वर्ष-2024 : चुनौतियां और उम्मीदें

Last Updated 07 Jan 2024 01:30:13 PM IST

वर्ष 2024 महत्त्वपूर्ण वर्ष है। अनेक महत्त्वपूर्ण देशों में इस वर्ष चुनाव होने हैं-अमेरिका, भारत, रूस, यूक्रेन, मैक्सिको, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे देशों के चुनावों पर निश्चय ही दुनिया की नजर रहेगी। यूके के चुनाव भी यदि जनवरी, 2025 तक न टल जाएं तो इसी वर्ष होंगे।


वर्ष-2024 : चुनौतियां और उम्मीदें

इजराइल में भी महत्त्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव इस वर्ष हो सकता है। यूरोपीयन संसद के चुनाव मध्य वर्ष में होंगे। दूसरी ओर, राजनीतिक फेर-बदलाव से अलग बड़ा सवाल यह है कि 2024 में हम एक बेहतर दुनिया की ओर, विशेषकर एक अधिक सुरक्षित दुनिया की ओर, बढ़ सकेंगे या नहीं। इसके लिए जहां विश्व में नीतिगत सुधार, बड़े सुधार जरूरी हैं, वहां यह भी महत्त्वपूर्ण है कि बढ़ती संख्या में लोग एक ऐसा जीवन जिएं, ऐसी जीवन पद्धति अपनाएं जो बेहतर दुनिया और अधिक सुरक्षित दुनिया के उद्देश्य के अनुकूल हो।

जब हम नए वर्ष की शुभकामनाएं अपने प्रियजनों को देते हैं या अपने ही लिए बेहतर वर्ष की कामना करते हैं तो प्राय: इसके पीछे अपने व अपने प्रियजनों के लिए सोच होती है कि हम सब स्वस्थ रहें व अपने-अपने कार्य में तरक्की करें। यह तो होना ही चाहिए, पर इसके साथ यह सोच भी जरूरी है कि हम और हमारा जीवन बेहतर दुनिया की स्थापना से जुड़े।

इसके लिए हमें यथासंभव दूसरों की, अधिक जरूरतमंदों की, भलाई से जुड़ना चाहिए। अपने-अपने सामथ्र्य के अनुसार हम ऐसे कई छोटे-बड़े प्रयासों में योगदान दे सकते हैं-धन से या श्रमदान से या अन्य तरह से, जो निर्धन वर्ग की भलाई से जुड़े हैं। अपने जीवन में जहां अपने से कमजोर या निर्धन स्थिति के व्यक्तियों से व्यवहार हो, हमें उसे न्यायसंगत बनाना चाहिए।

हम एक बेहतर दुनिया बना सकेंगे यदि हम स्वयं हर तरह के भेदभाव की संकीर्ण सोच से मुक्त होंगे। हम अपने ही दिल को टटोल कर देखें, उसमें कहीं संकीर्णता व भेदभाव हो या उसके बीज हों तो उसे निकाल फेंकें। हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई की आपसी सद्भावना राष्ट्रीय एकता के लिए तो जरूरी है ही, साथ में एक बेहतर समरसता भरे समाज के लिए व विश्व स्तर पर अधिक अमन-शांति के लिए भी जरूरी है।

वास्तव में बड़े राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व विश्व स्तर पर अमन-शांति केवल बेहतर नीतियों से ही नहीं आती हैं। इसमें हमारे- आपके जैसे जनसाधारण का भी बड़ा योगदान है। दुनिया आखिर हमारे जैसे करोड़ों लोगों से ही तो बनती है। हमारे जैसे जनसाधारण करोड़ों लोगों को तो बेहतर सोच, अमन-शांति की सोच, नहीं दे सकते हैं, पर कम से कम अपने को तो दे सकते हैं, कुछ आगे बढ़कर परिवार, पड़ोस, कार्यालय, समुदाय के स्तर पर अमन-शांति, सद्भावना की सोच को बढ़ा सकते हैं, सांप्रदायिकता व भेदभाव की सोच को कम कर सकते हैं। इस तरह के बहुत से अमन-शांति के छोटे-छोटे प्रयासों से ही बड़े स्तर पर अमन-शांति स्थापित करने में मदद मिलती है।

यही स्थिति पर्यावरण संकट को सुलझाने के संदर्भ में भी नजर आती है। यदि विश्व में सभी लोग सादगी के जीवन के प्रति समर्पित हो जाएं, अंतहीन उपभोक्तावाद को त्याग दें तो पर्यावरण रक्षा की मजबूत बुनियाद तो इसी से तैयार हो जाएगी पर समस्या यह है कि आज की स्थिति तो इसके विपरीत है। जहां बढ़ते पर्यावरणीय संकट के बीच सादगी के जीवन व इससे जुड़े जीवन मूल्यों की बहुत जरूरत है, वहां हकीकत तो यह है कि इस समय उपभोक्तावाद व लालच के जीवन मूल्य ही हावी हैं। बहुत से लोग जीवन की सार्थकता को इसी में तलाश रहे हैं कि वे अधिक से अधिक शानदार और विलासिता की जीवन-शैली को अपना सकें, एक बंगला है तो दूसरा ले सकें, एक चमकती-दमकती कार है तो मौका मिलने पर दूसरी या तीसरी ले सकें।

