
खास तौर पर शहरी इलाकों के लोग इस दिशा में कई तरह से आगे बढ़ेंगे क्योंकि शहरी भारत पश्चिम की अपेक्षा ज्यादा पश्चिमी होता जा रहा है। अमेरिका की तुलना में यहां ज्यादा लोग डेनिम पहनते हैं। मानसिक बीमारियां, पहले के किसी भी समय की अपेक्षा, अब ज्यादा बढ़ रही हैं क्योंकि हम वे सब सहारे, साथ, सहयोग के साधन खींच कर फेंक रहे हैं, जो लोगों के पास थे। पर हम इन सहारों के स्थान पर कुछ भी ला नहीं रहे हैं। अगर लोग अपने आप में चेतन और सक्षम हों तो सब कुछ ठीक रहेगा, भले ही आप सभी सहारों को खींच कर अलग कर दें।
Tweet![]() |