क्या होगा सरकार की साख का!
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय की केन्द्र सरकार की विसनीयता पर की गई टिप्पणी से सत्ता के गलियारों में हड़कंप मच गया है.
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अभी कुछ दिन पूर्व एक सरकारी समारोह में उन्होंने सरकार पर निशाना साधा और कहा कि ‘इतिहास में पहली बार देश अग्नि परीक्षा के दौर से गुजर रहा है. सरकार की विसनीयता अपने निम्नतम स्तर पर है और नीति-निर्णय प्रभावित हो रहे हैं.’ इसी बीच टू-जी स्पेक्ट्रम मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम की यह टिप्पणी कि ‘सरकार ने भी समय रहते घोटाला रोकने के लिए उचित कदम नहीं उठाए.’ इन दोनों टिप्पणियों ने सरकार की कार्यशैली और विसनीयता को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है.
आम आदमी यूपीए-2 को घोटालों की सरकार मानने लगा है. घोटालों में राजनेताओं, नौकरशाहों और कारपोरेट घरानों की संलिप्तता से जनता का सरकार से मोहभंग हुआ है और उसकी नाराजगी बढ़ी है. सरकार के समक्ष अब सबसे बड़ी चुनौती उसकी जनछवि पर भ्रष्टाचार के लगे दाग को धोने की है. जबकि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इसी कमजोरी का लाभ उठाने के लिए आक्रामक हो उठी है ताकि राजनीतिक फसल काटी जा सके.
यह सच है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के सफल आंदोलन के बाद आये एक सव्रेक्षण में माना गया है कि सरकार की लोकप्रियता पहले से कम हुई है. ऐसा अनुमान है कि यदि अभी लोकसभा चुनाव होते हैं तो भाजपा को कांग्रेस से अधिक मत मिलेंगे. इससे उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में आसन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस अपने राजनीतिक नुकसान को भांप कर परेशान हैं. उत्तर प्रदेश चुनाव अभियान समिति की अभी दिल्ली में हुई बैठक में भी इसका असर देखने को मिला. कुछ लोगों का कहना था कि इस तरह का माहौल बन गया है कि हर कांग्रेसी को आम जनता भ्रष्ट मान रही है. अन्ना हजारे का कांग्रेस विरोधी अभियान आग में घी का काम कर रहा है. इसलिए इससे उबरने के लिए रणनीति बननी चाहिए. इसीलिए कांग्रेस नवम्बर में अपने महासचिव राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश में घुमाना चाहती है.
इसके विपरीत कांग्रेस के पक्ष में जन माहौल तैयार करने के लिए राहुल गांधी फिर निकल पड़े हैं. उनकी भरतपुर (राजस्थान) में पुलिस फायरिंग में मारे गये मुसलमानों की मिजाज पुर्सी करना, फिर बुन्देलखण्ड की झोपड़पट्टी में जमीन पर बैठकर खाना खाना आदि इसी की कड़ी में माना जा रहा है. किंतु कांग्रेस जिस गहरे, सांगठनिक सरकारी और राजनीतिक संकट की शिकार है, ऐसे में राहुल का यह अभियान कांग्रेस की राह कितनी आसान करता है, वह अभी भविष्य के गर्भ में छुपा है.
चाहे टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो, कॉमनवेल्थ गेम घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला अथवा सीवीसी की नियुक्ति का मामला हो, इन सभी मामलों में राजनेता, नौकरशाह और कारपोरेट घरानों की संलिप्तता उजागर हुई है. नौकरशाह राजनेताओं के हाथों की कठपुतली बने तो राजनेता, उद्योगपतियों के हाथों का खिलौना. इसी गहरी सांठगांठ के चलते ये चर्चित घोटाले हुए. दिलचस्प यह है कि सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े ऐसे लोग जो इस गठजोड़ में शामिल नहीं थे उन्हें इसकी जानकारी थी, पर वह चुप्पी साधे रहे और भ्रष्टाचार के इस खेल को होने दिया. सुप्रीम कोर्ट ने टू जी स्पेक्ट्रम मामले की सुनवाई के दौरान इसी गठजोड़ पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री के पत्र की अनदेखी कर ए.राजा ने मनमानी से ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर दुर्लभ स्पेक्ट्रम का आवंटन कर दिया था.
