नेपाल में हिंसा : संकेत कुछ अलग दिखते हैं
आज नेपाल का आंदोलन विश्व पटल पर चर्चा का विषय बन गया है। भारी हिंसा के बाद प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओेली और गृह मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है। गौरतलब है कि पहले भी नेपाल में आंदोलन होते रहे हैं-मधेश आंदोलन, माओवाद आंदोलन।
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ये सभी आंदोलन अपने हक और अधिकार के लिए ही लड़ते रहे, परंतु बहुत ही कम समय में जो वर्तमान आंदोलन ने स्वरूप लिया है वह बहुत कुछ कह रहा है। 22 प्रदर्शनकारियों की मौत के बाद सरकार को झुकने के लिए मजबूर होना पड़ा।
दरअसल, इस ऐतिहासिक प्रदर्शन के पीछे सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर (4 सितम्बर) प्रतिबंध लगाना रहा है। यह खबर पूरे नेपाल में आग की तरह फैल गई। आंदोलन की अगुवाई जेन जी समूह ने किया। जेन जी समूह 1997 से 2012 तक के बीच पैदा हुए लोगों का समूह है या यूं कह लीजिए नौजवानों का समूह है। सबसे बड़ी बात यह है कि किसी भी राजनीतिक संगठन से इस समूह का जुड़ाव नहीं है। जो तकनीकी रूप से भी सशक्त हैं या तमाम ऐसे तकनीकों का उपयोग करते हैं जिसमें सोशल मीडिया के भी सभी फॉर्म आते हैं। जेन जी समूह बांग्लादेश और श्रीलंका में भी चर्चा में हैं। युवाओं के समूह से ‘नेपो किड’ नाम से अभियान चलाया जिसमें उन्होंने सच बात की।
मसलन; राजनीतिक व्यक्तियों के परिवारों को अलग से तरजीह, राजनीतिक और प्रभावशाली व्यक्तियों के बच्चों को गलत तरीकों से अर्जित धन हासिल कर या उन बच्चों को विशेषाधिकार मिलना, उनका रहन-सहन, गाड़ियों में घूमना, पॉकेट खर्च सब अलग तरीक़े से दिखते थे। ये सारी बातें उन युवाओं के मन में चिढ़ और वैमनस्यता पैदा कर दिया, लेकिन वह ग्रुप कुछ कर नहीं पा रहा था, उनके सामने विवश था। इसके बाद सोशल मीडिया पर ‘नेपो किड’ नाम से अभियान चलाया गया, जिसमें इसके साथ उन राजनीतिक और प्रभावशाली लोगों के भ्रष्टाचार को भी धीरे-धीरे उजागर करने लगे। अब यह एक बड़ा समूह बन गया। जिसका परिणाम ये हुआ कि राजनीतिक और प्रभावशाली व्यक्ति सरकार पर दबाव बनाने लगे।
दिन-प्रतिदिन उनके कारनामे सामने आ रहे थे। इसके प्रभाव में सरकार को सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। व्हाट्सएप, एक्स सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का आरोप लगाया था। इस दौरान प्रदशर्न हिंसक हो गया, जब प्रदशर्नकारियों ने संसद भवन के पास पुलिस के अवरोधकों को तोड़ दिया। प्रदशर्नकारियों को रोकने के आंसू गैस फिर गोली चलाया गया। जेन जी समूह प्रतिबंध के बाद और उग्र हो गया क्योंकि भ्रष्टाचार को भी इस आंदोलन के साथ जोड़ दिया गया। संसद परिसर में घुसने को उतारू आंदोलनकारियों की भीड़ ने हिंसक रूप ले लिया। हिंसा और मौत के बाद कुछ मानवाधिकार संगठन भी जुड़ गए और न्याय की मांग करने लगे। अब एक कौतूहल का विषय यह भी है कि सरकार ने सभी सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया बावजूद इतने लोग इकट्ठा कैसे हो गए?
