मोहल्ला क्लीनिक : भ्रष्टाचार के इन्फेक्शन से मिल रही नाकामी

Last Updated 11 Jan 2024 01:35:55 PM IST

मोहल्ला क्लीनिक’ योजना पर लगे फर्जीवाड़े के आरोप ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कट्टर ईमानदार वाली छवि पर एक बार फिर बड़ा प्रहार कर दिया है।


मोहल्ला क्लीनिक : भ्रष्टाचार के इन्फेक्शन से मिल रही नाकामी

मोहल्ला क्लीनिक उनकी ऐसी योजना है जो उनका बड़ा ‘वोटबैंक’ साबित हुई है। लेकिन अब इसमें भी भ्रष्टाचार का दीमक लग गया है। 2023-24 के लिए दिल्ली सरकार ने 80 हजार करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया था जिसमें मोहल्ला क्लीनिक के लिए करीब एक तिहाई बजट अलग आवंटित रखा। पर इस भारी भरकम रकम पर ऐसा बंदरबांट होगा, जिसकी शायद दिल्लीवासियों ने कल्पना तक नहीं की होगी।

हालांकि, मोहल्ला क्लीनिक में गड़बड़झाला है, इस बात की भनक केजरीवाल हो चुकी थी, तभी उन्होंने पिछले वर्ष अगस्त में ही इसकी जांच करवाने के आदेश दे दिए थे। जांच में पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी टेस्ट में फर्जीवाड़ा पाया। लेकिन ये रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें न देकर सीधे उप-राज्यपाल को थमा दी। एलजी के हाथ में पहुंचने के मतलब है कि सीधे बिना घी-तेल डाले ‘आग’ लग जाना। हुआ भी कमोबेश वैसा ही? केंद्रीय गृह मंत्रालय से मंतण्रा करने के बाद एलजी ने बिना देर किए सीबीआई से जांच करवाने की सिफारिश कर दी। स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने पल्ला झाड़ लिया है। लेकिन शायद इतनी आसानी से वह भी नहीं बच पाएंगे। चुनावी फायदी के तौर पर देखें तो ‘आम आदमी पार्टी’ ने ‘मोहल्ला क्लीनिक’ को कभी योजना नहीं माना, हमेशा चुनावी ‘मॉडल’ के रूप में इसे प्रस्तुत किया। पर अब यह चुनावी नौका समुद्र के बीच मझधार में फंसती दिखने लगी है।

विपक्ष को बैठे-बिठाए बड़ा मुद्दा हाथ लगना। आरोप लगने के बाद दिल्ली में भाजपा की समूची टीम आम आदमी पार्टी पर हमलावर हो गई है। मोहल्ला क्लीनिक पर भ्रष्टाचार का जो आरोप लगा है, उसकी पृष्ठभूमि को तस्दीक से गौर करें तो दिल्ली विजिलेंस डिपार्टमेंट ने जब अपनी प्रारंभिक जांच पड़ताल की और निरीक्षण के लिए राजधानी में मोहल्ला क्लीनिक में पहुंचे, तो किसी भी क्लीनिक में कोई डॉक्टर इलाज करता नहीं मिला। जो मिले, वो चिकित्सक नहीं, बल्कि चतुर्थ श्रेणी के स्टॉफ के लोग थे। कई जगहों पर तो अनुभवहीन स्टाफ मरीजों को दवा और टेस्ट लिखते दिखाई दिए। जब उनसे पूछा गया कि आप चिकित्सक हो तो वो भाग खड़े हुए।

दरअसल, यह सब दिल्ली सरकार के नाक के नीचे हुआ। इस योजना के शुरुआती दिनों को याद करें तो एक सुखद तस्वीर आंखों के सामने उभरती है। तब दिल्ली के लोग वास्तव में इन क्लीनिक में जाया करते थे। हल्की-फुल्की हारी-बीमारी की दवाओं के लिए लोग पहुंचते थे। लेकिन धीरे-धीरे ये योजना कमजोर पड़ती गई। बहरहाल, योजना के कमजोर पड़ने के पीछे वाजिब कारण यह भी है कि जब से निर्वतमान हेल्थ मीनिस्ट सतेंद्र जैन भ्रष्टाचार में फंसकर जेल गए हैं, तभी से दिल्ली का स्वास्थ्य विभाग रामभरोसे हो गया।

बीते करीब दो-ढाई वर्षों से आम आदमी पार्टी किसी न किसी पचड़े में फंसती रही है। उनके प्रमुख नेता इस वक्त जेल में हैं। केजरीवाल पर भी ईडी की गिरफ्तारी की तलवार लटकी है। ईडी के बार-बार बुलावे पर नहीं पहुंच रहे। इस योजना में भी उनका नाम आना स्वाभाविक है। कुल मिलाकर लोक व्यवस्थाओं से दिल्ली सरकार की पकड़ कमजोर हो गई है। कोई कहने-सुनने वाला नहीं? विभागों में आनन-फानन में लगाए अनुभवहीन मंत्री बिगड़ी व्यवस्थाओं को मैनेज नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए सभी क्षेत्र भ्रष्टाचार की दलदल में समाते जा रहे हैं पर आरोप या दोष तो मुखिया पर ही आएगा। जैसे, स्वास्थ्य मंत्री ने आरोप स्वास्थ्य सचिव पर मंढ दिए हैं। हालांकि, यह कहने से वह अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकते। मुकम्मल जवाब उन्हीं को देना होगा।

एक वक्त ऐसा भी था, जब ‘मोहल्ला क्लीनिक’ योजना की धूम न सिर्फ  हिन्दुस्तान में होती थी, बल्कि विदेशों में भी खूब चर्चाएं हुई। अग्रणी मेडिकल जर्नल, द लैंसेट ने भी अपने संपादकीय कॉलम में टिप्पणी की थी कि दिल्ली मोहल्ला क्लीनिकों का नेटवर्क ऐसा है, जो अन्यथा स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित आबादी को सफलतापूर्वक सेवा देता है। उस रिपोर्ट को भी केजरीवाल ने बीते विधानसभा चुनावों में भुनाया था। कई अंतरराष्ट्रीय और भारतीय मंचों पर भी सराहना लूटी।

सराहना होना स्वाभाविक भी था, योजना नि:संदेह बेहतरीन है जिसे टीम वर्क के जरिए आगे बढ़ाना चाहिए था। आरंभ में निपुण चिकित्सक इस योजना को आगे बढ़ा रहे थे, बाद में उन्होंने भी किनारा कर लिया। नौबत अब ऐसी है कई मोहल्ला क्लीनिक्स में स्टॉफ के लोग ताश खेलते मिलते हैं। कई जगहों पर कुछ अप्रिय घटनाएं भी हुई। पूर्वी दिल्ली के एक क्लीनिक में तो महिला स्टॉफ के साथ छेड़छाड़ की घटना भी घटी। कुल मिलाकर केजरीवाल के इस चुनावी जीत वाले ‘मंत्र’ या ‘मॉडल’ पर लगे ये आरोप उन्हें सियासी रूप से परेशान जरूर करेंगे। इस वक्त वे चारों तरफ से घिर चुके हैं। इन सभी चक्रव्यूह से निकलना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी।

डॉ. रमेश ठाकुर


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