रामलला प्राण प्रतिष्ठा के लिए सकारात्मक माहौल जरूरी

Last Updated 16 Jan 2024 12:55:23 PM IST

इसमें दो मत नहीं कि देश में अद्भुत राममय वातावरण बना है। बाजारों में श्रीराम से जुड़ी चीजों की खरीदारी की एक नई प्रवृत्ति देखी जा रही है। बाजार में रामजी के नाम से बने सिक्के, आभूषण वस्त्र आदि की मांग काफी बढ़ी है और इस कारण व्यापारिक गतिविधियां भी।


अयोध्या : सकारात्मक माहौल जरूरी

आपको चलते-फिरते किसी ने किसी मोहल्ले में श्रीराम जय राम की धुन से लेकर अन्य संकेत मिल जाएंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार की कोशिशों से 22 जनवरी के लिए लाखों की संख्या में मंदिरों ने कार्यक्रम की तैयारी की है। कांग्रेस या कम्युनिस्ट पार्टयिों के वक्तव्य और व्यवहार से निस्संदेह थोड़ा नकारात्मक वातावरण बना, लेकिन यह साफ दिख रहा है कि आम लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया।

स्वयं कांग्रेस पार्टी के अंदर भी सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा निमंतण्रअस्वीकार करने का संपूर्ण समर्थन नहीं है। इससे पता चलता है कि लगभग तीन दशक बाद पूरे देश का वातावरण अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर कैसा बना है। हालांकि 22 जनवरी के निमंतण्रको लेकर उन लोगों के अंदर थोड़ी निराशा और खीझ है जिन्होंने प्रतिबद्धता के साथ श्रीराम मंदिर के विषय को विपरीत परिस्थितियों में भी मुद्दे के रूप में बनाए रखने के लिए अपने निजी हितों की लगातार बलि चढ़ाई।

ऐसे अवसर पर उनकी दुखद अनदेखी तथा ऐसे लोगों को, जिन्होंने या तो विरोध किया या सेक्युलरवाद विरोधी छवि न बने इस कारण खामोश रहे या बीच का रास्ता अपनाया या फिर जिन्होंने इन विषयों का संकुचित स्वार्थ के लिए उपयोग किया उन सबको निमंतण्रद्वारा प्रतिष्ठा देना ऐसे लोगों को कचोट रहा है। किंतु सबके मन में भाव यही है कि ध्वस्त किए गए मानविन्दुओं के 500 वर्षो बाद आध्यात्मिक अत:शक्ति को फिर से पुनप्र्रतिष्ठित करने का समय आया है तो ऐसे में विवाद खड़ा करके सकारात्मक वातावरण को कमजोर न किया जाए। निश्चित मानिए ऐसे माहौल का संपूर्ण राष्ट्र के वर्तमान एवं भविष्य की दृष्टि से व्यापक प्रभाव होगा। तात्कालिक रूप से हम भले यह गणना करें कि आगामी लोक सभा चुनाव में इसका लाभ किसे मिलेगा या इससे किनको क्षति होगी, पर श्रीराम के बाल विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा तथा मंदिर के संपूर्ण निर्माण का प्रभाव केवल चुनाव तक सीमित नहीं हो सकता।

यह तो साफ है कि जिस पार्टी ने अयोध्या के विवादित स्थल पर श्रीराम मंदिर के पुनर्निर्माण को अपना लक्ष्य घोषित किया, उसके लिए आंदोलन अभियान चलाए उसे मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा तक का श्रेय मिलेगा। जो पार्टयिां आज राजनीतिक लाभ के लिए राम का उपयोग करने का आरोप लगातीं हैं उन्हें अपने गिरेबान में झांकने की आवश्यकता है। आखिर इन पार्टयिों का ही नहीं, हमारे देश की मीडिया और बुद्धिजीवियों के बड़े समूह का श्रीराम मंदिर आंदोलन के प्रति रवैया क्या रहा? भाजपा ने जब से विवादित स्थल पर श्रीराम मंदिर निर्माण को अपने एजेंडे में शामिल किया तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से विश्व हिंदू परिषद ने इसे आगे बढ़ाया तभी से पूरे परिवार के लिए कम्युनल फोर्सेस यानी सांप्रदायिक शक्तियां शब्द प्रयोग होने लगे।

