अतीत डरा रहा है कांग्रेस को

Last Updated 02 Oct 2011 12:51:47 AM IST

टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला यूपीए सरकार के गले का फांस बनता जा रहा है.


वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की ग्यारह पन्नों की चिट्ठी ने सरकार को गंभीर संकट में डाल दिया है. पौने दो लाख करोड़ के इस घोटाले में तत्कालीन वित्तमंत्री और वर्तमान गृहमंत्री पी. चिदम्बरम की भूमिका पर सवाल उठाया गया है. चिट्ठी के सार्वजनिक होने के साथ ही जहां दो मंत्रियों के बीच टकराव उजागर हुआ है, वहीं इसने राजनीतिक हलकों में तूफान ला दिया है. विपक्ष हमलावर हो उठा है. सवाल यह है कि वित्तमंत्री ने यह अब चिट्ठी क्यों लिखी? और, चिट्ठी-पतरी की यह राजनीति आने वाले दिनों में तूफान का संकेत तो नहीं है?

यद्यपि कांग्रेस ने बड़ी सजगता से इस विवाद को सुलझा दिया है. किन्तु आमजन में यह संदेश जाने से नहीं रोक सकी है कि इस घोटाले के किरदार अकेले ए. राजा नहीं हैं बल्कि सत्ता में बैठे और बड़े लोग भी इसमें शामिल हैं. अब सबकी निगाहें 10 अक्टूबर पर टिकी हैं क्योंकि यह विवादास्पद चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट में पेश हो चुकी है, जिस पर इसी दिन फैसला आना है. विश्लेषकों का तर्क है कि यदि कोर्ट चिदम्बरम की भूमिका की जांच का आदेश देता है तो उसकी जद में पीएमओ भी आ सकता है. तब यह स्थिति सरकार की मुसीबत का सबब बन सकती है.
यूपीए के मजबूत घटक द्रमुक के मुखिया करुणानिधि इस घोटाले में अपनी पुत्री कनिमोझी और सहयोगी ए. राजा के जेल में होने को लेकर सरकार की भूमिका से खफा हैं. वह कई अवसरों पर अपने रोष का इजहार भी कर चुके हैं. अब दयानिधि मारन पर गाज गिरने वाली है.  राजा ने भी अपनी सफाई में कहा है कि उनके किये की जानकारी पीएमओ तथा वित्त मंत्रालय को थी. प्रणब की चिट्ठी भी उनके बयान की पुष्टि करती है और द्रमुक आने वाले दिनों में हमलावर हो सकता है.

इसलिए सरकार पर आया संकट फिलहाल टलता नहीं दिखता क्योंकि मुखर्जी की ओर से 25 मार्च 2011 को प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी चिट्ठी में कहा गया है कि ‘अगर चिदम्बरम चाहते तो टू जी घोटाला रोक सकते थे लेकिन उन्होंने 30 जनवरी 2008 को ए. राजा से मीटिंग में उन्हें पुरानी दरों पर स्पेक्ट्रम बेचने की इजाजत दे दी. अगर वे चाहते तो स्पेक्ट्रम की ‘पहले आओ पहले पाओ’ की जगह उचित कीमत पर नीलामी की जा सकती थी.’ इस चिट्ठी के लीक होने के बाद प्रणब ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी को पत्र लिखकर जो सफाई दी उसने आग में और घी डालने का ही काम किया है. उन्होंने पत्र में कहा है कि चिदम्बरम के बारे में यह नोट सिर्फ मेरे कार्यालय ने ही नहीं बल्कि पीएमओ, कैबिनेट सचिवालय सहित कानून और संचार मंत्रालयों ने मिलकर तैयार किया था. संबंधित विभागों से नोट के लिए इनपुट (तथ्य) जुटाये गये थे.

इस खुलासे से स्पष्ट हो गया है कि घोटाले में चिदम्बरम की भूमिका के बारे में अन्य मंत्रालयों की भी ऐसी ही राय थी. यद्यपि भारी दबाव के बीच मुखर्जी ने यह बयान देकर कि ‘नोट में तथ्यात्मक बैकग्राउंड के अलावा कुछ और निष्कर्ष भी शामिल हैं, वह मेरा विचार प्रतिबिंबित नहीं करता, यह कई मंत्रालयों द्वारा तैयार नोट था’ इस विवाद पर विराम लगाने की कोशिश जरूर की है पर चिदम्बरम की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आतीं. वित्त मंत्रालय की यह चिट्ठी जेपीसी ने मांगी है. वह प्रणब और चिदम्बरम को तलब कर सकती है. इतना ही नहीं यदि सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया तो गृहमंत्री संकट में पड़ सकते हैं. यद्यपि सीबीआई और सरकार दोनों उन्हें बचाने में लगी हैं किंतु सब कुछ अब कोर्ट के रुख पर निर्भर है.