इसके बावजूद सरकार को यह पता नहीं था कि क्या चल रहा है? इसीलिए आज महालेखा परीक्षक खुलेआम कह रहे हैं कि सरकार की साख निम्न स्तर पर है. उसके कामकाज कड़ी आलोचनाओं के शिकार हो रहे हैं. सरकार पर लोगों का भरोसा उठ गया है. सार्वजनिक संस्थाओं में उनका विास कम हुआ है और कुछ अधिकारी इस साजिश में अपना इस्तेमाल होने देते हैं. ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री ने राजा के फैसले पर रोक क्यों नहीं लगायी? वह जानकर भी अनजान क्यों बने रहे? इस घोटाले को छुपाने की कोशिश क्यों हुई? इसके उजागर होने के बाद प्रधानमंत्री गठबंधन धर्म की मजबूरी की दुहाई क्यों दे रहे हैं?
यह सब क्या गहरी सांठगांठ की ओर संकेत नहीं करता? इसी क्रम में कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का वह विवादास्पद बयान भी सरकार पर चस्पां आरोपों को बल प्रदान करता है जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर उद्योगपतियों को जेल भेजा जायेगा तो निवेश कैसे होगा? अब इन बयानों से सरकार भ्रष्टाचारियों के साथ खड़ी दिख रही है. इसी बयान के कुछ दिन बाद ही देश के चौदह उद्योगपतियों और प्रबुद्ध वर्ग के लोगों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि कुछ उद्योगपतियों, नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ से चल रहे भ्रष्टाचार के कारण लोग त्रस्त हैं.
इससे स्पष्ट है कि कानून मंत्री जिसकी वकालत कर रहे हैं, वह भी भ्रष्टाचार के इस खेल से असहमत हैं क्योंकि ये घोटाले न्यायालय की सक्रियता के कारण उजागर हुए हैं और उसमें शामिल नौकरशाहों, राजनेताओं और कारपोरेट घरानों के लोगों को जेल जाना पड़ा है. इतना ही नहीं केंद्रीय गृह मंत्री (तत्कालीन वित्त मंत्री) पी. चिदंबरम और मौजूदा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की टू जी से संबंधित तकरार कांग्रेस के पिछले सात साल के इतिहास में सबसे बड़ी और आत्मघाती किस्म की घटना है. इस प्रकरण का जनता के बीच गलत संदेश गया है.
इसी के चलते उसने भाजपा को उसके शहरी गढ़ों में पीछे छोड़ दिया था. आज इन्हीं हालातों के कारण कांग्रेस की जनछवि तेजी से गिरी है. उसका शहरी और युवा मतदाता उससे दूर होता जा रहा है जबकि 2009 के चुनाव में वह उसके साथ था. अगर एक बार लोग ये समझने लगे कि पार्टी पराजय की मानसिकता में चली गयी है तो फिर अगले चुनाव तक कांग्रेस की उस छवि को बरकरार रखना और उसके वजूद को उबारना बहुत मुश्किल हो जायेगा.
उधर, प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने यह देख लिया कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनमत बहुत संवेदनशील हो चुका है. इसीलिए वह कांग्रेस के खिलाफ हमलावर हो उठी है और इस अवसर का ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक इस्तेमाल करना चाहती है. इसीलिए उसके नेता लालकृष्ण आडवाणी भ्रष्टाचार के खिलाफ जनमत तैयार करने के लिए रथयात्रा पर निकल पड़े हैं ताकि राजनीतिक लाभ उठाया जा सके. उनकी इस रथयात्रा को मिल रहे जन समर्थन ने भी कांग्रेस की बेचैनी और बढ़ा दी है. ऊपरी तौर पर वह भले कहे कि यह आडवाणी की व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा की यात्रा है, जिसमें वह कभी सफल नहीं होने वाले. लेकिन आडवाणी अपनी इस यात्रा के बहाने सरकार के भ्रष्टाचार को तो उजागर कर ही रहे हैं.
रथयात्रा ने कांग्रेस को अंदर से परेशान कर दिया है. अत: कांग्रेस ने लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने और विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने की कवायद शुरू कर दी है. यह अलग बात है कि अन्ना टीम इसे लटकाऊ प्रक्रिया मानती है. देखना है ऐसे कदम भी उसकी गिरती जनछवि को सुधारने में कितना मददगार साबित होती है.
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