पहले विश्व हिंदू परिषद की एकात्मता यात्रा को जगह-जगह रोकने और बाधित करने की कोशिश हुई और बाद में लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा को। रथ यात्रा के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय तक मामले ले जाए गए। यह अलग बात है कि आडवाणी इतना सधा हुआ भाषण देते थे कि न्यायालय को इसमें कुछ भी आपत्तिजनक, सांप्रदायिक या किसी कम्युनिटी को भड़काने जैसा नहीं मिला। ज्यादातर समाचार पत्रों-पत्रिकाओं ने इसके विरुद्ध ही तेवर अपनाया तथा कई ने तो अपनी पत्र-पत्रिका को ही राम मंदिर आंदोलन विरोधी अभियान का हिस्सा बना दिया। उस समय टेलीविजन या इंटरनेट का दौर नहीं था इस कारण आपको तब की सामग्रियों के लिए थोड़ी शोध करनी पड़ेगी।

ऐसा माहौल बनाया गया मानो संघ और भाजपा देश में हिंदुओं और मुसलमान के बीच संघर्ष कराकर गृह युद्ध की स्थिति पैदा करना चाहती है। चाहे न्यायालय में मुकदमे लड़ने वाले हों या फिर अन्य तरीकों से श्रीराम मंदिर के पक्ष में काम करने वाले, सबका उपहास उड़ाया गया, लेकिन धीरे-धीरे जनता का व्यापक समर्थन मिला और मामला सघन हुआ तो न्यायालय तक में बड़े-बड़े वकील इसके विरोध में खड़े होने लगे। राजधानी दिल्ली की पत्रकारिता और बौद्धिक क्षेत्र का वातावरण इतना डरावना था कि कोई सामान्य पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी, अयोध्या आंदोलन या श्रीराम मंदिर के पक्ष में बोलने का साहस तक नहीं कर सकता था।

आज कहा जा रहा है कि राम सबके हैं और मंदिर से किसी का विरोध नहीं है किंतु भाजपा और तत्कालीन बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को छोड़ दीजिए तो किसी भी पार्टी का एक शब्द आपको श्रीराम मंदिर के समर्थन में नहीं मिलेगा। बाबरी विध्वंस के बाद भाजपा की तीन सरकारें बर्खास्त कर दीं गई और माहौल ऐसा बना जिसमें माना गया कि भाजपा की सत्ता में वापसी नहीं होगी। वैसे विपरीत माहौल में भाजपा के शीर्ष नेताओं में से कुछ के बयानों में काफी नरमी और क्षमा-याचना की मुद्रा थी किंतु कुल मिलाकर पार्टी ने अपने एजेंडा से अयोध्या को हटाया नहीं। भाजपा और संघ परिवार के नेता रायबरेली न्यायालय में बाबरी ध्वंस का मुकदमा झेलते रहे तो दूसरी और श्रीराम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद सिविल वाद में भी संगठन परिवारवादी न होते हुए भी पूरी ताकत लगा दी।

बड़े-बड़े वकील इसी कारण खड़े हुए तब जाकर जिला सिविल न्यायालय से लेकर उच्च और सर्वोच्च न्यायालय तक मामला गंभीरता से लड़ा जा सका। यह भी स्वीकार करने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि केंद्र में भाजपा की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार नहीं होती तथा उत्तर प्रदेश में गैर भाजपा सरकार होती तब भी मंदिर का निर्माण नहीं हो पता। केंद्र में सरकार होते हुए भी प्रदेश सरकार का पूरा सहयोग नहीं होता तब भी इसका निर्माण असंभव था। इसलिए अगर भाजपा को लाभ मिल रहा है तो आश्चर्य कैसा। दूसरे दलों ने पहले भी ऐसा रवैया अपनाया और आज उनके सामने इस ऐतिहासिक कालखंड में सकारात्मक भूमिका निभाने का अवसर था, जिससे वे चूक गए। किंतु इससे विचलित होने की बजाय प्राण प्रतिष्ठा के साथ पूरे देश का सकारात्मक माहौल हमारे लिए आत्मसंतोष का कारण बनना  चाहिए।

अवधेश कुमार


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