उपराष्ट्रपति चुनाव : एक तीर से कई निशाने साधे एनडीए ने

Last Updated 11 Sep 2025 03:30:19 PM IST

सत्तारूढ़ एनडीए के उम्मीदवार एवं तमिलनाडु भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सीपी राधाकृष्णन ने विपक्ष के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी को परास्त कर 17वें उपराष्ट्रपति के रूप में जीत दर्ज की।


उपराष्ट्रपति चुनाव : एक तीर से कई निशाने साधे एनडीए ने

यह ऐतिहासिक घटना भारतीय राजनीति में बदलते समीकरणों और भविष्य की दिशा का भी संकेत है। राधाकृष्णन का चुना जाना न केवल एनडीए और भाजपा की रणनीतिक सूझबूझ का परिणाम है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि व्यक्ति चयन की प्रक्रिया को उन्होंने केवल राजनीतिक समीकरण तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसमें व्यापक सामाजिक-राष्ट्रीय दृष्टिकोण भी जोड़े। उपराष्ट्रपति पद संवैधानिक गरिमा का प्रतीक होता है, जहां राजनीति से ऊपर उठ कर राष्ट्रहित सर्वोपरि हो जाता है। 

इस जीत के कई निहितार्थ हैं। पहला, यह भाजपा और एनडीए की राजनीतिक पकड़ और संगठनात्मक शक्ति को और मजबूत करती है। दूसरा, यह विपक्षी इंडिया गठबंधन की कमजोरियों और आंतरिक मतभेदों को उजागर करती है। तीसरा, यह भविष्य की राजनीति की उस दिशा को दर्शाती है, जहां व्यक्तिगत ईमानदारी, सामाजिक स्वीकार्यता और राष्ट्रीय दृष्टि को अधिक महत्त्व मिलेगा। यह कदम भाजपा की उस राजनीति की भी झलक देता है, जहां वह केवल चुनावी जीत की ओर नहीं, बल्कि दीर्घकालीन सांस्कृतिक-वैचारिक स्थिरता की ओर अग्रसर है। कहा जा सकता है कि चुनाव में एक तीर से अनेक निशाने साधे गए हैं, एनडीए की शक्ति का प्रदर्शन, विपक्ष को स्पष्ट संदेश, संवैधानिक गरिमा की रक्षा और भविष्य की राजनीति में व्यक्ति चयन की एक नई परंपरा का सूत्रपात। 

भाजपा ने एक और तीर साधा है। जैसाकि तमिलनाडु की राजनीति परंपरागत रूप से द्रविड़ आंदोलनों और क्षेत्रीय पहचान से प्रभावित रही है, जहां कई दशकों से डीएमके और एआईएडीएमके का दबदबा रहा है। भाजपा के लिए इस राज्य में राजनीतिक जमीन तैयार करना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 4 सीटें मिलीं जबकि एनडीए गठबंधन को 66 सीटों पर सफलता मिली। स्पष्ट है कि तमिलनाडु में भाजपा की पकड़ कमजोर है, और उसे क्षेत्रीय भावनाओं, भाषा और संस्कृति से जुड़े सवालों पर गहरी पैठ बनाने की जरूरत है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बना कर रणनीतिक दांव खेला है। राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं, और उनकी पहचान को आगे रखकर भाजपा राज्य की राजनीति में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहती है।

संदेश देना चाहती है कि वह तमिल अस्मिता, संस्कृति और क्षेत्रीय नेतृत्व को सम्मान देती है। राधाकृष्णन के चुने जाने से भाजपा को उम्मीद है कि विधानसभा चुनावों में वह अपनी उपस्थिति और प्रभाव को विस्तार दे सकेगी और द्रविड़ राजनीति के प्रभुत्व को चुनौती देने का आधार बना सकेगी। भारत का उपराष्ट्रपति पद एवं उनका कार्यालय भारतीय लोकतंत्र की गरिमा और संतुलन का प्रतीक है। उपराष्ट्रपति संसद के उच्च सदन का अध्यक्ष होने के कारण संवाद, विचार और लोकतांत्रिक विमर्श की आत्मा को दिशा देते हैं। इस पद को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक, विचारक और शिक्षाविद ने अपने व्यक्तित्व और कार्य से ऊंचाई दी तब यह पद राष्ट्र के सांस्कृतिक, नैतिक और बौद्धिक आदशरे का संवाहक बन गया। उनके माध्यम से संदेश गया कि उपराष्ट्रपति का पद केवल राजनीतिक महत्त्व का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय मूल्यों के संरक्षण और विकास का भी दायित्व वहन करता है। 

रचनात्मक व्यक्तित्व को उपराष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित करना भारतीय राजनीति की उज्ज्वल परंपरा को बढ़ाने का संकेत है। यह बताता है कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती केवल सत्ता-संघर्ष में नहीं, बल्कि उच्च पदों पर ऐसे व्यक्तित्वों के चयन में निहित है, जो नैतिकता, विद्वत्ता और संवेदनशीलता से लोकतंत्र की गुणवत्ता को बढ़ाएं। डॉ. राधाकृष्णन की परंपरा को स्मरण करते हुए आवश्यक है कि उपराष्ट्रपति पद निरंतर आदर्शवाद, विमर्श की गहराई और राष्ट्रीय मूल्यों की ऊर्जा का केंद्र बना रहे।

राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति बनने से राज्य सभा की कार्यवाही में संयम और संवाद की संस्कृति मजबूत होगी। उपराष्ट्रपति पद का दायित्व केवल औपचारिक नहीं होता, बल्कि संसद की गरिमा और संविधान की मर्यादा का संरक्षक भी होता है। दक्षिण भारत से आना और ओबीसी समुदाय से होना उन्हें सामाजिक-राजनीतिक संतुलन का प्रतिनिधि बनाता है। उनका जीवन कर्मयोगी की तरह रहा है। उन्होंने किसी भी पद को शक्ति के रूप में नहीं देखा, बल्कि सेवा और कर्त्तव्य निभाने का अवसर माना। अब वे सत्रहवें उपराष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल प्रारंभ रहे हैं, तो आशा की जा सकती है कि संसद में शांति, लोकतांत्रिक परंपराओं और संवाद के स्तर को ऊंचाई देंगे। उनका अनुभव, धैर्य और समर्पण देश की लोकतांत्रिक संरचना को और अधिक सुदृढ़ बनाने में सहायक सिद्ध होगा।

ललित गर्ग


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