शरीर और कांच
अगर हम अपने शरीर में पीछे लौटें तो प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में इस जगत का पूरा इतिहास छिपा है.
आचार्य रजनीश ओशो |
यह जगत पहले दिन बना होगा, उस दिन भी आपके शरीर का कुछ हिस्सा मौजूद था; वही विकसित होते आपका शरीर हुआ है. प्रत्येक व्यक्ति का शरीर सात साल में बदल जाता है. हड्डी, मांस, मज्जा-सभी कुछ बदल जाता है.
जब हम कहते हैं कि फलां अमुक व्यक्ति का देहावसान हो गया, तो हम अंतिम देहावसान को कहते हैं..जब उसकी आत्मा शरीर को छोड़ देती है. वैसे व्यक्ति का देहावसान रोज हो रहा है, शरीर रोज मर रहा है; मरे हुऐ हिस्से को रोज बाहर फेंक रहा है. नाखून आप काटते हैं, दर्द नहीं होता क्योंकि नाखून शरीर का मरा हुआ हिस्सा हैं.
बाल काटते हैं, तो पीड़ा नहीं होती क्योंकि बाल शरीर के मरे हुए कोष हैं. बाल शरीर के जीवित हिस्से हैं तो काटने से पीड़ा होगी. मजे की बात है कि अक्सर कब्र में मुर्दे के बाल और नाखून बढ़ जाते हैं; क्योंकि नाखून और बाल का जिंदगी से कुछ लेना-देना नहीं, मुर्दे के भी बढ़ सकते हैं; वे मरे हुए हिस्से हैं..अपनी प्रक्रिया जारी रख सकते हैं. भोजन आपके शरीर को रोज नया शरीर दे रहा है, और आपके शरीर से मुर्दा शरीर रोज बाहर फेंका जा रहा है. यह सतत प्रक्रिया है. इसलिए शरीर को अन्नमयकोश कहा है, क्योंकि वह अन्न से ही निर्मिंत होता है.
इसलिए आहार सिर्फ जीवन चलाऊ नहीं है, आपके व्यक्तित्व की पहली पर्त निर्मिंत करता है. कुछ भोजन हैं जो आपको भीतर प्रवेश करने ही न देंगे, जो आपको बाहर ही दौड़ाते रहेंगे; कुछ भोजन हैं जो आपके भीतर चैतन्य को जन्मने ही न देंगे क्योंकि वे आपको बेहोश ही करते रहेंगे; कुछ भोजन हैं जो आपको कभी शांत न होने देंगे क्योंकि उस भोजन की प्रक्रिया में ही आपके शरीर में एक रेस्टलेसनेस, एक बेचैनी पैदा हो जाती है.
एक आदमी अपने घर की दीवालें ठोस पत्थर से बना सकता है. कोई उन्हें कांच से भी बना सकता है; लेकिन कांच पारदर्शी है, बाहर खड़े होकर भी भीतर का दिखाई पड़ता है. ठोस पत्थर की भी दीवाल बन जाती है, तब बाहर खड़े होकर भीतर का दिखाई नहीं पड़ता. शरीर भी कांच जैसा पारदर्शी हो सकता है. उस भोजन का नाम शुद्ध भोजन है जो शरीर को पारदर्शी, ट्रांसपैरेंट बना दे..कि आप बाहर भी चलते रहें तो भी भीतर की झलक आती रहे. शरीर को ऐसी दीवाल भी बना सकते हैं कि भीतर जाने का खयाल ही भूल जाए, भीतर की झलक ही मिलनी बंद हो जाए.
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