गायन
भावों को उभारने और संप्रेषित करने में गायन का महत्त्व हमेशा रहा है, और आज भी है. अभिव्यक्ति के गद्य, पद्य और गायन, तीन माध्यम हैं.
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
गायन को भाव विधा से अग्रणी देखकर विशेष महत्त्व दिया गया. ज्ञान की अभिव्यक्ति की इन तीन विधाओं के कारण वेद को तीन प्रवाहों युक्त वेदत्रयी कहा गया.
भाव तरंगों के रहस्यमय दिव्य प्रयोगों को संपन्न करने वाले गान के मंत्रों को अपेक्षाकृत कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है. तभी इसके प्रयोग प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारंभ में करने का स्पष्ट निर्देश है. बात भी सही है कि पद्य, गद्य और गायन में से मन पर गायन का विशेष प्रभाव पड़ता है. इसका अनुभव हम सबको सामान्य जीवन क्रम में भी होता रहता है.
गायन से पीड़ित हृदय को शांति और संतोष मिलता है. इससे मनुष्य की सृजन-शक्ति का विकास और आत्मिक प्रफुल्लता बढ़ती है. सच कहें तो गायन की अमूल्य निधि देकर परमात्मा ने मनुष्य की पीड़ा को कम किया है. मानवीय गुणों में प्रेम और प्रसन्नता को बढ़ाया है. संगीत में प्रमुखत: षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद स्वरों में कुल 22 श्रुतियां हैं. इन श्रुतियों के गायन द्वारा उत्पन्न होने वाले भौतिक एवं चेतनात्मक प्रभाव अनुपम हैं.
औषधियां जिस प्रकार मूल द्रव्यों के रासायनिक सम्मिशण्रसे उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त प्रभाव के कारण विभिन्न रोगों पर अपना प्रभाव डालती हैं, उसी प्रकार इन बाईस शक्तियों के सम्मिशण्रका वस्तुओं और प्राणियों पर प्रभाव पड़ता है. वैदिक काल में इस रहस्यमय विज्ञान के ज्ञाता, मंत्र गायन, भाव मुद्राओं और रसानुभूतियों के आधार पर अपने अंतराल में दबी हुई शक्तियों को जगाते थे, और संपर्क में आने वाले प्राणी मात्र की व्यथा वेदना हरते थे. ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति भावनाओं के विकास में गायन का योगदान असाधारण है.
ऋग्वेद में ईश्वर अपने शिष्य को कहते हैं, ‘अपने आत्मिक उत्थान को प्राप्त करने के लिए संगीत के साथ उसे पुकारोगे तो वह तुम्हारी हृदय गुहा में प्रकट होकर अपना प्यार प्रदान करेगा.’ संगीत के दृश्य-अदृश्य प्रभावों के अनुसंधान में रत ऋषियों को ऐसी चमत्कारी शक्तियों, सिद्धियों और अध्यात्म का इतना विशाल क्षेत्र उपलब्ध हुआ, जिसे वर्णन करने के लिए सामवेद की रचना करनी पड़ी. नि:संदेह संगीत में शक्ति है और उसका लाभ संगीत में रस लेने वाले को अवश्य मिलता है.
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