आध्यात्मिकता

Last Updated 20 Sep 2019 05:58:59 AM IST

भारतीय आध्यात्मिकता, हमेशा ऐसे पुरुषों और महिलाओं का एक समृद्ध मिश्रण रही है, जो अपनी चेतना के शिखर पर पहुंचे थे।


जग्गी वासुदेव

जब मनुष्य के आंतरिक स्वभाव की बात होती है तो महिलाओं में भी उतनी ही योग्यता है, जितनी पुरुषों में। यह तो आपका बाहरी हिस्सा, यानि शरीर है, जिसे आप पुरुष या महिला कहते हैं। जो चीज भीतर है, वो एक ही है। बाहरी हिस्सा यह बिल्कुल भी तय नहीं करता कि किसी की आध्यात्मिक योग्यता क्या है। प्राचीन काल में महिलाएं भी यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करतीं थीं क्योंकि इसे पहने बिना वे शास्त्र नहीं पढ़ सकतीं थीं। पुरुषों की तरह महिलाएं भी 10 से 20 वर्ष विवाहित रहतीं थीं।

और फिर, यदि उन्हें आध्यात्मिक होने की गहरी इच्छा होती थी तो वे भी परिवार का त्याग कर सकतीं थीं। लेकिन जब दुष्ट, अत्याचारी लोगों ने भारत पर हमले करने शुरू किए तो धीरे धीरे स्त्रियों की स्वतंत्रता समाप्त हो गई। पारम्परिक नियम बदलने लगे। शायद कुछ समय के लिये यह जरूरी भी था क्योंकि उस समय की परिस्थितियों के अनुसार महिलाओं की अपनी सुरक्षा के लिए, उन पर कुछ बंधन लगाना आवश्यक हो गया। लेकिन, दुर्भाग्यवश, यह कायदा ही बन गया। महिलाओं के लिए सबसे पहली गलत बात यह हुई कि यह घोषित किया गया कि वे यज्ञोपवीत नहीं पहन सकतीं।

फिर यह भी कहा गया कि महिलाओं को मुक्ति केवल अपने पति की सेवा करने से ही मिल सकती है। यह तय किया गया कि केवल पुरु ष ही परिवार का त्याग कर सकेंगे। यदि एक स्त्री जिसमें से पुरु ष उत्पन्न होता है- हीन है, तो फिर पुरुष श्रेष्ठ कैसे हो सकता है? इसकी कोई सम्भावना ही नहीं है। ये समस्या सारे विश्व में है। ये सिर्फ  एक गलत व्यक्ति के विचार नहीं है। ये अब पुरुषों की जीवन पद्धति ही हो गई है, और उनके धर्म और संस्कृति का एक हिस्सा भी। दुर्भाग्य से, ये चीजे कभी-कभी आज भी होती दिखतीं हैं। स्त्री को बताया जाता है कि उसका जन्म सिर्फ  पिता या पति की सेवा करने के लिए ही हुआ है। लोग अस्तित्व के अद्वैत रूप की चर्चा करते हैं और फिर भी कहते हैं,‘हरेक वस्तु एक ही है, पर महिलाएं कम हैं’। यह जानते हुए कि पुरुष का अस्तित्व स्त्री पर निर्भर करता है, यदि वह एक स्त्री को समान स्तर पर स्वीकार नहीं करता तो उसके लिए अस्तित्व के अद्वैत रूप को स्वीकार कर सकने का प्रश्न ही नहीं उठता।



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