राफेल विवाद पर संदेह

Last Updated 08 Jul 2025 02:25:55 PM IST

मई में भारत विवाद पर संदेह-पाकिस्तान के दरम्यान हुई झड़पों के बाद फ्रांस निर्मित राफेल जेट विमानों के विषय में संदेह फैलाने के लिए चीन ने अपने दूतावासों को तैनात किया था।


राफेल विवाद पर संदेह

फ्रांसीसी सैन्य व खुफिया अधिकारियों द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर बताया जा रहा है, फ्रांस के प्रमुख लड़ाकू विमान की प्रतिष्ठा व बिक्री को क्षति पहुंचाने का बीजिंग प्रयास कर रहा है।

बिक्री को कमजोर करने के पीछे उद्देश्य बताया जा रहा है, कि खरीद का आर्डर देने वाले, खासकर इंडोनेशिया इन्हें अधिक न खरीदें। इसके उलट अन्य संभावित खरीदार चीन निर्मित विमान चुनने को प्रोत्साहित हों।

राफेल समेत अन्य तमाम हथियारों की बिक्री फ्रांस के रक्षा उद्योग का प्रमुख कारोबार है, जिससे पेरिस के दुनिया भर के देशों से संबंध प्रगाढ़ होते हैं। इसमें चूंकि एशियाई देश भी शामिल हैं, जहां चीन प्रमुख शक्ति बन रहा है।

भारत-पाक में हुए संघर्ष के दौरान पड़ोसी मुल्क की वायु सेना द्वारा पांच भारतीय विमानों को मार गिराने का छद्म प्रचार किया गया था, जिनमें तीन राफेल बताए गए।

फ्रांसीसी अधिकारियों का कहना है, इससे जिन देशों ने फ्रांसीसी निर्माता डसॉल्ट एविएशन से विमान खरीदे हैं, उनके प्रदर्शन पर प्रश्नचिह्न लग गए हैं। भारत द्वारा लड़ाकू विमान के नुकसान की बात स्वीकारी तो गई, मगर कितने या कितना हुआ, इस पर सेना मौन रही।

फ्रांसीसी अधिकारी कह रहे हैं, वे प्रतिष्ठा को बचाने का संघर्ष कर रहे हैं। यह पहला ज्ञात युद्ध नुकसान बताया जा रहा है।

सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट, कथित राफेल मलबा, छेड़छाड़ की गयी तस्वीरें, एआई से बनाये कंटेंट व युद्ध का अनुकरण करने वाले वीडियो गेम वगैरह इस अभियान का हिस्सा थे।

हालांकि बीजिंग रक्षा मंत्रालय की तरफ से इसे निराधार अफवाह ठहराया गया। उनका कहना है, चीन का सैन्य निर्यात विवेकपूर्ण दृष्टिकोण रखता है तथा क्षेत्रीय, वैिक शांति व स्थिरता में रचनात्मक भूमिका निभाई है। अपने दावे की पुष्टि के लिए फ्रांस के सैन्य अधिकारी व शोधकर्ता ब्योरा जुटा रहे हैं।

सैन्य हथियारों की खरीद-फरोख्त के पीछे दुनिया भर में बड़ी लॉबी यानी पैरवी काम करती है। सरकारों, निर्णयों व नीतियों को प्रभावित करने वाले ये लोग या संगठन बेहत ताकतवर होने के साथ ही गुप्त रूप से चलाए जाते हैं।

सरकार को इस चुनौती को गंभीरता से लेना होगा। क्योंकि सोशल मीडिया से प्रभावित होने नागरिकों पर काबू करना मुश्किल होता जा रहा है। साथ ही देश की सुरक्षा से किसी भी तरह का समझौता मुस्तकबिल बना या बिगाड़ सकता है। 



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment