इस्लामोफोबिया थोड़ी हकीकत, ज्यादा फसाना

Last Updated 07 Nov 2020 01:31:47 AM IST

फ्रांस धारणा है कि इस्लाम प्राचीन नहीं तो मध्यकालीन विश्वासों पर यकीन करने वाला पिछड़ा धर्म है। दकियानूसी यहां तक कि अपने नजरिए में बेहद परंपरावादी है। अपने अनुयायियों को हिंसक और असहिष्णु होने के लिए प्रेरित करता है।


इस्लामोफोबिया थोड़ी हकीकत, ज्यादा फसाना

यह भी माना जाता है कि इस्लाम का आधुनिक मूल्यों और धर्मनिरपेक्षता, धर्म की स्वतंत्रता, मानवाधिकार और लोकतंत्र जैसे राजनीतिक तौर-तरीकों से कोई लेना देना नहीं है। सैमुएल हंटिंग्टन ने कहा है कि आने वाले समय में पश्चिमी और इस्लामी सभ्यताओं के बीच संघर्ष होगा। फ्रांस के हालिया हिंसात्मक घटनाक्रम से इस धारणा की पुष्टि होती है। हिंसा सैमुएल पैटी (47), जो स्कूल शिक्षक थे, का सिर कलम कर देने के साथ शुरू हुई। सैमुएल ने पैगंबर मुहम्मद का कार्टून छात्रों को दिखाया था ताकि छात्रों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में समझा सकें। यह कार्टून चार्ली हेब्दा में प्रकाशित हो चुका था। अठारह वर्षीय एक चेचन मुस्लिम युवक अब्दुल्ला अनजोरोव ने पैटी का सिर धड़ से अलग कर दिया। बताया गया है कि हत्यारा युवक सीरिया के जेहादियों के संपर्क में था।

इस बर्बर और अमानवीय हत्या से व्यथित फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ‘फ्रेंच जीवनशैली’ का उल्लेख करते हुए कहा कि फ्रांस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अजीम जीवन मूल्य है। इस घटना पर मैक्रों द्वारा घोर आलोचना किए जाने पर अधिकांश मुस्लिमों ने तीव्र प्रतिक्रिया जताई। प्रतिक्रिया व्यक्त करने वालों में ‘फ्रेंच काउंसिल ऑफ द मुस्लिम फेथ’ भी शामिल है, जिसका कहना है कि हत्या आतंकी हमला थी। मैक्रों ने कहा, ‘इस्लामी हमारे हाथों से हमारा भविष्य छीन लेना चाहते हैं’। फ्रेंच राष्ट्रपति ने आगे कहा कि ‘लेकिन उनका  मंसूबा पूरा नहीं हो पाएगा’। मैक्रों ने इस्लामपरस्तों पर आरोप लगाते हुए कहा कि मुस्लिम फ्रांस के जीवन मूल्यों के लिए खतरा हैं। उन्होंने इस विवाद को खासा बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया।

एदरेगन, तुर्की के राष्ट्रपति, जो मुस्लिम उम्मा का नेता बनने की जी-तोड़ कोशिश करते रहे हैं लेकिन अपने देश में बढ़ते आर्थिक संकट और अपनी गिरती लोकप्रियता के कारण इस मंसूबे में सफल नहीं हो सके हैं, ने इस विवाद को और भी ज्यादा तूल दे दिया। उन्होंने मैक्रों से अपने मानसिक स्वास्थ्य की जांच कराने की बात तक कह डाली। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, जिनके खिलाफ अपने ही देश में जोरदार प्रदर्शन हो रहे हैं और आरोप लग रहा है कि पाकिस्तानी अवाम द्वारा निर्वाचित होने के बजाय वे सेना द्वारा ‘चुने गए’ प्रधानमंत्री हैं, ने भी मौका ताड़ा कि इस्लाम के सच्चे हितैषी के तौर पर खुद को पेश कर सकते हैं। मलयेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर बिन मोहम्मद ने कहा कि मुसलमानों को लाखों फ्रेंच लोगों को मार डालने का अधिकार है। तीस अक्टूबर को फ्रांस के शहर नाइस में एक और हमला हुआ। बीबीसी के मुताबिक, घटना के एक दिन पहले ही फ्रांस पहुंचे टय़ूनीशिया के एक नागरिक ने चर्च में ईसाई समुदाय के तीन लोगों को मार डाला।

आम मुसलमानों की आफत
आतंकवादी हमला करके भाग खड़े होते हैं, और झेलना उन सामान्य मुसलमानों को पड़ता है, जो मुस्लिम धर्म का पालन करते हुए बाकी धर्मो के अनुयायियों के साथ मिल-जुल कर शांतिपूर्ण जीवन यापन कर रहे हैं। संभव है कि आतंकी चाहते हों कि हिंसा के बदले में मुसलमानों पर सरकारी या गैर-सरकारी दमन बढ़े। उन्हें लगता है कि इससे समुदायों का ध्रुवीकरण करने और उन लोगों को घेटो में समेटने में उन्हें आसानी होगी। सैमुएल पैटी और नाइस में तीन ईसाइयों की हत्याओं की र्भत्सना की ही जानी चाहिए। बिना किसी पूर्वाग्रह या बिना उन कारणों में जाए जिन्हें हत्या को तार्किक ठहराए जाने के लिए पेश किया जा सकता है, बेशक, इन हत्याओं की घोर निंदा करनी होगी।

क्या इस्लाम हिंसक, असहिष्णु, दकियानूसी, परंपरावादी धर्म है जैसा कि जेहादी इसे पेश कर रहे हैं। क्या सभी मुस्लिम गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर या अन्य कारणों से मार डालने का समर्थन करते हैं? इन सवालों का जवाब है, नहीं। क्या एदरेगन, इमरान खान और महातिर मोहम्मद अपने देश के लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं? इमरान के खिलाफ प्रदर्शन दिनोंदिन बढ़ रहे हैं, एदरेगन अपनी घटती लोकप्रियता को थाम नहीं पा रहे हैं और मुस्लिम कानून की वकालत करने वाले मलयेशिया में विपक्ष में बैठे महातिर लोकप्रियता से हाथ धोए बैठे हैं। अरब देश, ईरान और इंडोनेशिया, जहां मुस्लिमों की सर्वाधिक जनसंख्या है, ने इन हमलों का समर्थन नहीं किया है। बेहद छोटा हिस्सा मानता है कि मुस्लिम सुन्नी विचार के चार इदारों तथा शियाओं के एक इदारे द्वारा प्रतिपादित विश्वास को न मानें। और इसके लिए वे बंदूक का सहारा लेने से भी गुरेज नहीं करते। प्रतिशोध मासूम लोगों तक को नहीं छोड़ रहा। इन कट्टरपंथियों ने हिंसा और आतंकवाद की मदद से अपनी चलाने की ठान रखी है। वे न केवल गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाते हैं, बल्कि मुसलमानों को भी नहीं बख्शते। सुन्नी मुसलमानों के पास इन लोगों के बताए इस्लाम को मानने के अलावा कोई चारा नहीं बच रहता।  

दूसरी तरफ कुरआन समूची मानवता को रास्ता दिखाने वाली पुस्तक है, धर्म की आजादी या किसी भी विश्वास को मानने की स्वतंत्रता की बात कहती है। कहती है कि दयाशील भगवान ही इंसानी व्यवहार को अच्छा या बुरा ठहरा सकता है, कोई व्यक्ति नहीं। इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत हैं, सच्चाई (हक), न्याय (अदल), धैर्य (रहम), दया (रहीम), माफी (गफूर) और विद्वता (हिकमा)। सर्वाधिक अच्छे वे हैं जो हर किसी के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करते  हैं। कुरआन (5:8) में कहा गया है-‘सुनो अनुयायियो! अल्लाह के लिए मजबूती से खड़े रहो और इम्तिहान की घड़ी का अच्छे से सामना करो। लोगों की नफरत से तुम अन्याय की तरफ अग्रसर न होना। सच्चे बनो! वही न्याय के करीब है..।’ किसी धर्म के प्रति नफरत उचित नहीं है और इसलिए नफरत न्यायपूर्ण नहीं है। कुरआन (5:32) में कहा गया है कि आप किसी बेगुनाह को मारते हो तो समझो तुमने समूची मानवता की हत्या कर दी। किसी एक का भी जीवन बचा लिया तो समझो कि समूची मानवता को बचा लिया-यह बात किसी भी धर्म को मानने वाले व्यक्ति के जीवन का मूल्य हो सकती है।

