कल्याण मित्र
गौतम बुद्ध ने कहा है :-मेरे पास आना, लेकिन मुझसे बंध मत जाना. तुम मुझे सम्मान देना, सिर्फ इसलिए कि मैं तुम्हारा भविष्य हूं.
आचार्य रजनीश ओशो |
तुम भी मेरे जैसे हो सकते हो, इसकी सूचना हूं. तुम मुझे सम्मान दो, तो यह तुम्हारा बुद्धत्व को ही दिया गया सम्मान है, लेकिन तुम मेरा अंधानुकरण मत करना. क्योंकि तुम अंधे होकर मेरे पीछे चले तो बुद्ध कैसे हो पाओगे? बुद्धत्व तो खुली आंखों से उपलब्ध होता है, बंद आंखों से नहीं और बुद्धत्व तो तभी उपलब्ध होता है, जब तुम किसी के पीछे नहीं चलते, खुद के भीतर जाते हो. कल्याण मित्र बुद्ध का शब्द है, गुरु के लिए. बुद्ध गुरु के शब्द के पक्षपाती नहीं, थोड़े विरोधी हैं. बुद्ध अनूठे मनुष्य हैं. वे कहते हैं कि गुरु शब्द विकृत हो गया है. हो भी गया है, उस दिन भी हो गया था. गुरु ओं के नाम पर इतना व्यवसाय चला है-गुरु ओं ने लोगों को कहीं पहुंचाया ऐसा तो मालूम नहीं होता है. कभी सौ गुरु ओं में कोई एक गुरु होता होगा, निन्न्यानवे तो गुरु नहीं होते-सिर्फ गुरु-अभ्यास! इसलिए बुद्ध ने नया शब्द चुन लिया : कल्याण मित्र. बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा है-मैं तुम्हारा कल्याण मित्र हूं. इसका अर्थ है:-जो पहुंच गया, जिसने शिखर पर घर बना लिया. उत्तम पुरु ष का अर्थ है, जो मार्ग पर है, लेकिन तुमसे आगे है, तुमसे श्रेष्ठतर है. तुमसे सुंदरतम है.
उत्तम पुरुष का अर्थ है, साधु. उत्तम पुरु ष का अर्थ है थोड़ा तुमसे आगे. कम से कम उतना तो तुम्हें ले जा सकता है, कम से कम उतना तो तुम्हें खींच ले सकता है. कल्याण मित्र वही है, जो तुम्हारे भीतर की मन:स्थिति को बदलने में सहयोगी हो जाता है. और यह तभी संभव है, जब वह तुमसे ऊपर हो, उत्तम पुरु ष हो. यह तभी संभव है जब वह तुमसे आगे गया हो. जो तुमसे आगे नहीं गया है, वह तुम्हें कहीं ले जा न सकेगा. आगे ले जाने की बातें भी करे तो भी तुम्हें नीचे ले जाएगा. मैं तुम्हें बुद्ध की बात संक्षिप्त में कह दूं. बुद्ध कहते हैं:- न कोई गुरु है, न कोई शिष्य है. और मैं तुम्हारा गुरु और तुम मेरे शिष्य! मेरे पास सिखाने को कुछ भी नहीं हैं और आओ, मैं तुम्हें सिखाऊं. गुरु की कोई जरूरत नहीं है, और आओ, मेरा सहारा ले लो. यह सर्वागीण सत्य है, क्योंकि दोनों बातें इसमें आ गई. इसमें गुरु -शिष्य भी आ गए, और गुरु ता भी नहीं आई और शिष्य का अपूर्व नाता भी आ गया और नाता मोह भी नहीं बना. वह अंतरंग संबंध भी निर्मिंत हो गया, लेकिन उस अंतरंग संबंध में कोई गांठ नहीं पड़ी, कारागृह नहीं बना...
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