कांग्रेस में चिट्ठी की राजनीति कोई नई नहीं है. राजीव गांधी के शासनकाल में उस समय के वित्तमंत्री विनाथ प्रताप (वीपी) सिंह ने कुछ बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा की जा रही टैक्स चोरी और फेरा उल्लंघन के मामलों की जांच के लिए एक विदेशी एजेंसी ‘फेयर फैक्स’ को मार्च, 1987 में जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी. एजेंसी के प्रमुख ने वीपी को लिखे पत्रों में उन बड़े घरानों और राजीव के कुछ मित्रों के नाम खुलासा किया था. मामले के सार्वजनिक हो जाने पर कांग्रेसियों ने ही संसद में वीपी सिंह की जमकर फजीहत की थी.  उन पर सरकार के खिलाफ गहरी साजिश रचने का आरोप लगा था. न्यायिक आयोग ने पूरे मामले की जांच की थी और इसके कुछ दिनों बाद वीपी सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था. उसी के बाद सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी.

राजनीतिक पंडित प्रणब की चिट्ठी को कांग्रेस की राजनीतिक सेहत के लिए उचित नहीं मानते क्योंकि उन्होंने पूरी जानकारी लिखत-पढ़त में ला दी है, उससे चीजें सुलझने की जगह उलझ (पार्टी के लिए जनहित में तो यह ठीक ही हुआ है) गयी हैं. अब अगर बात राजा, कनिमोझी आदि को जेल भेजने से शुरू हुई है तो अकेले चिदम्बरम की विदाई तक ही नहीं रुकेगी. प्रधानमंत्री भी निशाने पर आएंगे. फिलहाल, वित्त मंत्रालय की यह पुरानी चिट्ठी क्यों और कैसे प्रकट हुई, यह अभी साफ नहीं है पर इसके सामने आते ही चिदम्बरम घिर गये हैं और उनकी छवि पर गहरा दाग लग गया है, जिसे धोने की सरकार और संगठन असफल कोशिश कर रहे हैं.

वैसे प्रणब मुखर्जी सरकार में नम्बर-टू मंत्री हैं. उन्हें यूपीए का संकटमोचक भी माना जाता है. उनका चिदम्बरम से विवाद भी किसी से छुपा नहीं है. वह गृहमंत्री पर अपने कार्यालय की जासूसी कराने तक का आरोप लगा चुके हैं और अपने विभाग में चिदम्बरम की दखलअंदाजी से दुखी भी हैं. इसके अलावा तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में द्रमुक के साथ समझौते को लेकर विवाद तथा स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे प्रकरणों को लेकर दोनों की असहमति के चलते सरकार की जो भद्द पिटी वह किसी से छुपी नहीं है. सरकार में वकीलों की टोली है, जिनकी निकटता प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी से है. वित्तमंत्री चाहकर भी अपने को इनके निकट नहीं पाते हैं. यह टीस उन्हें सालती रहती है.  यह जगजाहिर है कि 1984 में राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाये जाने के वक्त से ही प्रणब अपनी दावेदारी चूकने का पछतावा करते रहे हैं. संभव है आज जब सरकार और प्रधानमंत्री की जन छवि तेजी से गिर रही है तो उन्हें अपने लिए पुन: अवसर दिखा हो. इसीलिए चिट्ठी की राजनीति हुई हो ताकि जनता के बीच अपनी पाक-साफ छवि बनी रहे.

सरकार घोटालों के आरोपों से घिरी हुई है. घोटालों से संबंधित हर नये खुलासे उसकी मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर इन नये खुलासे ने विपक्ष को भी नया हथियार दे दिया है. चिदम्बरम के साथ अब पीएमओ भी कटघरे में है. उसकी विसनीयता और प्रधानमंत्री की छवि दांव पर है. इसके पहले सीवीसी की नियुक्ति के मामले में दोनों की जगहंसाई हो चुकी है. अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस पत्र पर क्या रुख अपनाता है? फिलहाल सरकार में यह संघर्ष विराम किसी बड़े तूफान का संकेत तो नहीं है? यह मामला इतना बढ़ गया है कि इसे अंजाम तक पहुंचने से रोका नहीं जा सकेगा. इस हालात में द्रमुक भी चुप नहीं बैठेगा.

रणविजय सिंह
समूह सम्पादक, राष्ट्रीय सहारा हिन्दी दैनिक


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