21 में सब पर 20

Last Updated 02 Jan 2021 01:10:44 AM IST

नये साल का आना कैलेंडर पर एक तारीख का बदलना भर नहीं होता। नैराश्य, नाकामयाबी, नाउम्मीदी जैसे नकारात्मक विषयों से गमन और नये उत्साह, नई उम्मीद और नवजीवन के आगमन का प्रतीक भी होता है। फिर अगर गुजरा साल 2020 बुरी यादों का विशेषण ही बन गया हो, तब तो नववर्ष के लक्ष्य और उसकी राह में आने वाली चुनौतियों का सकारात्मक विश्लेषण और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।


21 में सब पर 20

वर्ष 2021 में भारतवर्ष के सामने दो लक्ष्य बेहद स्पष्ट हैं, और 2020 को हम चाहे जितना कोस लें, इन दोनों लक्ष्य के लिए हमें गुजरे साल को ही धन्यवाद देना होगा। ये दो लक्ष्य जुड़े हैं  स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से क्योंकि इनके विश्लेषण की छतरी इतनी बड़ी है कि उसमें तमाम दूसरे विषय भी समा जाते हैं। खुशी की बात यह है कि नये साल में देश इन दोनों मोचरे को फतह करने की दिशा में बढ़ चला है। स्वास्थ्य के मोर्चे पर कोरोना महामारी अब काबू में आ गई है, और इसका इलाज बस हाथ-भर दूर दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण का बीड़ा उठाया है, और इसकी शुरु आत आज से ही देश भर में कोरोना वैक्सीन के ड्राई रन से होने जा रही है। दूसरा मोर्चा अर्थव्यवस्था का है, जिसके भंवर से निकलने का रास्ता दुनिया को भले न सूझ रहा हो, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भारत ने रिकवरी की राह तलाश ली है। यकीनन सफर अभी शुरू हुआ है, और मंजिल का रास्ता लंबा है। अर्थव्यवस्था का आकार कृषि, विनिर्माण, मैन्युफैक्चरिंग, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा जैसे कई विषयों से तय होता है, जिन्हें कोरोना ने ऐसे घाव दिए हैं, जिन पर लंबे समय तक मरहम लगाने की जरूरत पड़ेगी।

आत्मनिर्भर भारत करेगा मरहम का काम
प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर शुरू हुआ आत्मनिर्भर भारत अभियान इस पर मरहम का काम कर सकता है। वोकल पर लोकल के मंत्र से बुनियादी बदलाव के संकेत भी मिलने लगे हैं। इस दिशा में पिछले साल के अकेले आखिरी महीने की उपलब्धियों की ही बात करें, तो सीरम इंस्टीट्यूट के जरिए देश में ही कोविड वैक्सीन की तैयारी और निमोनिया की पहली स्वदेशी वैक्सीन को तैयार कर लेना नये भारत के सामथ्र्य का प्रतीक है। देश का पहला डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, पहली ड्राइवरलेस मेट्रो और स्वदेशी आकाश मिसाइल की बढ़ती ग्लोबल डिमांड ने आत्मनिर्भर हो रहे देश को नई पहचान दी है।

कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के चक्के को मजबूती देने के लिए गांवों को आत्मनिर्भर बनाना होगा और लगता है कि मोदी सरकार ने इसका एक्शन प्लान भी तैयार कर लिया है। नये साल में सरकार ग्राम पंचायतों में मल्टी एक्टिविटी सेंटर खोलेगी जहां युवाओं को गांव में ही प्रशिक्षित और स्वावलंबी बनाने का काम किया जाएगा। इसी तरह महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के जरिए आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। ज्यादा जोर लघु और कुटीर उद्योग से संबंधित प्रशिक्षण पर रहने वाला है। एमएसएमई सेक्टर देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है, और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सच करने के लिहाज से आने वाले समय में बेहद महत्त्वपूर्ण भी रहेगा। सरकार ने इसके बकाया भुगतान के लिए 21,000 करोड़ रुपये का जो आर्थिक पैकेज दिया है, उसका असर भी इस साल दिखाई देगा।

