अमेरिकी बैंक : क्यों हो रहे दिवालिया

Last Updated 09 May 2024 01:05:19 PM IST

अमेरिका में 2023 में तीन बैंक (सिलिकन वैली बैंक, सिग्नेचर बैंक, फस्र्ट रिपब्लिक बैंक) डूब गए थे और 2024 में भी एक बैंक (रिपब्लिक फर्स्ट बैंक) डूब गया है।




अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अमेरिकी केंद्रीय बैंक, यूएस फेडरल रिजर्व, द्वारा ब्याज दरों में की गई वृद्धि के चलते बैंकों के असफल होने की परेशानी बहुत बढ़ गई है।

सिलिकन वैली बैंक ने कई तकनीकी स्टार्टअप एवं उद्यमी पूंजी फर्म को ऋण प्रदान किया था। इस बैंक के पास 2022 के अंत में 20,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर की संपत्तियां थीं और यह अमेरिका के बड़े आकार के बैंकों में गिना जाता था और हाल के समय में डूबने वाले बैंकों में दूसरा सबसे बड़ा बैंक माना जा रहा है। सिग्नेचर बैंक ने न्यूयॉर्क कानूनी फर्म एवं अचल संपत्ति कंपनियों को ऋण सुविधाएं प्रदान कर रखी थीं। इस बैंक के पास 2022 के अंत में 11,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति थीं और यह अमेरिका में हाल के समय में डूबने वाले बड़े बैंकों में चौथे स्थान पर आता है। 31 जनवरी, 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार, रिपब्लिक फस्र्ट बैंक की संपत्तियां 600 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं जमाराशि 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर थीं। न्यू जर्सी, पेनिसल्वेनिया और न्यूयॉर्क में बैंक की 32 शाखाएं थीं जिन्हें अब फुल्टन बैंक की शाखाओं के रूप में जाना जाएगा क्योंकि फुल्टन बैंक ने इस बैंक की संपत्तियां व जमाराशि खरीद ली हैं।  

पीयू रिसर्च संस्थान के अनुसार, 1980-95 के बीच अमेरिका में 2,900 बैंक असफल हुए थे। इन बैंकों के पास संयुक्त रूप से 2.2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की संपत्ति थीं। 2007-14 के बीच अमेरिका में 500 बैंक, जिनकी कुल संपत्ति 95,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर थीं, असफल हो गए थे। कहा जाता है कि विशेष परिस्थितियों को छोड़कर अमेरिका में सामान्यत: बैंक असफल नहीं होते हैं। परंतु, इस संबंध में अमेरिकी रिकार्ड कुछ और ही कहानी कह रहा है। 1941-79 के बीच अमेरिका में औसतन 5.3 बैंक प्रति वर्ष असफल हुए। 1996-2006 के बीच औसतन 4.3 बैंक प्रति वर्ष असफल हुए एवं 2015-22 के बीच औसतन 3.6 बैंक प्रति वर्ष असफल हुए।

2022 में अमेरिकी बैंकों को 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ था। 1921-29 के बीच अमेरिका में औसतन 635 बैंक प्रति वर्ष असफल हुए। ये अधिकतर छोटे आकार के बैंक एवं ग्रामीण बैंक थे और एक ही शाखा वाले बैंक थे। अमेरिका में आई भारी मंदी के दौरान 1930-33 के बीच 9,000 से अधिक बैंक असफल हुए थे। इनमें कई बड़े आकार के शहरों में कार्यरत बैंक भी शामिल थे और उस समय इन बैंकों में जमाकर्ताओं की भारी-भरकम राशि डूब गई थी। 1934-40 के बीच अमेरिका में औसतन 50.7 बैंक प्रति वर्ष बंद किए गए थे। अमेरिका में इतनी भारी मात्रा में बैंकों के असफल होने के कारणों में मुख्य रूप से शामिल है कि वहां छोटे-छोटे बैंकों की संख्या बहुत अधिक होना है।

बैंकों के ग्राहक पढ़े-लिखे और समझदार हैं। बैंक में आई छोटी से छोटी परेशानी में भी वे बैंक से तुरंत अपनी जमाराशि को निकालने पहुंच जाते हैं, जबकि बैंक द्वारा इस राशि से खड़ी की गई संपत्ति को रोकड़ में परिवर्तित करने में कुछ समय लगता है। इस बीच, बैंक यदि जमाकर्ता को जमाराशि का भुगतान करने में असफल रहता है तो उसे दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और इस प्रकार बैंक असफल हो जाता है। कई बार बैंकों द्वारा किए गए निवेश (संपत्ति) की बाजार में कीमत भी कम हो जाती है, इससे भी बैंक जमाकर्ताओं को जमाराशि का भुगतान करने में असफल हो जाते हैं।

हाल में अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी की गई जिससे इन बैंकों द्वारा अमेरिकी बॉन्ड में किए गए निवेश की बाजार में कीमत अत्यधिक कम हो गई है। अब इन बैंकों को बॉन्ड में निवेश की बाजार कीमत कम होने के स्तर तक प्रावधान करने को कहा गया है और यह राशि इन बैंकों के पास उपलब्ध ही नहीं है, जिसके चलते भी ये बैंक असफल हो रहे हैं।  

एक सर्वे में बताया गया है कि आने वाले समय में अमेरिका में 190 अन्य बैंकों के असफल होने का खतरा मंडरा रहा है क्योंकि ब्याज दरों के बढ़ने से ऋण की मांग बहुत कम हो गई है। विभिन्न कंपनियों ने अपने विस्तार की योजनाओं को रोक दिया है, इससे निर्माण की गतिविधियों में कमी आई है। फेडरल रिजर्व का पूरा ध्यान मुद्रास्फीति कम करने पर है एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्था में विकास दर को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उत्पादों की मांग कम हो और मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लिया जा सके। इसके चलते कई कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं एवं युवा वर्ग बेरोजगार हो रहा है।

पूंजीवाद पर आधारित आर्थिक नीतियां अमेरिका में बैंकिंग क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं का हल नहीं निकाल पा रही हैं। अब तो अमेरिकी अर्थशास्त्री भी मानने लगे हैं कि आर्थिक समस्याओं के संदर्भ में साम्यवाद के बाद पूंजीवाद भी असफल होता दिखाई दे रहा है एवं आज विश्व को  नये आर्थिक मॉडल की आवश्यकता है। इन अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का स्पष्ट इशारा भारत की ओर है क्योंकि इस बीच भारतीय आर्थिक दर्शन पर आधारित मॉडल भारत में आर्थिक समस्याओं को हल करने में सफल रहा है। अमेरिका में बैंकों के असफल होने की समस्या मुख्यत: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में की गई वृद्धि के कारण उत्पन्न हुई है।

दरअसल, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से उत्पादों की मांग को कम करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करने के स्थान पर बाजार में उत्पादों की उपलब्धता बढ़ाई जानी चाहिए ताकि इन उत्पादों की कीमत कम रखी जा सके। प्राचीन भारत में उत्पादों की उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता था, जिसके कारण मुद्रास्फीति की समस्या भारत में कभी रही ही नहीं है, बल्कि भारत में उत्पादों की प्रचुरता के चलते समय-समय पर उत्पादों की कीमतें कम होती रही हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मुद्रास्फीति का जिक्र ही नहीं मिलता। दूसरे, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक मॉडल एवं नियमों को बहुत जटिल बना दिया गया है। इससे भी कई प्रकार की आर्थिक समस्याएं खड़ी हो रही हैं, जिसका हल विकसित देश नहीं निकाल पा रहे हैं।

प्रह्लाद सबनानी


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