सम्मोहन
जिसे आप ध्यान कह रहे हैं, उसमें और आटो-हिप्नोसिस में, आत्म-सम्मोहन में क्या फर्क है? वही फर्क है, जो नींद और ध्यान में है.
धर्माचार्या आचार्य रजनीश ओशो |
नींद है प्राकृतिक रूप से आई हुई और आत्म-सम्मोहन भी निद्रा है प्रयत्न से लाई हुई. हिप्नोसिस में-हिप्नोस का मतलब भी नींद होता है-हिप्नोसिस का मतलब ही होता है तंद्रा, उसका मतलब होता है सम्मोहन.
तब एक आदमी लेट कर सोचे कि नींद आ रही है, नींद आ रही है, नींद आ रही है..मैं सो रहा हूं, मैं सो रहा हूं, मैं सो रहा हूं..तो यह भाव उसके प्राणों में घूम जाए, घूम जाए, घूम जाए, उसका मन पकड़ ले कि मैं सो रहा हूं, नींद आ रही है, तो शरीर उसी तरह का व्यवहार करना शुरू कर देगा.
कहेगा कि नींद आ रही है, शिथिल हो जाओ. ासें कहेंगी कि शिथिल हो जाओ. मन कहेगा कि चुप हो जाओ. नींद आ रही है, इसका वातावरण पैदा कर दिया जाए भीतर तो शरीर उसी तरह व्यवहार करने लगेगा.
शरीर तो बहुत आज्ञाकारी है. आपको रोज ग्यारह बजे भूख लगती है, आप खाना खाते हैं ग्यारह बजे और आज घड़ी में चाबी नहीं भर पाए हैं और घड़ी रात में ही ग्यारह बजे रु क गई है और अभी सुबह के आठ ही बजे हैं, और आपने देखी घड़ी और देखा कि ग्यारह बज गए हैं, एकदम पेट कहेगा कि भूख लग आई.
अभी ग्यारह बजे नहीं हैं, अभी तीन घंटे हैं बजने में. लेकिन घड़ी कह रही है कि ग्यारह बज गए हैं, पेट एकदम से खबर कर देगा कि भूख लग आई है क्योंकि पेट की तो यांत्रिक व्यवस्था है. रोज रात बारह बजे आप सोते हैं और अभी दस ही बजे हैं और घड़ी ने बारह के घंटे बजा दिए, घड़ी के घंटे देखकर आप फौरन पाएंगे कि तंद्रा उतरनी शुरू हो गई क्योंकि शरीर कहेगा कि बारह बज गए, अब सो जाना चाहिए.
शरीर बहुत आज्ञाकारी है, जितना स्वस्थ होगा, उतना ही आज्ञाकारी होगा. स्वस्थ शरीर का मतलब ही है, आज्ञाकारी शरीर. अस्वस्थ शरीर का मतलब होता है, जिसने आज्ञा मानना छोड़ दिया. आप कहते हैं, नींद आ रही है; वह कहता है, कहां आ रही है. आप कहते हैं, भूख लगी है; वह कहता है, बिल्कुल नहीं लगी. आज्ञा छोड़ दे तो वह शरीर अस्वस्थ हो जाता है.
आज्ञा मान ले तो स्वस्थ. क्योंकि वह हमारे अनुकूल चलता है, छाया की तरह अनुगमन करता है. जब आज्ञा छोड़ देता है, तो मुश्किल खड़ी हो जाती है. तो हिप्नोसिस का मतलब, सम्मोहन का मतलब इतना है कि शरीर को आज्ञा देनी है, और उसको आज्ञा में ले आना है.
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