तिहाड़ जेल : कब सुधरेंगे हालात

Last Updated 09 May 2024 01:03:19 PM IST

आए दिन तिहाड़ जेल, जो देश ही नहीं एशिया की भी सबसे बड़ी जेल है, बंदी सुधार-गृह की बजाय अपराधों का केंद्र बन गई है। होना तो यह चाहिए था कि अपराधी कैदियों, जिन्हें सजा देकर कारावास में भेजा जाता है, में सुधार नजर आते पर वह नहीं हो रहा है।




तिहाड़ जेल : कब सुधरेंगे हालात

हाल में विचाराधीन कैदियों के बीच तू-तू, मैं-मैं में एक कैदी को जान गंवानी पड़ी। एक अफगान नागरिक कैदी ने पैने हथियार से घोंपकर उसकी जान ले ली। दीपक सोनी शकूरपुर का रहने वाला था जिसे जेल नंबर 3 में रखा गया था, जहां वह सेवक के रूप में था। वहीं 44 वर्षीय अब्दुल बशीर अखोंडजादा अफगान नागरिक है। इस कैदी को लाजपतनगर  में 2019 में हत्या के प्रयास में गिरफ्तार किया गया था। सोनी डकैती डालने के इल्जाम में कैद था। इस घटना ने तिहाड़ जेल के हालात सामने ला दिए हैं।  

तिहाड़ सेंट्रल जेल दिल्ली के तीन जेल परिसरों में से एक है। अन्य दो जेल परिसर रोहणी और मंडोली में हैं। तिहाड़ जेल में नौ केंद्रीय जेल हैं। इस जेल परिसर की स्थापना 1957 में हुई थी। चार सौ एकड़ में फैले इस जेल कैम्पस की स्थापना सेंट्रल जेल के रूप में हुई थी। इसमें 5200 कैदी रह सकते हैं। तिहाड़ जेल दिल्ली सरकार के अधीन आती है। आश्चर्य की बात यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो जेल के कर्ताधर्ता हैं, भी अब तिहाड़ जेल के कैदी बने हुए हैं। 1984 की शुरुआत में तिहाड़ जेल में अतिरिक्त सुविधाओं का निर्माण किया गया। आईपीएस अधिकारी किरण बेदी, जब जेल महानिरीक्षक थीं, ने तिहाड़ जेल में सुधार किए थे। उन्होंने इसका नाम बदल कर तिहाड़ आश्रम रखा था। 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार तिहाड़ जेल की कुल क्षमता 10 हजार 26 कैदियों की है, जबकि फिलहाल इसमें 18 हजार से ज्यादा कैदी बंद हैं। क्षमता से अधिक कैदी होने के कारण यहां खूंखार अपराधियों का साम्राज्य बन गया है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी के संयोजक जेल नंबर दो में बंद हैं। यह भी दिलचस्प है, केजरीवाल ने खुद अपनी सरकार होते हुए भी कोई मंत्रालय अपने पास नहीं रखा था; लेकिन अब तिहाड़ में एक साथ दो विभाग संभाल रहे हैं-मुख्यमंत्री और कैदी का। तिहाड़ के लिए भी यह एक नया समीकरण है, क्योंकि कैदी होने के अलावा संवैधानिक तौर पर केजरीवाल दिल्ली में चुने हुए मुख्यमंत्री भी हैं और बिना त्यागपत्र दिए अंदर गए हैं। अब तिहाड़ जेल में नेताओं का आना-जाना लगा रहता है; इस कारण ऐसे मेहमानों के लिए खास इंतजाम भी हैं। खास यानी ऐसी जगह, जो चोर-उचक्कों, छंटे हुए बदमाशों या खूंखार गैंगस्टर या आतंकवादियों के सेल या ठिकानों से अलग है, इन खास जगहों में तिहाड़ का जेल नंबर एक, दो और चार विशेष हैं। दिल्ली सरकार के एक अन्य मंत्री रहे सत्येंद्र जैन भी जेल नंबर सात में बंद हैं।

आप के सांसद संजय सिंह को जेल नंबर पांच में रखा गया था, जिनको कोर्ट ने जमानत दे दी है। केजरीवाल सुबह सवेरे उठने वालों में से हैं, इसलिए उन्हें जेल मैन्युअल से कोई ज्यादा दिक्कत नहीं है। जेल में कैदियों की डेली रूटीन सुबह सूरज निकलने के साथ शुरू हो जाती है। सुबह छह बजे हर कैदी को उठना होता है। रोजमर्रा के काम निपटाने के बाद सुबह साढ़े छह से सात बजे के बीच उन्हें नाश्ता दिया जाता है, जिसमें आम तौर पर ब्रेड और चाय होती है। दोपहर का खाना 11 बजे दिया जाता है। दाल, सब्जी, पांच रोटी या चावल, दोपहर तीन बजे शाम की चाय मिलती है। इसके बाद तीन से पांच बजे तक जेल में कैदियों को खेलने और टहलने का मौका मिलता है। शाम सात बजे रात का खाना। खाने में दाल, सब्जी, पांच रोटी या चावल दिया जाता है। मेडिकल रिपोर्ट और डॉक्टरी सलाह पर कैदियों को उनकी सेहत के अनुसार अलग से खाना मिलता है, इनमें घर का खाना भी होता है।

हाल के दौर में तिहाड़ की जो असली तस्वीर हम देख रहे हैं, वो काफी बदली-बदली सी है। अब तिहाड़ का सच कुछ और ही है। अब तमाम कायदे-कानूनों पर अकूत धन का बोलबाला दिखाई पड़ रहा है। वीआईपी और रसूख वाले लोगों के सामने जेल की दीवारें छोटी पड़ रही हैं। 1957 आजादी के ठीक दस साल बाद दिल्ली के पश्चिमी छोर पर तिहाड़ गांव में जेल की इमारत बन कर तैयार हुई।  इसके बनने के बाद नौ साल तक जेल को चलाने की जिम्मेदारी पंजाब के पास रही।

आगे चलकर इसकी कमान दिल्ली के हवाले कर दी गई। 1984 तक जेल का काफी विस्तार हो चुका था। जेल चाणक्यपुरी से सात किलोमीटर दूर दिल्ली के तिहाड़ गांव के करीब बनाई गई थी, इसी कारण शुरू से ही इसका नाम तिहाड़ से जुड़ा रहा।  इस जेल का नाम तब पूरी दुनिया में चर्चा में आया, जब इंस्पेक्टर जनरल ऑफ प्रिजन्स के तौर पर देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी ने अपने सकारात्मक प्रयासों से इसका नाम तिहाड़ जेल से बदल कर आश्रम कर दिया था। हालांकि आज सकारात्मक प्रयास जेल में नहीं दिख रहे।

भगवती प्र. डोभाल


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