प्रेम
प्रेम परमात्मा की और तुम्हारी आंखें खोलता है. वह महान प्रसन्नता लाता है, पर इसके ही साथ वह बहुत बड़ा भय भी लाता है: क्योंकि तुम्हारा अहंकार मिट रहा है.
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
और तुमने इस अहंकार या अस्मिता में बहुत अधिक पूंजी लगा रखी है. तुम उसी के लिए जीते रहे हो, तुम्हें उसके लिए सिखाया और कंडीशंड किया गया है. तुम्हारे माता-पिता तुम्हारे पुरोहित, धर्माचार्य, तुम्हारे राजनीतिज्ञ तुम्हारे स्कूल, कॉलेज, विविद्यालय और तुम्हारी शिक्षा-ये सभी मिलकर तुम्हारे अहंकार का सृजन करते रहे हैं.
वे तुममें महत्त्वाकांक्षा उत्पन्न करते रहे हैं, और ये सभी महत्त्वाकांक्षाओं के द्वारा स्वयं अपने को ही अपंग पाओगे और स्वयं को अंहकार के पिंजरे में कैद पाओगे. तुम बहुत अधिक दु:ख उठाते हो लेकिन अपने पूरे जीवन में तुम्हें यही सिखाया गया है कि यह मूल्यवान है, इसलिए तुम उससे लिपट जाते हो-तुम दु:ख भी भोगते हो और तुम उससे लिपटे भी रहते हो.
और तुम जितने अधिक लिपटते हो उससे, तुम उतने ही अधिक दु:ख और कष्ट भुगतते हो. वहां ऐसे भी क्षण होते हैं, जब परमात्मा आता है और तुम्हारा द्वार खटखटाता है. यह वह प्रेम ही है-जो परमात्मा बनकर तुम्हारा द्वार खटखटा रहा है. हो सकता है एक स्त्री के द्वारा एक पुरुष के द्वारा, एक बच्चे के प्रेम के द्वारा एक फूल के द्वारा, सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के द्वारा..परमात्मा लाखों तरह से द्वार खटखटा सकता है.
लेकिन जब कभी भी परमात्मा द्वारा खटखटाता है, तुम भयभीत हो जाते हो. पुरोहित, धर्माचार्य, राजनीतिज्ञ, माता-पिता और इन सभी के द्वारा सृजित अहंकार-यह सभी दांव पर लगे होते हैं. ऐसा अनुभव होने लगता है कि जैसे तुम मर रहे हो. तुम रुक जाते हो. तुम पीछे हट जाते हो. तुम अपनी अांखें बंद कर लेते हो, तुम अपने कान बंद कर लेते हो, तुम खटखटाने की आवाज सुनते ही नहीं. तुम अपनी मांद में वापस लौटकर गुम हो जाते हो. तुम अपने द्वार बंद कर लेते हो.
प्रेम, मृत्यु जैसा लगता है-और वह है. और वे लोग वास्तव में आध्यात्मिक आनंद पाना चाहते हैं, तो उन्हें उस मृत्यु से होकर गुजरना होगा क्योंकि पुनर्जीवन केवल मृत्यु के द्वारा ही सम्भव है. जीसस ठीक ही कहते हैं कि तुम्हें अपने क्रॅास को स्वयं अपने ही कंधों पर ढोना होगा. वह कहते हैं: ‘जब तक तुम्हारा पुनर्जन्म नहीं होता, तुम मेरे राज्य को न देख सकोगे, और तुम वह नहीं समझोगे, जो मैं तुम्हें सिखा रहा हूं.’
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