पुरस्कार-दंड

Last Updated 09 Dec 2017 01:10:56 AM IST

मेरे दादा प्रत्येक मामले में सदैव मेरे पक्ष में रहा करते थे. उन्होंने कभी मुझे दंडित नहीं किया, सदा पुरस्कृत किया.


आचार्य रजनीश ओशो

मेरे पिता ने मुझको केवल एक बार दंडित किया क्योंकि मैं एक मेले, जो नगर से कुछ मील दूर प्रति वर्ष हुआ करता था, में चला गया था. वहां पर हिंदुओं की पवित्र नदियों में से एक नर्मदा बहा करती थी, और नर्मदा के तट पर एक महीने तक विशाल मेला लगा करता था. बिना पूछे वहां चला गया.

मेले में इतना कुछ चल रहा था कि..मैं केवल एक दिन के लिए गया था और सोचा था कि रात तक लौट जाऊंगा, लेकिन वहां पर देखने के लिए बहुत कुछ था, जादूगर, सर्कस, नाटक. इसलिए वहां पर तीन दिन रु का रहा..परिवार चिंता में पड़ गया: ‘मैं कहां चला गया था?’ पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. ज्यादा से ज्यादा ऐसा होता था कि मैं  देर रात घर लौटता था, लेकिन लगातार तीन दिन तक कभी घर से..ओर वह भी बिना किसी संदेश दूर नहीं रहा.

उन्होंने मेरे प्रत्येक मित्र के घर पूछताछ की, मेरे बारे में किसी को पता नहीं था. और चौथे दिन जब मैं घर लौटा तो मेरे पिता बहुत क्रोध में थे. मुझसे कुछ पूछने से पहले ही उनने मुझे एक थप्पड़ मार दिया. मैंने कुछ नहीं कहा. फिर मैंने कहा: ‘आप मुझे एक और थप्पड़ मारना चाहते हैं? मार सकते हैं क्योंकि इन तीन दिनों में मैंने पर्याप्त मजा लिया है.

जितना आनंदित हो चुका हूं उससे अधिक थप्पड़ आप नहीं मार सकते, इसलिए आप कुछ और थप्पड़ मार सकते हैं. आप शांत हो जाएंगे और मेरे लिए पिटना बस एक संतुलन होगा. मैं स्वयं को आनंदित कर चुका हूं.’ उन्होंने कहा: ‘तुम वास्तव में विचित्र हो. तुमको थप्पड़ मारना अर्थहीन है. इससे तुम आहत नहीं हुए हो, तुम और थप्पड़ों की मांग कर रहे हो.

क्या तुम पुरस्कार और दंड में अंतर नहीं कर सकते हो.’ मैंने कहा: ‘नहीं, मेरे लिए दंड जैसी बात एक प्रकार का पुरस्कार होती है.’ उन्होंने पूछा: ‘तीन दिनों से तुम कहां थे?’ मैंने कहा: ‘यह तो आपको मुझे थप्पड़ मारने से पहले पूछना चाहिए था. आप मुझसे पूछने का अधिकार खो चुके हैं. मुझसे पूछे बिना थप्पड़ मार दिया गया. अब मामला निबट चुका है-इस अध्याय को बंद कर दीजिए.

आप जानना चाहते थे, तो आपको पहले ही पूछ लेना चाहिए था. लेकिन आप में जरा भी धैर्य नहीं है. एक मिनट का धैर्य ही पर्याप्त रहा होता. लेकिन मैं आपको लगातार इस चिंता में नहीं देखना चाहता कि मैं कहां रहा था, इसलिए आपसे कहूंगा कि मैं मेले में गया था.’



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