यदि अधिक से अधिक लोग इसी तरह की सोच अपनाएंगे तब तो पर्यावरण की रक्षा नहीं हो सकेगी। तिस पर हर तरह से उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों को उकसाने व बढ़ाने के प्रयास भी निरंतर चलते रहते हैं। इस स्थिति में  जोर देकर कहना-समझना होगा कि पर्यावरण रक्षा की शुरुआत तो अपने जीवन में सादगी अपनाने से ही करनी चाहिए। इस सादगी का अर्थ यह नहीं है कि हम अपने को जरूरतों से वंचित रखें। यह भी मानना होगा कि बढ़ती व्यस्तताओं के बीच कुछ आधुनिक सुविधाओं की जरूरत भी बढ़ जाती है पर अंतहीन उपभोक्तावाद व लालच से दूर रहना और इसे एक खतरे की तरह समझना जरूरी है। यह खतरनाक सोच जितनी कम होगी, उतना ही भ्रष्टाचार भी कम होगा।

इस तरह आम लोगों की जीवन शैली संबंधी सोच में जो सुधार होता है या मानव मूल्यों में जो बेहतरी होती है, वह आगे चलकर व्यापक स्तर पर, राष्ट्रीय या विश्व स्तर पर सार्थक बदलाव लाते हैं। इस तरह के अनेक छोटे प्रयासों से समाज व देश-दुनिया में अधिक व्यापक बदलाव के लिए माहौल बनता है। नेतृत्व पर दबाव पड़ता है कि वे समाज में कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार के लिए नीतियां व कार्यक्रम बनाएं। विश्व 2024 में विश्व के अनेक महत्त्वपूर्ण चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें कहां तक सबसे बुनियादी सुधार के मुद्दे सामने आ पाएंगे। विशेषकर अमेरिका से अमन-शांति, न्याय व पर्यावरण रक्षा की सोच आगे आ सके तो इसका लाभ केवल इस देश को नहीं, पूरी दुनिया को मिलेगा। वैसे सद्भावना, अमन-शांति, पर्यावरण रक्षा, समता व न्याय के मुद्दे तो सभी देशों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। क्या ये मुद्दे विश्व के विभिन्न चुनावों में सार्थक भूमिका निभा सकेंगे?

यदि इस संदर्भ में आज स्थिति आशाजनक नहीं है, तो इसके लिए एक बड़ी वजह यह भी है कि अमन-शांति, न्याय व समता व पर्यावरण रक्षा के मुद्दे व आंदोलन अभी मजबूती प्राप्त नहीं कर सके हैं। बहुत से सार्थक छोटे-प्रयास तो हो रहे हैं, पर अभी एक बहुत बड़ी ताकत नहीं बन पाए हैं। इनमें भटकाव भी है और विभाजन भी है। सबसे बड़ी कमजोरी तो अभी यह है कि न्याय व समता, पर्यावरण रक्षा और अमन-शांति के मुद्दों की समग्रीकृत सोच नहीं बन पाई है और उस पर आधारित ताकतें और आंदोलन नहीं उभर पा रहे हैं। इन मुद्दों के महत्त्व को अलग से समझा जा रहा है, पर इनके आपसी संबंधों और समन्वय को नहीं बढ़ाया जा सका।

हकीकत तो यह है कि वह सभी आपस में नजदीकी तौर पर जुड़े हैं व इन्हें एक साथ, समग्रीकृत रूप में बढ़ाए जाने से इन सब को ताकत मिलती है। अत: 2024 की एक बड़ी उपलब्धि यह होगी कि इस तरह की समग्रीकृत सोच को आगे बढ़ाया जाए और इस तरह के जो भी प्रयास हों, उनमें बेहतर आपसी एकता भी स्थापित हो। इस दौर की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि विभिन्न मानवीकृत कारणों से धरती की जीवनदायिनी क्षमताएं ही गंभीर संकट में हैं। अत: अमन-शांति, समता व न्याय व पर्यावरण रक्षा के समन्वित कार्यक्रम और आंदोलन के आगे बढ़ते समय से एक बड़ा उद्देश्य यह होना चाहिए कि धरती के इस संकट को समय पर सुलझाने को सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाते हुए ही वह आगे बढ़े। इस तरह व्यक्तिगत जीवन को बेहतर और सार्थक बनाने तथा धरती की सबसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी समस्याओं को सुलझाने के प्रयास एक होते हैं, आपस में मिलते हैं। इस दिशा में और इस कार्य पर दुनिया आगे बढ़े, यही नए वर्ष की सबसे बड़ी चुनौती है, उम्मीद है।

भारत डोगरा


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