मदांध

Last Updated 06 Feb 2017 05:06:48 AM IST

मनुष्य का प्राकृतिक गुण नहीं है-'मद'. इसे वह अपने बारे में गलत ख्यालों के कारण धारण कर लेता है.


सुदर्शनजी महराज (फाइल फोटो)

दरअसल, शड्विकारों में \'मद\' पतन का चौथा कारण द्वार है. यह मनुष्य का अपना अर्जित मनोरोग है. यहां रोग का अर्थ है शरीर की प्रक्रिया को विकृत कर देना. जिस प्रकार भला-चंगा हाथी मदांध होने के बाद अपना विवके खो देता है और गलत आचरण करने लगता है, उसी प्रकार जब मनुष्य मदांध हो जाता है तो उसका विवेक नष्ट हो जाता है और बिना विवेक के मनुष्य पशु से भी बदतर हो जाता है.

पशु का अर्थ होता है, वह जो \'पाश\' में बंधा हो. मनुष्य भी तब पशु बन जाता है, जब उसका अपना सब कुछ नष्ट हो जाता है और वह गलत आवरण ओढ़ लेता है. हमारे संतों ने इसीलिए कहा है कि जिस व्यक्ति का अंतर्मन भर जाता है, वह शड्विकारों को स्वीकार नहीं कर सकता.

मदांध व्यक्ति भीतर से पूरी तरह खाली होता है और इस खाली स्थान को भरने के लिए वह कभी काम के माध्यम से, कभी क्रोध के माध्यम से और कभी लोभ के माध्यम से अपने गलत अभिमान को प्रदर्शित कर दूसरों के बीच अपनी स्वीकृति चाहता है, क्योंकि मद का अर्थ ही होता है जो आप नहीं है वैसा होने का आचरण करना. फलों से भरी डाली झुकी रहती हैं, लेकिन सूखी डाली तनी खड़ी रहती है.



इस सूखी डाली को भी फल होने का गौरव चाहिए. इसीलिए वह फलयुक्त होने का व्यवहार करती है. हमारे जीवन में भी वैसे लोग आते हैं, जो स्वयं तो कंगाल होते हैं, लेकिन कभी अपनी बातों से, कभी व्यवहार से ऐसा आचरण करने लगते हैं, जिससे लोग उनकी झूठी शान को वास्तविक समझ लें. मदांध व्यक्ति बाहर और भीतर दोनों तरफ से दरिद्र होता है, कंगाल होता है और वह अपनी दरिद्रता को छिपाने के लिए बार-बार घोषणा करता रहता है कि मैं दरिद्र नहीं हूं.

मनोविज्ञान कहता है कि यदि व्यक्ति अपने बड़े होने की सफाई दे तो निश्चित रूप से वह बड़ा नहीं है. यही कारण है कि जो मदांध होते हैं, वे बार-बार अपनी श्रेष्ठता का प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है. मदांध व्यक्ति अपनी विकृतियों का शिकार होता है. साधना के क्षेत्र में मदांध व्यक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है, क्योंकि जब तक व्यक्ति पर मद का आवरण चढ़ा रहता है तब तक वह परमात्मा के चरणों में शीश नहीं झुका सकता.

इसीलिए हमारे संतों ने मद, घमंड, अभिमान, झूठा प्रलाप, झूठी घोशणा से बचने की सलाह दी है. साधना के क्षेत्र में प्रवेश के लिए उत्सुक भक्तों की यात्रा का सबसे बड़ा रोड़ा है-मद.

सुदर्शनजी महराज


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