रक्षाबंधन: जब शची ने इंद्र को बांधा था रक्षासूत्र

Last Updated 03 Aug 2020 11:15:45 AM IST

कृषि प्रधान देश भारत के अलग-अलग हिस्सों में श्रावणी पूर्णिमा पर कृषक समाज में अलग-अलग तरह से त्योहार मनाने की परंपरा आज भी चली आ रही है, लेकिन इस तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है।


इस रक्षाबंधन के संबंध में भी कई रोचक कहानियां हैं, लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी भाई-बंधन के स्नेह और विश्वास का पर्व है। हालांकि पौराणिक कथा के अनुसार, देवासुर संग्राम में जाते समय इंद्र को उनकी पत्नी शची ने रक्षासूत्र बांधा था।

मध्यकालीन इतिहास से जुड़ी एक कहानी है कि मेवाड़ की महारानी कर्णावती के राज्य पर जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने हमला किया था तो महारानी ने मुगल बादशाह हुमायूं को भाई मानते हुए उनको राखी भेजकर उनसे मदद मांगी थी। रानी कर्णावती ने हालांकि जौहर कर लिया लेकिन हुमायूं ने उनके राज्य की रक्षा कर उनके बेटे को सौंप दी थी। इसी कहानी के परिप्रेक्ष्य में भाई-बहन के रिश्तों के पर्व के तौर पर रक्षाबंधन मनाया जाता है।

पूर्व नौकरशाह और गणित व ज्योतिष विद्या के जानकार अनिल जैन कहते हैं कि रक्षा-सूत्र बांधने की कथा पुराणों में वर्णित है, लेकिन भारतीय सिनेमा ने इसे भाई-बहन के रिश्तों के पर्व के तौर पर ज्यादा प्रचारित किया, जिसके कारण रक्षाबंधन आज भाई-बहन के पर्व के रूप में प्रचलित है।

लेकिन एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र को उनकी पत्नी शची ने देवासुर संग्राम में जाते समय उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था, जिससे उस संग्राम में उनकी रक्षा हुई और वह विजय प्राप्त कर लौटे थे। इस प्रकार, पत्नी इस अवसर पर अपने पति को राखी यानी रक्षासूत्र बांधती है।

भाई-बहन के संबंध में भी एक पौराणिक कथा है कि एक बार बलि के आग्रह पर भगवान विष्णु ने उनके साथ रहना स्वीकार कर लिया है। इसके बाद लक्ष्मी वेश बदलकर बलि के पास गईं और उनकी कलाई पर राखी बांधी जिसके बदले में बलि ने उनसे मनचाहा उपहार मांगने को कहा। लक्ष्मी ने उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया।

एक पौराणिक कथा भगवान कृष्ण और द्रौपदी से भी जुड़ी है। एक बार भगवान कृष्ण की अंगुली कट गई थी जिसे देख द्रौपदी ने बिना देर किए अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान की अंगुली को बांध दिया। भगवान द्रोपदी के इस कार्य से काफी द्रवित हुए। कहा जाता है कि भगवान ने इसके बदले में द्रौपदी की रक्षा तब की थी जब उसका चीरहरण हो रहा था।

श्रावणी पूर्णिमा पर कहीं-कहीं पुरोहित ब्राह्मण व गुरु भी रक्षा-सूत्र बांधते हैं। रक्षासूत्र बांधते हुए वे एक मंत्र पढ़ते हैं-रक्षासूत्र का मंत्र है- 'येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।'

अर्थात दानवों के महाबलशाली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। इस प्रकार, पुरोहित अपने यजमान को रक्षासूत्र बांधकर उनको धर्म के पथपर प्रेरित करने की कामना करते हैं।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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