बेशक, नये साल में असंगठित क्षेत्र में रोजगार के हालात सुधारने का लक्ष्य चुनौतीपूर्ण रह सकता है। लॉकडाउन ने लोगों की जान भले बचाई हो, लेकिन इसने आर्थिक गतिविधियों का दम निकाल दिया। आजीविका खोने के बाद लाखों की संख्या में बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ है, और दोबारा यथास्थिति को हासिल कर लेना लंबे समय तक संभव नहीं होगा। असंगठित क्षेत्र में करीब 40 करोड़ से ज्यादा कामगार जुड़े हैं, और उन्हें रोजगार उपलब्ध करवाने का मतलब करीब पांच करोड़ परिवारों को सामाजिक सुरक्षा का कवच देना होगा। हालांकि संगठित क्षेत्र में छाई धुंध अब हटने लगी है। जॉब सर्च प्लेटफॉर्म लिंक्डइन का सर्वे बताता है कि नये साल में नौकरियों की संख्या में तेज बढ़ोतरी दिख सकती है। हालांकि परंपरागत सेक्टरों में हालात धीरे-धीरे ही सुधरेंगे, लेकिन हेल्थ केयर, आईटी और ई-कॉमर्स में डिजिटल कौशल पर आधारित रोजगार के नये अवसर बनेंगे। ऑटोमेशन और वर्क फ्रॉम होम जैसी नई व्यवस्थाओं ने रोजगार के मोर्चे पर नई चुनौतियां बनाई हैं, तो आत्मनिर्भरता के नये द्वार भी खोले हैं।  

गवर्नेस के स्तर पर भी आने वाला समय सरकार के कौशल का इम्तिहान लेगा। अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए सरकार अलग-अलग सेक्टरों और हितग्राहियों को तो राहत दे रही है, लेकिन राजकोषीय घाटे को काबू में रखना भी जरूरी होगा। यह भी सच्चाई है कि कोविड से लड़ाई ने सरकारी खजाने में बड़ा छेद कर दिया है। इस सबके बीच आर्थिक मदद के लिए एक तरफ राज्य दबाव बना रहे हैं, तो दूसरी तरफ लाखों कर्मचारियों के महंगाई भत्तों को दोबारा बहाल करना चुनौती बना हुआ है। ऐसे में वंचित लोगों के लिए सरकार को कल्याणकारी योजनाएं जारी रखते हुए इस मोर्चे को भी फतह करना होगा।

बदलाव से सामंजस्य बैठाना होगा
घरेलू मोर्चों के साथ ही वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलाव से सामंजस्य बैठाना भी सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। इस लिहाज से वि की दो प्रमुख शक्तियों अमेरिका और चीन का उल्लेख जरूरी है। अमेरिका में नेतृत्व बदल रहा है, और चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। नये अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तो नये भारत से नये करार के लिए बेकरार दिख रहे हैं, लेकिन चीन से रिश्तों में आई दरार अभी भरती नहीं दिख रही है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वोकल फॉर लोकल के मंत्र ने चीन के आर्थिक तंत्र को जो चोट पहुंचाई है, उसने सुपर पावर बनने के चीन के दावे का खोखलापन दुनिया के सामने ला दिया है।

आत्मनिर्भर अभियान के इसी पक्ष को प्रधानमंत्री मोदी वि कल्याण के लिए भारत के भविष्य का मार्ग कहते हैं। इसलिए आश्चर्य की बात नहीं कि पिछले एक पखवाड़े में चाहे एसोचैम की स्थापना का समारोह हो या शांति निकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय का शताब्दी समारोह या फिर साल का आखिरी ‘मन की बात’ कार्यक्रम, प्रधानमंत्री मोदी ने हर मौके पर आत्मनिर्भर अभियान को विश्वगुरु बनने के भारत के सपने की बुनियादी जरूरत बताया है।

एक देश के रूप में साल 1947 हमारे लिए केवल अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्रता का साल ही नहीं था, बल्कि औपचारिक रूप से दुनिया की चुनौतियों से निपटने के लिए अपने पैरों पर खड़े होने की शुरु आत भी थी। साल 2022 में इस सफर के 75 पड़ाव पूरे हो जाएंगे। इसलिए पूर्ण आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को हासिल करने के लिहाज से 2021 का यह साल बेहद अहम हो जाता है। प्रधानमंत्री ने शायद इसी बात की अहमियत को जानते-समझते हुए कहा है कि अब हमारे लिए केवल आत्मनिर्भरता महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह भी जरूरी है कि हम इसे कितनी जल्दी हासिल करते हैं। संयोग से यह इस बात का भी इशारा है कि 2021 का लक्ष्य उसके अंकों के अनुरूप ही केवल इक्कीस में सब पर बीस पड़कर ही संभव हो पाएगा।

उपेन्द्र राय


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