मन का राग

Last Updated 24 Apr 2017 05:37:00 AM IST

कई लोग बुढ़पा आते ही शौक एंव श्रृंगार छोड़ देते हैं, शरीर की देखभाल करना छोड़ देते हैं.


सुदर्शनजी महराज (फाइल फोटो)

मतलब आपने मान लिया है कि अब हम मरने की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन अब समय आ गया है कि आप अपने शरीर की पूरी तरह देखभान शुरू करें. क्योंकि पुराने मशीन को बार-बार रिपेयर करना पड़ता है. आप अपने मन से यह भाव निकाल दें कि आप अब बूढ़ा हो रहे हैं, खाने-पीने और रंग-बिरंगे कपड़े पहनने का समय अब नहीं रहा.

ऐसा विचार मन में कभी न आने दें. ऐसे ही विचारों से मनुष्य बूढ़ा होता है और असमय में मर भी जाता है. विश्व कवि रवि बाबू जब बूढ़ हो गए तो उनके सारे बाल सफेद हो गए. तब वे हमेशा सज-धज कर बाहर निकलते थे. वे कहते थे कि हमें कोई अधिकार नहीं कि अब हम अपना कुरूप चेहरा किसी को दिखाएं. वे कहते थे कि जवानी में मनुष्य कैसे भी रहे, सुंदर लगता ही है? लेकिन बुढ़ापे में जब शरीर कमजोर हो जाए तो सुंदर वस्त्र पहनना चाहिए. रंग-बिरंगे वस्त्रों से शरीर को सजाकर रखना चाहिए ताकि बुढ़ापे के शरीर की कुरूपता ढक सके.



क्योंकि कपड़े अपने लिये कम पहने जाते हैं, दूसरों की आंख ढकने के लिए अधिक पहने जाते हैं. जो भी लोग जीवन से प्यार करते हैं वे हमेशा अच्छे कपड़े पहनते हैं, अच्छा भोजन करते हैं और हमेशा शरीर को सजाकर रखते हैं, ताकि लोग उससे प्यार कर सकें. कुरूप व्यक्ति से कभी कोई प्यार नहीं करता. स्वयं को कुरूप बनाकर रखने का अर्थ है कि अब हम जीवन से निराश हो चुके हैं, अब हम जीना नहीं चाहते. हमारे जीवन में भी अगर कोई बुजुर्ग रहता है तो वह बहुत ही उपेक्षित जीवन जीने लगता है. सपरिवार वाले की उपेक्षा के कारण ही बहुत लोगों की मृत्यु हो जाती है.

शरीर पुराना हो गया तो अब अधिक देखभाल की आवश्यकता है. अगर शरीर में थोड़ी भी लापरवाही हुई तो शरीर नष्ट हो सकता है. जो लोग नौकरी से रिटायर करते हैं, उन्हें सरकार पेंशन इसलिए देती है कि वे बुढ़ापे में सुख से जी सकें. अपनी दवा-दारू कर सकें, अच्छा भोजन कर सकें. लेकिन आश्चर्य तो तब होता है जब इन लोगों को जो पेंशन का पैसा मिलता है, उसे भी अपने बच्चों को दे देते हैं और खुद चाय पीने के लिए किसी फुटपाथ की दुकान पर बैठ जाते हैं. ऐसे ही लोग असमय मरते हैं. इसलिए बुढ़ापा तो नाचने-गाने और मनोरंजन के समय का नाम है.

 

 

सुदर्शनजी महराज


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