आनंद और उत्सव
जिसे उत्सव क्या है? जब आनंद उपलब्ध होता है और उसे कहने का कोई उपाय नहीं मिलता तो उस असहाय अवस्था में उत्सव पैदा होता है.
आनंद और उत्सव |
उत्सव, आनंद को भाषा में व्यक्त नहीं किया जा सकता, इसलिए पैदा होता है. जो नहीं कहा जा सकता वाणी से, बांसुरी बजा कर कहता है. कृष्ण ने बांसुरी बजाई. नहीं कह सकता, नहीं बतला सकता, तो अपनी अलमस्ती से, अपने होने से उसके प्रमाण देता है, वही उत्सव है. धार्मिंकता, सभ्यता और संस्कृति ही भारत की अनूठी पहचान है.
इसके कारण ही भारतीय सभ्यता सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. इसी धरती पर कृष्ण, राम और नानक ने जन्म लेकर भारत की धरा को पावन किया है. जो मनुष्य को मर्यादा, कर्तव्य और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए हमेशा प्रेरित करते रहे हैं. व्रत, त्योहार और उत्सव ये हमारी संस्कृति की अद्वितीय पहचान हैं. वे पल हैं जो जीवन में खुशियों और उल्लास का संगीत भर देते हैं.
आधुनिक मनुष्य विकास की चकाचौंध में एवं अत्यधिक कामकाजी होने के कारण खुशी और आनंद के पलों से वंचित होता जा रहा है, जिन्हें उत्सव आनंदित होने का बेहतर मौका देते हैं. भारतीय सनातन धर्म में सदैव त्योहारों और उत्सवों का महत्त्व रहा है. पवरे के इसी क्रम में विशेष दीपों का त्योहार आता है जिसे दीपावली कहते हैं. हर जगह खुशियों ही खुशियों के दीपक जलाए जाते हैं. चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश. आनंद, खुशी और प्रकाश का ऐसा संगम दीपावली के दिन में ही देखने को मिलता है.
लेकिन वास्तव में इस पर्व का वास्तविक लाभ और असीम आनंद तभी मिल सकता है, जब इस दिन तमाम व्यसनों, जुआ और शराब जैसी बुराइयों से दूर रहकर हम उत्सव के आनंद में आनंदित होकर झूम उठें. ओशो कहते हैं-ज्योति जलाओ. भीतर दीये की ज्योति को उकसाओ. यह बुझ नहीं गई है क्योंकि तुम्हें बोध हो रहा है कि जीवन व्यर्थ गया. किसे यह बोध हो रहा है? उस बोध का नाम ही ज्योति है.
यह कौन तिलमिला गया है? कौन नींद से जाग उठा है? कौन-जिसका स्वप्न टूट गया है? इसी को पकड़ो. इसी को सम्हालो. इसी धीमी-सी उठती आवाज को सारा जीवन दो. इसी धीमी-सी जगमगाती लौ को पूरी ऊर्जा दो. तुम्हारे भीतर प्रज्वलित अग्नि, जो तुम्हारे अहंकार को गलाएगी, अंधकार को काटेगी और परम प्रकाश का पथ बन जाएगी. मैं इस दीये के जलाने की प्रक्रिया को ध्यान कहता हूं.
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