अंतर्मन

Last Updated 09 Feb 2018 06:02:41 AM IST

आपकी एकाग्रता बिखरी हुई है, क्योंकि आप जिसको ‘मैं’ कहते हैं वह है आपका शरीर, मन, घर, कार, पति, बच्चा, पालतू कुत्ता, शिक्षा, कारोबार, सत्ता और आपका जमा किया हुआ सब-कुछ, जिनसे आप पहचाने जाते हैं.


जग्गी वासुदेव

यदि मैं आपकी इन सब पहचानों का आवरण हटा दूं तो आपको लगेगा कि आप कुछ भी नहीं हैं. इसलिए आप जिसको ‘मैं’ कहते हैं वह फिलहाल आपके चारों ओर फैली हुई चीजें और रिश्ते हैं. जब मैं ‘आप’ कहता हूं, तो उसका अर्थ केवल ‘आप’ है. यह कार नहीं, यह यात्रा नहीं, आपका बच्चा नहीं, कुछ भी नहीं, केवल आप. यदि यह ‘आप’ अपने वास्तविक रूप के अलावा किसी भी दूसरी चीज से पहचाना नहीं जाता तब आप, जैसा चाहें वैसा, फिर से अपना भाग्य लिख सकती हैं. फिलहाल आप बिखरे हुए हैं. यह ‘आप’ नहीं हैं बल्कि सिर्फ  जमा किया हुआ अतीत है. ‘जब तक आप अपनी जमा की हुई इन सारी चीजों से पहचानी जाती हैं, तब तक आप एक भीड़ हैं, और भीड़ का भाग्य हमेशा पहले से तय होता है. जब आप एक व्यक्ति यानी इंडिविजुअल बन जाती हैं तो फिर कभी बांटी नहीं जा सकतीं. बांटी न जा सकने का मतलब होता है अनंत. आप अनंत के अलावा हर किसी चीज के टुकड़े कर सकती हैं. जो तोड़ा जा सकता है उसे पूरे स्थायित्व का बोध नहीं होता.

इसका मतलब यह है कि आप टुकड़ों में हैं अपने आपको एक साथ जोड़े रखना एक बहुत बड़ा करतब है. जब आप किसी और चीज से पहचान न बनाकर विशुद्ध ‘आप’ बन जाएंगे तभी आपका भाग्य आपके हाथ में होगा. मैं चाहता हूं कि आप यह समझ लें.’ मैं भी यह समझना चाहती थी. उनकी बातें सुनकर मैं सोचने लगी कि अनजाने में मैं अपनी एकाग्रता को किस तरह बिगाड़ रही थी. मैं पहले जैसी चिंताओं में डूबी नहीं थी, लेकिन मेरा आध्यात्मिक भाग्य निश्चित रूप से मेरे हाथों में नहीं था. सद्गुरु  अपने कहे अनुसार केवल प्रश्न का नहीं, व्यक्ति का उत्तर देते हैं. मैं जानती थी कि उनकी यह बात मुझ पर सौ फीसद लागू होती है. फिर मैं सोचने लगी कि क्या मैं अब भी अपने शरीर, मन, घर-बार, कार, पति, बच्चा, कारोबार, सत्ता जैसी उनकी बताई सब चीजों के रूप में अधिक पहचानी जाती हूं? इन पहचानों के बिना मैं केवल अपने जीवन से कैसे पूरी तरह जुड़ी रहूं? कुछ लोग योगी बनने के लिए अपना सांसारिक जीवन छोड़ देते हैं. मैं अपने घर में रहकर अंर्तज्ञान पाना चाहती थी.



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