अच्छे कर्म करने की बात
कुरआन की अनेक आयतों में अच्छे कर्म करने और बुराई से बचने की बात कही गई है। ‘अम्र बिल मारूफ वा नाही ‘‘अनिल मुनकर’’ (3:11)। धर्म के अनुपालन में कोई विवशता नहीं है, कुरआन (2:256) कहती है-गलती में भी सच्चाई कायम रहती है। कुरआन के अध्याय 109  में विश्वास को खारिज करने वालों को कहा गया है-‘आप अपने विश्वास को मानिए और मैं अपने विश्वास को’। कुरआन में ईश निंदा का कोई उल्लेख नहीं है। इस अपराध के लिए दंडित करने की बात तो छोड़ ही दीजिए। पैगम्बर साहब को स्वयं खासे अपमान झेलने पड़े थे, यहां तक कि एक महिला तो उन पर नियमित कूड़ा तक फेंकती रही। वह चुपचाप वहां से इस दौरान गुजर जाते थे। जब पैगम्बर मुहम्मद साहब को पता चला कि उन पर कूड़ा फेंकने वाली महिला बीमार हो गई है, बिस्तर पर पड़ी है, तो वे उसका हाल जानने उसके घर पहुंचे और उसके जल्द स्वस्थ होने की दुआ की।

प्रत्येक धार्मिक समुदाय में असहिष्णु,अतिवादी, कट्टर, दकियानूसी और हिंसक लोग होते हैं। मुसलमानों में भी ऐसा है। लेकिन गैर-मुस्लिमों में ऐसे तत्वों के किए-धरे के लिए समूचे समुदाय को कठघरे में खड़ा नहीं किया जाता जैसे कि मुस्लिम समुदाय को। मुस्लिम कट्टरपंथी के किसी कृत्य, जिसकी आलोचना की ही जानी चाहिए, पर विश्व भर के मीडिया का ध्यान सबसे पहले जाता है, और समूचे समुदाय को उसके अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जाने लगता है। भारत में भी अतिवादी हैं-गौ रक्षक, जो पशुओं को ले जा रहे मुस्लिमों को पीट-पीट कर मार डालते हैं, उन्हें भगवान राम का उद्घोष करने को मजबूर करते हैं। चेचन युवक, जेहादी और गौ रक्षक न केवल अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र के खिलाफ हैं, बल्कि वे अपने धर्म की शिक्षाओं और मूल्यों के खिलाफ कार्य करते हैं। आइए, मिल कर बर्बर, अमानवीय और हिंसक कृत्यों की र्भत्सना करें। भले ही इन कृत्यों को करने वाले किसी भी धर्म या विश्वास को मानने वाले हों। समूचे समुदाय की लानत-मलामत के बजाय जरूरी है कि कानून अपना काम करे। धार्मिक विश्वास की विविधता का सम्मान हो। मानवीय संवेदनशीलता के साथ मानवीयता का संचार हो ताकि सच्चाई की समझ व्यापक हो पाए। ग्राहम स्टेन्स की पत्नी ग्लेडीज स्टेन्स ने उन लोगों को क्षमादान दिया था, जिनने उनके पति और दो बच्चों को झूठे आरोपों के आधार पर स्टेशन वैगन में सोते में मार डाला था। ऐसे क्षमाशील लोग ही पैटी के हत्यारों से कहीं ज्यादा मानवता के नायक हैं।

उपेन्द्र राय


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