मुद्दा : कम हो रही आय असमानता

Last Updated 18 Jan 2024 01:12:38 PM IST

भारत के बारे में अक्सर कहा जाता है कि कोरोना महामारी के बाद से भारत के आर्थिक क्षेत्र में वाई आकार का विकास हो रहा है। आर्थिक दृष्टि से वाई आकार के विकास से आश्य है कि देश की अर्थव्यवस्था में गरीब अधिक गरीब हो रहा है, और अमीर अधिक अमीर।


मुद्दा : कम हो रही आय असमानता

हालांकि हाल के समय में भारत में आय, बचत, उपभोग एवं खर्च आदि के संबंध में इस प्रकार की नीतियां बनाई जाती रही हैं कि गरीब वर्ग को अधिकतम लाभ मिले। गरीब अन्न कल्याण योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान योजना, आवास योजना एवं प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना आदि के अंतर्गत सब्सिडी की राशि लाभार्थियों के खातों में सीधे हस्तांतरित कर दी जाती हैं। इससे लाभार्थियों को सहायता की राशि 100 प्रतिशत तक मिल जाती है, और भ्रष्टाचार की संभावना लगभग शून्य हो जाती है।  

भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग द्वारा आयकर विभाग द्वारा जारी आयकर विवरणियों संबंधी आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करते हुए बताया गया है कि भारत में नागरिकों के बीच आय की असमानता कम हो रही है। वित्तीय वर्ष 2014 में व्यक्तिगत आयकर रिटर्न फाइल करने वाली कुल संख्या में 36.3 प्रतिशत संख्या निम्न आय वर्ग की श्रेणी के नागरिकों की थी, और यह वर्ग वित्तीय वर्ष 2021 में मध्यम आय वर्ग की श्रेणी में आ गया तथा इस बीच इस वर्ग की आय 21.1 प्रतिशत बढ़ी। इस कारण 3.5 लाख रुपये वार्षिक आय वाले नागरिकों की संख्या वित्तीय वर्ष 2014 में 31.8 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2021 में 15.8 प्रतिशत रह गई।

इसी प्रकार, सबसे अधिक आयकर अदा करने वाले 2.5 प्रतिशत नागरिकों का कुल आय में योगदान 2.81 से घटकर 2.28 प्रतिशत हो गया। अत: देश में मध्यम आय वर्ग के नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आय कर दाखिल करने वाले नागरिकों की प्रति व्यक्ति औसत आय वित्तीय वर्ष 2014 में 3.1 लाख से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2021 में 11.6 लाख रु पये हो गई और वित्तीय वर्ष 2022 में यह 12.5 से 13 लाख रु पये के बीच रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

भारत के आर्थिक विकास में महिला भागीदारी भी बढ़ रही है। कुल श्रमिक तंत्र में महिलाओं की संख्या 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई। आयकर विवरणियां फाइल करने में भी महिलाओं की संख्या 15 प्रतिशत हो गई है। देश में तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते दोपहिया वाहनों की तुलना में चारपहिया वाहनों की बिक्री में अधिक वृद्धि दर हासिल हो रही है।

वित्तीय वर्ष 2019 में 2.12 करोड़ दोपहिया वाहनों की बिक्री हुई थी, जबकि उस वर्ष कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद में 2.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी और मानसून में भी लगभग 14 प्रतिशत की कमी रही थी। वर्तमान वित्तीय वर्ष में दोपहिया वाहनों की बिक्री 1.8 करोड़ की रही। इसके पीछे मुख्य कारण बताया जा रहा है कि एक तो मध्यम वर्ग अपने लिए मकानों की खरीद अधिक मात्रा में कर रहा है और दूसरे मध्यम वर्ग दोपहिया वाहनों के स्थान पर चारपहिया वाहन खरीदने की ओर आकर्षित हुआ है।  

एक अनुमान के अनुसार, अगले दशक की समाप्ति पर 50 प्रतिशत उत्पादों का उपभोग (लगभग 16 लाख करोड़ रुपये) गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों में से 90 प्रतिशत नागरिकों द्वारा किया जाने लगेगा। गरीब वर्ग को केंद्र सरकार द्वारा बहुत बड़े स्तर पर मुफ्त अनाज, मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं एवं मकान आदि उपलब्ध कराए जा रहे हैं (अभी तक 4 करोड़ परिवारों को रहने के लिए मकान उपलब्ध कराए जा चुके हैं), जिसके कारण इस वर्ग की 8.2 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त उपभोग कर सकने की क्षमता बढ़ी है।

वित्तीय वर्ष 2013-14 से वित्तीय वर्ष 2021-22 के बीच 5-10 लाख रु पये की आय वाले वर्ग में आय कर विवरणियां फाइल करने वाले नागरिकों की संख्या 295 प्रतिशत से बढ़ी है। इसी प्रकार, 10 लाख से 15 लाख रु पये की आय वाले वर्ग में आय कर विवरणियां फाइल करने वाले नागरिकों की संख्या 291 प्रतिशत बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2022 में 7 करोड़ नागरिकों द्वारा आय कर विवरणियां फाइल की गई थीं, यह संख्या वित्तीय वर्ष 2023 में बढ़कर 7.4 करोड़ हो गई और वित्तीय वर्ष 2024 में 8.5 करोड़ हो जाने की संभावना है। यह संख्या देश में औपचारिक क्षेत्र में कुल श्रमिकों की संख्या का 37 प्रतिशत है।

व्यक्तिगत आय कर अदा करने वाले नागरिकों के अतिरिक्त सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी की इकाइयों में भी लगभग इसी प्रकार के परिवर्तन दिखाई दिए हैं। वित्तीय वर्ष 2014 से वित्तीय वर्ष 2021 के बीच सूक्ष्म आकार की 19.5 प्रतिशत इकाइयों की आय तेज गति से बढ़ी है, और अब सूक्ष्म आकार की ये इकाइयां छोटी, मध्यम एवं बड़ी श्रेणी की इकाइयों में परिवर्तित हो गई हैं।

प्रह्लाद सबनानी


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