यहां यह जानना जरूरी है नेपाली नागरिक सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मो का उपयोग दैनिक चर्या में करते हैं-मैसेंजर, वाइबर, टिक टॉक आदि पर नेपाल में खूब बातें की जाती हैं। उनके सामान्य कॉल से कम पैसे में बात हो जाती है। टिक टॉक ने सरकार को आासन दिया था हम आप के साथ हैं। आपकी सूचना को लोगों तक पहुंचाएंगे। इस नाते टिक टॉक को प्रतिबंधित नहीं किया गया। यह आंदोलन कुछ अलग संकेत भी दे रहे हैं। सोशल मीडिया का इतना बड़ा ग्रुप तैयार हो गया है कि नौजवान या आम लोगों का भी बिना इसके दैनिक चर्या प्रारंभ नहीं हो रही है। वो अलग डिबेट का विषय है कि कितनी पॉजिटिविटी है, कितनी निगेटिविटी है, लेकिन चिंतन का विषय तो है। आंदोलन को देखते हुए भारतीय सीमा पर पुलिस और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) मुस्तैद है। इंडो-नेपाल बॉर्डर 1751 किलोमीटर लंबी है जिसपर निगरानी बढ़ा दी गई है। भारत-नेपाल सीमा पर कर्फ्यू जैसे हालात हैं। प्रदर्शन का असर भारत पर भी पड़ा है। बॉर्डर के बहुत सारे बाजार नेपाल आधारित हैं। संकेत यह भी है कि लोकतंत्र के लिए भ्रष्टाचार और राजनीतिक वर्चस्व के जरिए विशेष व्यक्ति होना, विशेष दर्जा प्राप्त करना, विशेष रूप से धन अर्जित करना जैसे पहले भी नुकसानदायक रहा है आज भी है। यह आंदोलन दूसरे के लिए सीख भी हो सकता है।
समान नागरिक अधिकार लागू रहे, समानता बनी रहे और संविधान की रक्षा होती रहे। कुल मिलाकर इस समय नेपाल की राजनीति में भारी उथल-पुथल जारी है और आंदोलन अभी स्थगित नहीं हुआ है। कानून-व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी नेपाल सरकार ने सेना को दी है । मंगलवार को नेपाल के युवाओं का उग्र रूप कई शहरों में देखने को मिला। मंगलवार दोपहर को प्रदशर्नकारियों ने नेपाल की संसद को फूंक दिया। प्रदशर्नकारियों ने इससे पहले प्रधानमंत्री ओली के निजी निवास के अलावा, कई नेताओं और पूर्व प्रधानमंत्रियों के निजी आवासों में तोड़फोड़ की। विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि भारत, नेपाल में विरोध-प्रदशर्नों के दौरान कई नौजवानों की मौत से बेहद दुखी है और उसे उम्मीद है कि शांतिपूर्ण तरीके से मुद्दों का समाधान हो जाएगा। मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत पड़ोसी देश के घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रही है। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘एक करीबी मित्र और पड़ोसी होने के नाते, हम उम्मीद करते हैं कि सभी पक्ष संयम बरतेंगे और शांतिपूर्ण तरीकों व बातचीत के जरिए किसी भी मुद्दे का समाधान करेंगे।’
प्रदशर्नकारियों ने पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा को घर में घुसकर पीटा। वहीं, वित्त मंत्री विष्णु पोडौल को काठमांडू में उनके घर के नजदीक दौड़ाकर पीटा। इसका वीडियो वायरल हो रहा है। इन हिंसक घटनाओं के बीच खबर है कि प्रधानमंत्री ओली को सेना अज्ञात स्थान पर ले गई है। इस हिंसा में अब तक 22 लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 400 से ज्यादा लोग घायल हैं। युवा बेरोजगारी, पलायन, चौपट हो चुकी अर्थव्यवस्था से पहले ही तनाव में था, वहीं सोशल मीडिया प्लेटफार्म बंद होने से इस आक्रोश को चिंगारी मिल गई। लगता है नेपाल के माहौल को खराब करने में किसी तीसरे का हाथ है।
(लेख में विचार निजी हैं)
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