कारगिल विजय दिवस : सैनिकों का बलिदान और आमजन

Last Updated 26 Jul 2025 01:18:30 PM IST

देश के वीर सैनिक देश का गौरव हैं। चाहे कैसी भी आपदा या संकट हो, वे डरते नहीं हैं; चाहे चिलचिलाती धूप हो या खून जमा देने वाली ठंड, घने जंगल हों, ऊंचे पहाड़ हों या मानसूनी तूफान, सैनिक कई स्थितियों में भूखे-प्यासे रह कर, असुविधाओं से जूझ कर, मौत को आगे देख कर भी कभी पीछे नहीं हटते, अपने कर्त्तव्य और देश की रक्षा के लिए शहीद हो जाते हैं।


कारगिल विजय दिवस : सैनिकों का बलिदान और आमजन

1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय के उपलक्ष्य में कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। कारगिल विजय दिवस चुनौतीपूर्ण ऊंचाई वाली परिस्थितियों में लड़ने वाले जांबाज  सैनिकों के साहस, वीरता और बलिदान को दर्शाता है। यह दिवस भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। राष्ट्रीय गौरव और स्मरण का दिवस है, जो वीरता और बलिदान की कहानियों से प्रेरित करता है। गौरव की बात है कि देश की सुरक्षा सैनिकों के हाथों में महफूज है लेकिन उनकी तुलना में जब हम अपने आसपास का वातावरण देखते है तो लगता है कि क्या हम जैसे स्वार्थी लोगों के लिए देश का जवान सरहद पर तकलीफें सहता है।

नेता चुनाव के बाद 5 साल होते ही फिर जनता के बीच जाकर अभिनय कला शुरू कर देते हैं, और चुनाव खत्म होते ही पूर्व की भांति हो जाते हैं, कई नेता तो चुनाव के प्रचार के वक्त आम जनता के घर, खेत और कार्यस्थल में जाकर भी लोगों के काम में हाथ बंटाते हुए मीडिया में छाए नजर आते हैं। जनता को भोला कहे या कुछ और, जनता जिस नेता को जनप्रतिनिधि चुन कर जनकल्याण के लिए 5 साल के कार्यकाल के लिए ऊंचे-ऊंचे पद पर विराजमान करती है, अगर वह नेता योग्य नीति से जनकल्याण कार्य करने में असफल होता है तो उस नेता से जवाब पूछने से भी जनता डरती है, जिसने उस नेता को चुना होता है। कितने लोग अपने नेता, सांसद, विधायक, पाषर्द या अन्य जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछते हैं, या जवाब मांगते हैं? 

नेता अपनी जिम्मेदारी और फर्ज को पूरी सत्यनिष्ठा और देशप्रेम से वीर जवानों की भांति निभाएं तब देश में कोई समस्या ही नहीं रहेगी। मैं अपने जीवन के छोटे से अनुभव को आप सभी के साथ साझा कर रहा हूं। मैं महाविद्यालयीन शिक्षा प्राप्त करने के दौरान राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स का भी कैडेट रहा, तब हम छात्र सैन्य कैंप में जाकर बहुत कुछ सीखते थे, दिसम्बर की ठंड में जंगल के उस एनसीसी कैंप में रात भर हर छात्र की ड्यूटी 2 घंटे के लिए टेंट के बाहर सुरक्षा के तौर पर लगाई जाती थी, रात के 1 बजे या 3 बजे हो छात्र को नींद से जाग कर, पूरी वर्दी पहन कर, तैयार होकर टेंट के बाहर हमें संत्री की ड्यूटी करनी पड़ती थी। 25 किमी. लगातार जंगल ट्रैकिंग करना, अपने-अपने टेंट की जमीन को रोज गोबर से पोतना, विविध स्पर्धाओं में भाग लेना।

सुबह 5 बजे उठ कर, तैयार होकर रिपोर्टंिग करना, रोज बिना शिकायत के अपना पूरा काम खुद करना, तय समय पर नाश्ता, दोपहर और रात का खाना खुले घास के मैदान में बैठ कर करना। दिन भर के काम से शरीर इतना थक जाता था कि लेटते ही गहरी नींद लग जाती थी, थोड़ी सी भी गलती पर सख्त सजा मिलती थी। देश के कोने-कोने से आए छात्र अपनी विविध कला-कौशल का प्रदर्शन करते थे। सामूहिक कार्य, सद्भावना, देशप्रेम, तत्परता, निष्ठा, लगन, मेहनत, समर्पण भाव का अनूठा संगम देखने मिलता था और उसका भाग बन कर गर्व होता था। वो दिन मुझे सीखा गए कि जीवन में नियम-अनुशासन बेहद जरूरी हैं। 

समस्याओं की जड़ को समझने की बजाय लोग बाहरी आवरण को देख कर या झूठे दिखावे का शिकार होकर अपनी धारणाएं बना कर समस्याओं को बढ़ा देते हैं। प्रत्येक के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, उन्नत स्वास्थ्य सुविधाएं और योग्यता के अनुसार रोजगार या व्यवसाय सेवा, मजबूत देश की पहचान हैं। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से जुड़ी समस्याओं के प्रति जागरूक हुए बिना हम बेकार की चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और आपस में लड़ते-झगड़ते हैं, जिनका हमारे जीवन से कोई संबंध नहीं होता। अभिभावकों को बच्चों के साथ या उनके सामने कैसा व्यवहार करना है, यह तक पता नहीं है। मोबाइल, सोशल मीडिया, फैशन ने बच्चों से उनका बचपन, मासूमियत छीन ली है।

वीर शहीद जवानों, महापुरु षों, क्रांतिकारी देश भक्त, समाज सुधारकों, पराक्रमी राजा-महाराजाओं की प्रेरणात्मक गाथा को जानने के लिए बजाय वे फिल्मी सितारों, ऑनलाइन गेम्स, टाइम-पास मनोरंजन, फूहड़ता को देखने-जानने के लिए कीमती समय गवांते हैं। लोग स्वाद के लालच में अस्वास्थ्यकर भोजन पसंद करते हैं। आलस्य, नशाखोरी, प्रदूषण और मिलावट ने शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर कर दिया है, लेकिन लोग स्वास्थ्य को महत्त्व नहीं देते जो कि जरूरी है। देश के प्रत्येक नागरिक को अपने जीवन के कुछ साल देश सेवा के लिए सैनिक के रूप में जरूर देने चाहिए ताकि अनुशासन, देशभक्ति और कर्त्त्वयपरायणता का असल मतलब जान पाएं।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम


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