बजट प्रावधान : अनुसंधान क्षेत्र में आगे बढ़ने की उम्मीद
बीते कुछ सालों में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अनेक वैश्विक उपलब्धियां हासिल करके दुनिया को चौंकाने का काम किया है।
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इनमें पहली बार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना, सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य-एल मिशन प्रक्षेपित करना और इसरो द्वारा ब्लैकहोल के रहस्यों को खंगालने के लिए उपग्रह भेजने जैसी उपलब्धियां शामिल हैं। भविष्य में भारत अंतरिक्ष में मानवयुक्त गगनयान भेजने और शुक्र ग्रह पर जाने की तैयारी में है। बावजूद वैज्ञानिक अनुसंधानों में भारत कई देशों से पिछड़ रहा है।
धन की कमी के चलते संस्थाएं और मौलिक सोच रखने वाले युवा सपने देखते ही रह जाते हैं। इसकी एक वजह निजी क्षेत्र का अनुसंधान में ज्यादा योगदान नहीं देना भी है, लेकिन 2024 के अंतरिम बजट में ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जो युवाओं के सपने पूरा करने में मदद करेंगे। बजट में सरकार ने ऐलान किया है कि 50 वर्षो तक के लिए ब्याज- मुक्त ऋण हेतु एक लाख करोड़ रुपये की निधि तय की जाएगी। इस पहल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘जय अनुसंधान’ नारे से जोड़कर देखा जा रहा है।
शोध के क्षेत्र में धन बढ़ाकर भारत ने न केवल युवाओं के हौसलों को उड़ान भरने का सुनहरा अवसर दिया है, बल्कि आविष्कार के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाने का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया है। भारत में उच्च शिक्षा के 40 हजार से ज्यादा संस्थान हैं। इनमें से एक प्रतिशत में ही अनुसंधान होता है। इसीलिए दुनिया के 100 बेहतरीन संस्थानों में भारत का एक भी नहीं है। शोध के अवसर नहीं मिलने के चलते ही भारत के युवा अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन में पीएचडी के लिए चले जाते हैं, जिनमें से अधिकतर वापस नहीं लौटते।
भारत में सरकार या सरकारी संस्थाएं ही सबसे ज्यादा शोध का खर्च वहन करती हैं, जबकि अमेरिका में सरकार शोध पर सिर्फ 10 प्रतिशत और चीन में सिर्फ 16 प्रतिशत खर्च करती है। बाकी का खर्च निजी क्षेत्र उठाता है। यदि भारत के निजी उच्च शिक्षा संस्थान शोध के क्षेत्र में खर्च की भागीदारी बढ़ा दें तो शोध का स्तर बेहतर हो सकता है। भारत दुनिया का अकेला देश है जहां 31 प्रतिशत विद्यार्थी विज्ञान, गणित और तकनीकी विषयों में सबसे ज्यादा रुचि लेते हैं।
नवाचारी वैज्ञानिकों को लुभाने की सरकार ने अनेक कोशिशें की हैं। बावजूद देश के लगभग सभी शीर्ष संस्थानों में वैज्ञानिकों की कमी है। वर्तमान में 70 प्रमुख शोध-संस्थानों में 3200 वैज्ञानिकों के पद खाली हैं। यह स्थिति तो तब है, जब सरकार ने पदों को भरने के लिए आकषर्क योजनाएं शुरू की हैं। इनमें रामानुजन शोधवृत्ति, सेतु-योजना, प्रेरणा-योजना और विद्यार्थी-वैज्ञानिक संपर्क योजना शामिल हैं। शोध के लिए सुविधाओं के भी प्रावधान हैं। राज्यों में कार्यरत वैज्ञानिकों को स्वदेश लौटने पर आकषर्क पैकेज देने के प्रस्ताव दिए जा रहे हैं।
बावजूद परदेश से वैज्ञानिक लौट नहीं रहे। एक तो वैज्ञानिकों को भरोसा पैदा नहीं हो रहा है कि जो प्रस्ताव दिए जा रहे हैं, वे निरंतर बने रहेंगे? दूसरे नौकरशाही द्वारा कार्यपण्राली में अड़ंगों की प्रवृत्ति भी भरोसा पैदा करने में बाधा बन रही है। उस पर सरकार विज्ञान से ज्यादा महत्त्व खेल को देती है। दूसरे उसने सूचना तकनीक को विज्ञान मान लिया है, जो वास्तव में विज्ञान नहीं है, बावजूद इसके विस्तार में प्रतिभाओं को खपाया जा रहा है। वैज्ञानिक प्रतिभाओं को तवज्जो नहीं मिलना भी प्रतिभाओं के पलायन का बड़ा कारण है।
जाहिर है, हमें उन लोगों को भी महत्त्व देना होगा जो अपने देशज ज्ञान के बूते आविष्कार में तो लगे हैं, लेकिन अकादमिक ज्ञान नहीं होने के कारण उनके आविष्कारों को वैज्ञानिक मान्यता नहीं मिल पाती है। कर्नाटक के किसान गणपति भट्ट ने पेड़ पर चढ़ने वाली मोटरसाइकल बनाकर अद्वितीय उदाहरण पेश किया है, लेकिन इस आविष्कार को न तो विज्ञान-सम्मत माना गया और न ही गणपति भट्ट को (अशिक्षित होने के कारण) केंद्र या राज्य सरकार से सम्मानित किया गया। यह व्यवहार प्रतिभा का अनादर है।
गौरतलब है कि 1930 में जब देश में फिरंगी हुकूमत थी, तब वैज्ञानिक शोध का बुनियादी ढांचा न के बराबर था। बावजूद जगदीश चंद्र बसु ने भौतिकी और जीव विज्ञान में वैश्विक मान्यता दिलाने वाले आविष्कार किए। यही बसु अपने मौलिक आविष्कार रेडियो का पेटेंट नहीं करा पाए अन्यथा रेडियो का आविष्कार भारत के नाम होता। सीवी रमन ने साधारण देशी उपकरणों के सहारे देशज ज्ञान और भाषा को आधार बनाकर काम किया और भौतिकी में नोबेल हासिल किया। सत्येंद्र नाथ बसु ने आइंस्टीन के साथ काम किया।
मेघनाद साहा, रामानुजन, पीसी रे, होमी जहांगीर भाभा, शांति स्वरूप भटनागर और विक्रम साराभाई ने अनेक उपलब्धियां पाई। रामानुजन के एक-एक सवाल पर पीएचडी की उपाधि मिल रही है। एपीजे कलाम, जयंत विष्णु नर्लीकर, महिला वैज्ञानिक टेसी थॉमस और के शिवम जैसे वैज्ञानिक भी मातृभाषा में आरंभिक शिक्षा लेकर महान वैज्ञानिक बने हैं। लेकिन अब उच्च शिक्षा में तमाम गुणवत्तापूर्ण सुधारों और अनेक प्रयोगशालाएं खुल जाने के बावजूद गंभीर अनुपालन का काम थमा है। अब धन की बहुलता हो जाने से उम्मीद है कि अनुसंधान के क्षेत्र में भारत भविष्य में अग्रिम होगा।
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