सनातन यात्रा
पृथ्वी के इस भूभाग में मनुष्य की चेतना की पहली किरण के साथ उस सपने को देखना शुरू किया था.
आचार्य रजनीश ओशो |
उस सपने की माला में कितने फूल पिरोए हैं..कितने गौतम बुद्ध, कितने महावीर, कितने कबीर, कितने नानक, उस सपने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर गए? उस सपने को मैं अपना कैसे कहूं? वह सपना मनुष्य का, मनुष्य की अंतरात्मा का सपना है. उस सपने को हमने एक नाम दे रखा था. हम उस सपने को भारत कहते हैं. भारत कोई भूखंड नहीं है. न ही कोई राजनैतिक इकाई है, न ऐतिहासिक तथ्यों का कोई टुकड़ा. न धन, न पद, न प्रतिष्ठा की पागल दौड़ है.
भारत है एक अभीप्सा, एक प्यास..सत्य को पा लेने की. उस सत्य को, जो हमारे हृदय की धड़कन-धड़कन में बसा है. उस सत्य को, जो हमारी चेतना की तहों में सोया है. वह जो हमारा होकर भी हमसे भूल गया है. उसका पुन:स्मरण, उसकी पुनरु द्घोषणा भारत है. ‘अमृतस्य पुत्र:! हे अमृत के पुत्रो!’ जिन्होंने इस उद्घोषणा को सुना, वे ही केवल भारत के नागरिक हैं. भारत और सनातन धर्म पर्यायवाची हैं. भारत एक सनातन यात्रा है, एक अमृत-पथ है, जो अनंत से अनंत तक फैला हुआ है. इसलिए हमने कभी भारत का इतिहास नहीं लिखा. इतिहास भी कोई लिखने की बात है! साधारण-सी दो कौड़ी की रोजमर्रा की घटनाओं का नाम इतिहास है.
जो आज तूफान की तरह उठती हैं, और कल जिनका कोई निशान भी नहीं रह जाता. इतिहास तो धूल का बवंडर है. भारत ने इतिहास नहीं लिखा. भारत ने तो केवल उस चिरंतन की ही साधना की है, वैसे ही जैसे चकोर चांद को एकटक बिना पलक झपके देखता रहता है. मैं भी उस अनंत यात्रा का छोटा-मोटा यात्री हूं. चाहता था कि जो भूल गए हैं, उन्हें याद दिला दूं, जो सो गए हैं, उन्हें जगा दूं.
और भारत अपनी आंतरिक गरिमा और गौरव को, अपनी हिमाच्छादित ऊंचाइयों को पुन: पा ले क्योंकि भारत के भाग्य के साथ पूरी मनुष्यता का भाग्य जुड़ा हुआ है. यह केवल किसी एक देश की बात नहीं है. अगर भारत अंधेरे में खो जाता है, तो आदमी का कोई भविष्य नहीं है. और अगर हम भारत को पुन: उसके पंख दे देते हैं, पुन: उसका आकाश दे देते हैं, पुन: उसकी आंखों को सितारों की तरफ उड़ने की चाह से भर देते हैं, तो हम केवल उनको ही नहीं बचा लेते हैं, जिनके भीतर प्यास है. हम उनको भी बचा लेते हैं, जो आज सोए हैं, लेकिन कल जागेंगे, जो आज खोए हैं, कल घर लौटेंगे.
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