सबको स्वीकार करें

Last Updated 24 Jan 2020 02:47:00 AM IST

आज जो कीचड़ है, वही कल फूल बन सकता है, आज जो गंदगी है, वह कल फल बन सकती है, आज जो दुर्गध है, वह कल सुगंध में बदल सकती है।


जग्गी वासुदेव

अगर हम आपके निर्णय से चलें और सारी गंदगी को बाहर कर दें, तो आपके हिस्से में ना कभी फूल आएगा, न फल, और न ही खुशबू। इसलिए सबको साथ लेकर चलने की सोच कोई पसंद का मुद्दा नहीं है क्योंकि ब्रह्माण्ड की बनावट ऐसी है ही नहीं। आज जो इंसान है, वह कल मिट्टी हो जाएगा।

अगर हमें आज ही यह समझ आ जाए, तो हम इसे योग कहते हैं। वरना अगर यही बात अंत में समझ आती है, तो हम इसे अंतिम संस्कार कहते हैं। बेहतर होगा कि यह अनुभूति आपको अभी हो जाए। आपको यह बात समझनी चाहिए कि आप फिलहाल भी इस धरती का वैसा ही अंश है, जैसा कि आप मरने के बाद होंगे। आप जिसे ‘मैं’ कहते हैं, या जिसे एक ‘कीड़ा’, ‘केंचुआ’ या ‘गंदगी’ कहते हैं, बुनियादी रूप से सब एक ही हैं।

आप भोजन और कीचड़ के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर सकते, लेकिन बिना कीचड़ के भोजन पैदा हो ही नहीं सकता। आज जो भोजन है, वह कल फिर से गंदगी में बदल जाएगा। अगर सबको समाहित करने का भाव नहीं होगा, तो जीवन में कोई जैविक एकता होगी ही नहीं। इस जैविक एकता के अभाव में इंसान का संघर्ष अंतहीन हो जाता है। शुरू में यह एक मानसिक समस्या के रूप में शुरू होगा। बाद में आप जैसे-जैसे तरक्की करेंगे, आप भावनात्मक रूप से निराशा से भर उठेंगे। अगर आप आगे और भी तरक्की करते हैं तो यह एक शारीरिक रोग का रूप ले लेगा। जैसे-जैसे हम जीवन के साथ जैविक एकता खोते जाएंगे, वैसे-वैसे हमारी दशा खराब होती जाएगी।

तब हम नई-नई बीमारियों की खोज करेंगे। वैसे दुनिया में इसकी शुरुआत हो चुकी है। अगर आप जीवन व जीवन बनाने वाले पदाथरे, जैसे धरती-जिस पर आप चलते हैं, पानी- जो आप पीते हैं, हवा, जिसमें आप सांस लेते हैं, या फिर आकाश जो आपको थामे हुए है, के साथ जाने-अनजाने, सचेतन या अचेतन रूप से अपनी दूरी बना लेंगे तो विकृति तो आएगी ही। तब आप एक गरिमापूर्ण जीवन ना होकर, एक विकृत जीवन होंगे। अगर आप यह नहीं जानते कि सहज रूप से जीवन के एक अंश के रूप में कैसे रहा जाए तो आप एक विकृत जीवन जी रहे हैं।



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