मृत्यु क्या है

Last Updated 28 May 2019 06:26:25 AM IST

मृत्यु क्या है? मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु एक झूठ है-सरासर झूठ-जो न कभी हुआ, न कभी हो सकता है।


आचार्य रजनीश ओशो

जो है, वह सदा है। रूप बदलते हैं। रूप की बदलाहट को तुम मृत्यु समझ लेते हो। बच्चे थे, फिर तुम जवान हो गए। बच्चे का क्या हुआ? बच्चा मर गया? अब तो बच्चा कहीं दिखाई नहीं पड़ता! जवान थे, अब क्या हो गए। जवान का क्या हुआ? जवान मर गया? जवान अब तो कहीं दिखाई नहीं पड़ता! सिर्फ  रूप बदलते हैं। दिन में तुम जागे थे, रात में सो जाओगे। दिन और रात एक ही चीज के रूपांतरण हैं। जो जागा था, वही सो गया। बीज में वृक्ष छिपा है। जमीन में डाल दो, वृक्ष पैदा हो जाएगा।

जब तक बीज में छिपा था, दिखाई नहीं पड़ता था। मृत्यु में तुम फिर छिप जाते हो, बीज में चले जाते हो। फिर किसी गर्भ में पड़ोगे; फिर जन्म होगा। और गर्भ में नहीं पड़ोगे, तो महाजन्म होगा, तो मोक्ष में विराजमान हो जाओगे। मरता कभी कुछ भी नहीं। विज्ञान भी इस बात से सहमत है। विज्ञान कहता है कि किसी चीज को नष्ट नहीं किया जा सकता। विज्ञान कहता है पदार्थ अविनाशी है। धर्म कहता है  चेतना अविनाशी है। विज्ञान और धर्म इस मामले में राजी हैं कि जो है, वह अविनाशी है। मृत्यु है ही नहीं। तुम पहले भी थे; तुम बाद में भी होओगे। और अगर तुम जाग जाओ, अगर तुम चैतन्य से भर जाओ, तो तुम्हें सब दिखाई पड़ जाएगा जो-जो तुम पहले थे। बुद्ध ने अपने पिछले जन्मों की कितनी कथाएं कही हैं! तब ऐसा था। तब ऐसा था। कभी जानवर थे; कभी पौधा, कभी पशु थे; कभी पक्षी। कभी राजा, कभी भिखारी।

कभी स्त्री, कभी पुरु ष। बुद्ध ने बहुत कथाएं कही हैं। जो जाग जाता है, उसे सारा स्मरण आ जाता है। मृत्यु तो सिर्फ  पर्दे का गिरना है। तुम नाटक देखने गए। पर्दा गिरा। क्या तुम सोचते हो, मर गए सब लोग जो पर्दे के पीछे हो गए! वे सिर्फ  पर्दे के पीछे हो गए। अब फिर तैयारी कर रहे होंगे। मूंछ इत्यादि लगाएंगे; दाढ़ी वगैरह लगाएंगे, लीप-पोत करेंगे। फिर पर्दा उठेगा। शायद तुम पहचान भी न पाओ कि जो सज्जन थोड़ी देर पहले कुछ और थे, अब कुछ और हो गए हैं!

तब वे बिना मूंछ के थे; अब मूंछ लगाकर आ गए हैं। शायद तुम पहचान भी न पाओ। बस, यही हो रहा है। इसलिए संसार को नाटक कहा गया है, मंच कहा गया है। यहां राम भी रावण बन जाते हैं, और रावण भी राम बन जाते हैं। ये पर्दे के पीछे तैयारियां कर आते हैं। फिर लौट आते हैं, बार-बार लौट आते हैं। तुम पूछते हो ‘मृत्यु क्या है?’ मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु एक भ्रांति है। धोखा है।



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