वसंत पंचमी

Last Updated 23 Jan 2020 12:29:45 AM IST

वसंत पंचमी उमंगों का दिन है, प्रेरणा का दिन है, प्रकाश का दिन है। वसंत के दिनों में उमंग आती है, उछाल आता है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

समर्थ गुरु  रामदास के जीवन में इन्हीं दिनों एक उछाल आया-क्या हम अपनी जिन्दगी का बेहतरीन इस्तेमाल नहीं कर सकते? क्या हमारी जिन्दगी अच्छी तरह से खर्च नहीं हो सकती? एक तरफ उनके विवाह की तैयारियां चल रही थीं। समर्थ गुरु  रामदास को शक्ल दिखाई पड़ी, औरत, औरत के बच्चे, बच्चे के बच्चे, शादियां, ब्याह आदि की बड़ी लंबी श्रृंखला दिखाई पड़ी।

दूसरी तरफ आत्मा ने संकेत दिया, परमात्मा ने संकेत दिया और कहा-अगर आपको जिन्दगी इतनी कम कीमत की नहीं जान पड़ती है, अगर आपको महंगी मालूम पड़ती है तो आइए, दूसरा वाला रास्ता आपके लिए खुला पड़ा है। महानता का रास्ता खुला हुआ पड़ा है। समर्थ गुरु ने विचार किया। उछाल आया, उमंग आई और ऐसी उमंग आई कि रोकने वालों से रु की नहीं। मुकुट को फेंका अलग और कंगन को तोड़ा अलग। ये गया, वो गया, लड़का भाग गया। दूल्हा कौन हो गया? समर्थ गुरु  रामदास हो गया। कौन?

मामूली-सा आदमी छोटा-सा लड़का छलांग मारता चला गया और समर्थ गुरु  रामदास होता चला गया। यहां मैं उमंग की बात कह रहा था। उमंग जब भीतर से आती है तो रु कती नहीं है। उमंग जब आती है वसंत के दिनों में। इन्हीं दिनों का किस्सा है बुद्ध भगवान का। सारे संसार में फैले हुए हाहाकार ने पुकारा और कहा कि आप समझदार आदमी हैं। क्या आप औरत और बच्चे के लिए जिएंगे? यह काम तो कोई भी कर सकता है। बुद्ध भगवान के भीतर किसी ने पुकारा और वे छलांग मारते हुए, उछलते हुए कहीं के मारे कहीं चले गए। बुद्ध भगवान हो गए।

शंकराचार्य की उमंग भी इन्हीं दिनों की है। शंकराचार्य की मम्मी कहती थीं कि मेरा बेटा पढ़-लिखकर गजेटेड ऑफिसर बनेगा। बेटे की बहू आएगी, गोद में बच्चा खिलाऊंगी। मम्मी बार-बार यही कहतीं कि मेरा कहना नहीं मानेगा तो नरक में जाएगा। शंकर कहता-अच्छा मम्मी कहना नहीं मानूंगा तो नरक जाऊंगा। हमको जाना है तो अवश्य जाएंगे महानरक में अच्छे काम के लिए। मेरे संकल्प में रुकावट लगाती हो तो आत्मा और परमात्मा का कहना न मानकर तुम कहां जाओगी? विचार करता रहा, कौन? शंकराचार्य।



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