गर्भधारण
यह सच है कि एक औरत का शरीर गर्भधारण करने और बच्चे को जन्म देने के लिए बना है. तो जब शरीर का कोई हिस्सा, खासकर महत्त्वपूर्ण हिस्सा इस्तेमाल में नहीं आता तो यह शरीर में कुछ खास तरह के असंतुलन पैदा कर सकता है.
जग्गी वासुदेव |
जरूरी नहीं है कि ऐसा हो ही, लेकिन कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है.
महिला का शरीर चौहद साल की उम्र से लेकर लगभग पचास साल की उम्र तक गर्भधारण के लिए तैयार होता है. तो इस काल में अगर वह गर्भधारण की प्राकृतिक प्रक्रिया से गुजरती है और फिर बच्चे को अपना दूध पिलाती है तो लगभग हर ढाई से तीन साल बाद वह एक बच्चे को जन्म दे सकती है.
प्रकृति ने ऐसी रोक लगाई है कि जब तक कोई औरत अपने बच्चे को स्तनपान कराती है, तब तक वह गर्भवती नहीं होगी. लेकिन आज हमने अपनी जरूरतों के हिसाब से या फिर आधुनिक जीवन की जरूरतों के हिसाब से इन चीजों को बदल दिया है. हम नहीं चाहते कि कोई लड़की चौदह-पंद्रह साल की उम्र में मां बने. हम कम से कम उसके अठारह-बीस साल या उससे ज्यादा की उम्र होने पर उसके मां बनने की बात करते हैं.
एक तरह से देखा जाए और अगर आप कुदरती तौर से देखें तो मां बनने की उम्र में देरी करना अप्राकृतिक है, लेकिन कुछ सामाजिक जरूरतें भी होती हैं. कुछ वक्त की जरूरत भी होती है. हम चाहते हैं कि लड़कियां पढ़ें, हम नहीं चाहते कि वे चौदह-पंद्रह साल की उम्र में बच्चे पैदा करें. इसके अलावा, आपको एक बात और समझनी होगी कि चौदह साल से लेकर पचास साल तक के गर्भधारण के काल में वह बारह से पंद्रह बच्चों को जन्म दे देती थी. आप तो जानते ही हैं कि पहले ऐसा ही होता था. कुछ देशों में तो यह आज भी सच्चाई है.
मध्य पूर्वी देशों और कुछ अफ्रीकी देशों में तो आज भी महिलाएं अपनी किशोरावस्था से लेकर अपने पूरे जीवन शायद ही अपने नॉर्मल पीरियड्स देख पाती हों, क्योंकि या तो वे गर्भवती रहती हैं या फिर अपने बच्चे को स्तनपान करा रही होती हैं. यह बहुत सारी औरतों की सच्चाई है. उस तरह से संतान पैदा करने की दृष्टि से वे काफी स्वस्थ होती हैं, लेकिन आप उस तरह से स्वस्थ नहीं होना चाहेंगी.
ये चीजें अब बीती बात हो चुकी हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि हम इस मामले में प्रकृति से समझौता कर रहे हैं. प्रकृति ने आपको जो भी चीज दी है, उसे आपको उसकी सीमा तक इस्तेमाल नहीं करना है. तो यहां हम बेशक समझौता कर रहे हैं.
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