International Mother Language Day 2024 : इस पहचान को खोने न दें

Last Updated 20 Feb 2024 01:25:08 PM IST

भाषा सिर्फ संवाद का स्वाभाविक माध्यम ही नहीं है, बल्कि किसी भी व्यक्ति या समुदाय की सांस्कृतिक पहचान भी होती है।


मातृभाषा दिवस : इस पहचान को खोने न दें

यह हम सब जानते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अंग्रेजी भाषा के अच्छे जानकार थे। उन्होंने विदेश में पढ़ाई की थी, लेकिन वह अपनी भाषा, मातृभाषा के समर्थक थे। वह मानते थे कि कोई भी बात अपनी भाषा में जितने अच्छे तरीके से कही जा सकती है, दूसरी भाषा में नहीं।

विश्व में भाषाई व सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए और मातृभाषा के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से हर वर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। आज आधी भाषा खतरे में हैं। कारण है कि आज हमारे बच्चे, हमारी युवा पीढ़ी अपनी मूल भाषा से काफी दूर हैं। हम सिर्फ  बच्चों को अंग्रेजी सिखाने की होड़ में उनको मातृभाषा से दूर कर रहे हैं।

कोई व्यक्ति यदि भाषा के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति देता है तो वह अपनी पहचान, अपनी संस्कृति, अपने परिवेश, अपने ज्ञान, अपनी आत्मा,अपने इतिहास, अपनी परंपराओं के बारे में हमें रूबरू करवाता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुमरू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने पर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करती हैं।

उनका मानना है कि अगर विज्ञान, साहित्य और सामाजिक विज्ञान की पढ़ाई भी मातृ भाषा में कराई जाए तो इन क्षेत्रों में प्रतिभाएं और निखर कर सामने आएंगी। वे अपने स्कूली शिक्षकों के योगदान को हमेशा याद करती हैं, जिनकी वजह से राष्ट्रपति कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली लड़की बनी थीं।

उनका मानना है भारत की स्कूली शिक्षा दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा पण्रालियों में से एक होती है इसलिए अगर बच्चों को आगे बढ़ना है तो एक विषय मातृभाषा पर केंद्रित जरूर होना चाहिए।

इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से जब एक साक्षात्कार में पूछा गया था कि आप इतने महान वैज्ञानिक बन गए, इसमें सबसे बड़ा योगदान किसका मानते हैं तो उन्होंने उत्तर दिया था की ‘मेरी पढ़ाई मातृभाषा में हुई है इसलिए मैं इतना ऊंचा वैज्ञानिक बन सका हूं, उसके उपरांत उन्होंने थोड़ी बहुत अंग्रेजी सीख स्वयं को उसमें भी दक्ष बना लिया किंतु मूल भाषा उनकी पढ़ाई की तमिल रही।

इसके अलावा हमारे देश में कई ऐसे विद्वान हुए जिनका मानना था विज्ञान की पढ़ाई मातृभाषा में ही होनी चाहिए ताकि सभी लोग इसमें भाग ले सकें। आज जनजातीय भाषाओं का संवर्धन व संरक्षण भी बेहद जरूरी है।

International Mother Language Day 2024 : इस पहचान को खोने न देंभाषाओं का अस्तित्व व प्रसार तभी संभव है जब हम जनजातीय भाषाओं, हमारे आसपास की विभिन्न भाषाओं, देशज भाषाओं का संवर्धन और संरक्षण करेंगे। हमें सदैव इस बात चिंतन जरूर करना चाहिए कि हम अपनी भाषा को कैसे आगे बढ़ाएं, उसे कैसे आगे ले जाएं, उसे कैसे समृद्ध करें, इस दिशा में हमें पहल करने की जरूरत है और सबसे पहले शुरूआत अपने आप से करनी होंगी। अंग्रेजी के साथ साथ सभी स्कूलों के अलावा घर में भी मातृभाषा पर ध्यान देना होगा।

आज के युग में भाषाओं की विलुप्ति का कारण कहीं न कहीं वैीकरण भी है। वैीकरण के इस दौर में पूरी दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति कुछ बेहतर पाने की कोशिश में लगा हुआ है और शायद यही कारण है कि वह बहुत सी अहम चीजों को आज लगातार विस्मृत करता चला जा रहा है। भाषा भी उन अहम चीजों में से एक है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई भाषा मर जाती है, तो आसपास की ज्ञान प्रणाली भी मर जाती है और विलुप्त हो जाती है।

आज के समय में, अंग्रेजी और अन्य प्रमुख भाषाएं ज्ञान और रोजगार की भाषा के साथ-साथ इंटरनेट की प्राथमिक भाषा बन गई हैं। डिजिटल क्षेत्र की प्रमुख सामग्री अब अधिकतर अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध है और इसलिए, अन्य भाषाओं को हाशिए पर डाल दिया गया है। नई दिल्ली स्थित आकाशवाणी भवन में एक दीवार पर पट्टिका लगी हुई है जिस पर लिखा है ‘बच्चों का भविष्य सदैव मां द्वारा ही निर्मिंत होता है’ यह कथन महात्मा गांधी का है। अब जरूरत इसको अपने जीवन में उतारने की है। बच्चों की मातृभाषा में दिलचस्पी तभी पैदा हो सकती है जब खुद मां उनसे अपनी भाषा में बातचीत करें और उन्हें अंग्रेजी सीखने के साथ अपनी  मातृभाषा सीखने के लिए भी प्रोत्साहित करें। इसके अलावा स्कूलों में भी नियमित रूप से मातृभाषा पर एक कार्यशाला का आयोजन समय-समय पर होना चाहिए।

रेडियो इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। टीवी और मोबाइल से अधिकतर बच्चे सोशल मीडिया पर रील्स बनाने और देखने में लगे रहते हैं जिससे उनका दिमाग गलत दिशा में जा रहा है। ऐसे में उन्हें मोबाइल की जगह रेडियो हाथ में दें। आज आकाशवाणी में अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में बुलेटिन प्रसारित किए जाते है, अनेक कार्यक्रम ऐसे होते हैं जिससे आप मातृभाषा की और अग्रसर हो सकते हैं। शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों को एक बार आकाशवाणी केंद्र जरूर लेकर आएं ताकि वे रेडियो के महत्त्व को समझते हुए अपनी संस्कृति,अपनी भाषा, अपनी पहचान को और करीब से जान सकें। क्यों न आज से ही हम सजग हो जाएं और मातृभाषा को अपने अंदर समाहित कर अपने साथ साथ देश का भी गौरव बढ़ाएं।

फरहत नाज


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment